अनिल अनूप
(ये दास्तां है 23 साल की रितिका की. पैसों की तंगी ने उन्हें वेडिंग डांसर बना दिया. रितिका उन सैकड़ों लड़कियों का चेहरा हैं जो बिहार, उत्तरप्रदेश में लौंडिया डांस करती हैं.)
गांव में एक रुआबदार घर की शादी में रितिका आई हुई हैं. एक तंग, बंद खिड़की वाले कमरे में वे अपनी साथियों के साथ तैयार हो रही हैं. साथ में कई बैग रखे हुए हैं. इनमें चमकीली-भड़कीली मेकअप किट और झीने-चमकीले कपड़े रखे हैं. लड़कियां साथ में तैयार होते हुए अपने घरों की बात करती हैं. पिछली शादी का अनुभव दोहराती हैं. कैसे शराब के नशे में धुत्त लड़के स्टेज पर चढ़ आए. कैसे किस लड़की की कमर में हाथ डाल लिया! रितिका का तजुर्बा भी इससे अलग नहीं . शादियों में ऐसा होता रहता है. देखनेवाले नशे में रहते हैं. गाना या नाचने वाली ज्यादा पसंद आ जाए तो सीधे ऊपर आ जाते हैं. हाथ पकड़ते हैं. कमर में हाथ डाल लेते हैंदेश के पूर्वी हिस्से में शादियों में नाच-गाने की परंपरा पुरानी है. पहले लड़की वाले जनवासे यानी बारातियों के ठहरने की जगह में नाचने वालों को बुलाया करते. लड़के वाले भी शादी के बाद लौंडिया नाच की ‘व्यवस्था’ रखते. रितिका मजबूरी के तहत इस व्यवस्था का हिस्सा बन गईं.
वे याद करती हैं, मुझे डांस का शौक था. डांस सीखा करती. थिएटर करना चाहती थी लेकिन ये नहीं. फिर पापा बीमार रहने लगे. अस्पताल में थे. घर पर पैसों की सख्त जरूरत थी. मुझे किसी से बताया और मैंने हां कर दी . वहां सब गंदी नजरों से देखते हैं .
मजबूरी में रितिका लौंडिया डांस का हिस्सा तो बन गईं लेकिन वहां का माहौल उन्हें काम का हिस्सा बनने नहीं दे रहा. धीमी आवाज में कहती हैं, वहां पे लोग गाली से भी ज्यादा गंदा बोलते हैं. क्या बताऊं! मर्द ही ज्यादा होते हैं. अश्लील गाने बजते हैं, उसपर सीटियां और भद्दी कमेंट्स. स्टेज पर पैसे फेंकते हैं. रात बिताने का ऑफर देते हैं. एक रात के इतने मिलेंगे, दो रातों के उतने, ऐसे चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं . उन्हें थप्पड़ जमाने का जी होता है लेकिन कुछ भी नहीं कर सकते. जोर से भी बोलेंगे तो शो रुक जाएगा और पैसे नहीं मिलेंगे . झीने कपड़े पहन मर्दों के सामने ‘नाचने वालियों’ की क्या सुरक्षा ?
‘हिफाजत के बंदोबस्त’ पर रितिका लंबी चुप के बाद बोलती हैं. मजबूरी है. नाच रही हैं. कई शादियों में कपल डांस के लिए लड़के भी साथ जाते हैं. वही हमें बचाते हैं. कोई नाच के बीच स्टेज पर चढ़ आता है. कोई कमर पकड़ लेता है. कोई छूने लगता है. तब साथी लड़के धीरे-धीरे उन्हें स्टेज से नीचे ले जाते हैं. गुस्सा वे भी नहीं कर सकते. शांति से सब मैनेज करना होता है. कभी कुछ बहुत ही गड़बड़ हो जाए तो परदा गिराना होता है लेकिन ‘वेडिंग ऑर्गेनाइजर’ ऐसा कम ही करते हैं. ऐसा करने से उनका नाम खराब होता है. अगली शादी में बुलौआ नहीं आता . जिस कमरे में लड़कियां तैयार हो रही होती हैं, उसकी एक झलक से भी डांस की तासीर पता चल सकती है.
सीलनभरे कमरे में पंखा पूरी रफ्तार से घूमता होता है ताकि परफॉर्मर्स का मेकअप न उतरे. नकली पलकें, स्मोकी आइज़, बालों के छल्ले यहां-वहां झूलते हुए और उसपर गहरी लाल लिपस्टिक.रितिका बताती हैं, गांव की शादियों में लोगों को इसी तरह का मेकअप देखना अच्छा लगता है. और कपड़े! ट्रांसपरेंट गाउन होता है, पेट दिखता है, बैकलेस होता है. चोली के साथ हॉट पेंट पहन लेते हैं. ट्रांसपरेंट ही कपड़े पहनने होते हैं. अमूमन भोजपुरी गानों पर नाचते हैं.
लौंडियाडांस डांस के दूसरे फॉर्म से इसलिए भी अलग है कि इसमें डांस की कोई खास प्रैक्टिस नहीं होती. ठुमके लगाना आना लड़कियों के लिए अनिवार्य शर्त है तो कपल डांस में लड़कों को लड़कियों को उठाना होता है.रितिका ने साथ की कई लड़कियों को ‘उस’ लाइन में जाता देखा, जिसके रास्ते इस डांस से खुलते हैं. 23 साल की रितिका याद करती हैं, ग्रुप की एक लड़की हमारे पास आई. बड़ा रो रही थी. उसे पैसों की जरूरत थी. हमारे हाथ में पैसे नहीं थे. मजबूरन वो उसी लाइन में चली गई. हर शो में मर्द अप्रोच करते हैं. वन-नाइट-स्टैंड का ऑफर आता है. जो मजबूर हो, वो चली जाती है.
शादी में 2 घंटे के शो के 5000 मिलते हैं. वो पूरे ग्रुप में बंटता है. जैसी गंदगी झेलकर हम नाचते हैं, उसके मुकाबले ये कुछ भी नहीं.रितिका अपने ग्रुप की स्टार परफॉर्मर हैं. डांस को जुनून की तरह जीने वाली रितिका कहती हैं, मर्दों के सामने नाचना होता है. दूसरे गांवों में जाना होता है. अनजान लोगों के साथ रहती हूं. लोग नशे में धुत्त रहते हैं. पहले डर लगता था. अब नहीं. डांस तो डांस है, फिर चाहे वो शादी में हो या फिर कहीं और.स्टेज पर भले मैं रितिका लौंडिया हूं, नीचे उतरते ही मैं रितिका रह जाती हूं, जो अपनी डांस एकेडमी चलाना चाहती है.
(यह लेख सरस सलिल मे प्रकाशित )