राष्ट्रीय हित इसी में है कि किसी तरह आतंकवादी समूह और पाकिस्तान अफगानिस्तान की भूमि का उपयोग भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए न कर पाए। इसके लिए तालिबान से बातचीत करने में कोई समस्या नहीं है। बातचीत का कतई अर्थ नहीं है कि भारत ने तालिबान को आतंकवादी मानना छोड़ छोड़ दिया या उन्हें बिल्कुल मान्यता ही दे दिया।भारत की अफगानिस्तान और तालिबान संबंधी नीतियों को लेकर जिस तरह के दुष्प्रचार और अफवाह बार-बार सामने आ रहे हैं उनसे आम भारतीय के अंदर भी कई प्रकार की आशंकाएं पैदा हो रही है।सोशल मीडिया पर सबसे बड़ा प्रचार यह हुआ कि भारत ने तालिबान को मान्यता दे दिया। यह भी कहा जा रहा है कि भारत ने गुपचुप तरीके से तालिबान से बातचीत की और उसके साथ काम करने को तैयार हो गया है।
इसके पहले यह दावा किया जा रहा था कि सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता में ही तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची से बाहर कर दिया गया और भारत ने उसका समर्थन किया। इस तरह की खबरें अगर बार-बार सामने आए तो फिर संभ्रम और संदेह पैदा होना बिल्कुल स्वाभाविक है।
सबसे पहले सुरक्षा परिषद संबंधी प्रस्ताव और मान्यता देने की खबरों पर बात करें। 15 अगस्त को तालिबान द्वारा काबुल पर आधिपत्य के बाद अगले दिन भारत की अध्यक्षता में 16 अगस्त को सुरक्षा परिषद की बैठक हुई और जो कुछ भी उसमें हुआ उसे एक बयान के रूप में जारी किया गया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति के हस्ताक्षर से जो बयान जारी किया गया उसे देखिए — सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आंतकवाद से मुकाबला करने के महत्व का जिक्र किया है।
ये सुनिश्चित किया जाए कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, और न ही तालिबान और न ही किसी अन्य अफगान समूह या व्यक्ति को किसी अन्य देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन करना चाहिए। दोबारा 27 अगस्त को काबुल हवाईअड्डे पर हुए बम विस्फोटों के एक दिन बाद फिर परिषद की ओर से एक बयान जारी किया गया। इसमें 16 अगस्त को लिखे गए पैराग्राफ को फिर से दोहराया।
लेकिन इसमें एक बदलाव करते हुए तालिबान का नाम हटा दिया गया। इसमें लिखा था- सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को दोहराया ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, और किसी भी अफगान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए। तो इतना ही है। इसमें तालिबान को मान्यता देने या तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची से निकालने की कोई बात नहीं है। यह अफवाह उड़ाने वालों का उद्देश्य क्या हो सकता है इसके बारे में आप अपना निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।
भारत ने अपने एक महीने की अध्यक्षता में पहल करके पहले अफगानिस्तान पर बैठक बुलाई और तालिबान का नाम लिए बिना आतंकवाद के बढ़ते खतरे को लेकर दुनिया को आगाह किया और उसमें समर्थन भी मिला। सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2593 अफगानिस्तान को लेकर भारत की मुख्य चिंताओं को संबोधित करता है। आतंकवाद संबंधी प्रस्ताव पर नजर डालिए –‘अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी और देश पर हमले, उसके दुश्मनों को शरण देने, आतंकियों को प्रशिक्षण देने या फिर आतंकवादियों का वित्तपोषण करने के लिए नहीं किया जाएगा।