सन्नी यादव की रिपोर्ट
मां एक पवित्र शब्द है इसका कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है, हम मां को माता, अंबा, जननी आदि पवित्र नामों से संबोधित करते हैं इसलिए मां जैसे पवित्र शब्द के साथ स्वदेशी, विदेशी शब्दों का प्रयोग करना ही उचित नहीं है यह बातें श्री दूधाधारी मठ पीठाधीश्वर राजेश्री डॉक्टर महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अभिव्यक्त की विदित हो कि सांसद एवं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि विदेशी मां की कोख से जन्मा व्यक्ति कभी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता! इस पर अपना विचार व्यक्त करते हुए राजेश्री महन्त जी महाराज ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर जी केवल सांसद ही नहीं अपितु वे साधु समाज से भी संबंधित हैं इसलिए उन्हें अपने सार्वजनिक जीवन में अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए, समाज श्रेष्ठ व्यक्तियों से श्रेष्ठतम आचरण की अपेक्षा करता है आज तक कोई भी व्यक्ति इस संसार में दूसरों की निंदा या भर्त्सना करके बड़ा नहीं बन सका! गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने लिखा है- सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु। अर्थात अमृत का बड़प्पन तो लोगों को अमर करने में है यदि वह भी विष का काम करें तो फिर वह किसी काम का नहीं है, साध्वी प्रज्ञा जी से कभी भी इस तरह के वक्तव्य की अपेक्षा नहीं की जा सकती है कारण कि वे स्वयं मातृशक्ति से संबंधित हैं इसलिए उनकी जवाबदेही भी अधिक है फिर किसी भी माता का अपमान करना उचित नहीं है माता शब्द का विस्तृत अर्थ है संपूर्ण धरती ही माता है इसलिए हम उसे धरती माता कह कर बुलाते हैं इस परात्पर जगत का सृजन करने वाले परात्पर ब्रह्म की जब हम आराधना करते हैं तब भी हम यही कहा करते हैं कि त्वमेव माता च पिता त्वमेव अर्थात वेदों की इस सूक्ति वाक्य में पिता के पूर्व माता शब्द का ही उपयोग हमारे प्राचीन ऋषि मनीषियों ने किया है माता सृष्टि करने वाली है इसलिए मां शब्द के साथ किसी भी परिस्थिति में स्वदेशी विदेशी शब्दों का प्रयोग करना निरर्थक है, धर्म शास्त्रों का सिद्धांत सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया पर आधारित है इसलिए प्रज्ञा जी को विशेषकर इन बातों को हमेशा अपने ध्यान में रखना चाहिए राजनीतिक पद प्रतिष्ठा आती- जाती रहती हैं किंतु वह अभी भी साधु समाज से है और भविष्य में भी रहेंगी इस सृष्टि जगत में जिस भी माता ने किसी भी संतानों को उत्पन्न किया है वह हमेशा वंदनीय है जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है और फिर साधु के लिए तो रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है- जो सही दुख पर छिद्र दुरावा। अर्थात साधु तो स्वयं दुख सह कर दूसरों के छिद्र को ढकने का कार्य करता है इन बातों को अपने आचरण में आत्मसात करना चाहिए। मातृशक्ति संपूर्ण जगत में चारों युग से प्रतिष्ठित है, इनका निरंतर सम्मान हम सभी को करना ही चाहिए।