भारत में फिलहाल तीन वैक्सीन- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक उपलब्ध हैं। इसमें
ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोविशील्ड) को सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जा रहा है। इस बीच यह वैक्सीन विवादों में घिरती नजर आ रही है। कई देशों ने इसके उपयोग पर फिलहाल रोक भी लगा दिया है। इन खबरों ने लोगों के मन में एक विशेष प्रकार के डर की स्थिति बना दी है। असल में हाल ही में एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने के बाद कुछ लोगों में रक्त के थक्के बनने और रक्तस्राव के मामले देखने को मिले हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है।
कुछ देशों द्वारा वैक्सीन को प्रतिबंधित करने के मामले सामने आने के बाद भारत में भी लोगों के बीच डर देखा जा रहा है। आइए इस बारे में विशेषज्ञों से जानते हैं कि आखिर कोविशील्ड वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर कितनी खरी है? क्या इसे लगवाना चाहिए?
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक दुष्प्रभाव के मामले सामने आने के बाद कई देशों ने फिलहाल कोविशील्ड वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया है। जिन देशों ने कोविशील्ड वैक्सीन के उपयोग पर रोक लगाने के साथ इसे जांच के तहत रखा है उनमें ऑस्ट्रिया, नॉर्वे, आइसलैंड, बुल्गारिया, नीदरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, स्वीडन और थाईलैंड जैसे देश शामिल हैं। कनाडा के कई प्रांतों ने भी इसी तरह की चिंताओं को लेकर एस्ट्राजेनेका के टीकों का इस्तेमाल फिलहाल रोकने का फैसला किया है।
ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में हुए अध्ययन में पाया गया कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के कारण रक्त में प्लेटलेट की कमी हो सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक कोविशील्ड वैक्सीन के कारण ऐसे मामले जरूर सामने आए हैं, हालांकि इसकी संख्या बहुत ही कम है। यह अध्ययन जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक यह स्थिति प्रति 10 लाख खुराक में करीब 11 लोगों में हो सकती है। 65 से 70 साल की आयु वाले लोगों (जिन्हें पहले से ही दिल की बीमारी, मधुमेह या किडनी की बीमारी) में इसका खतरा अधिक देखने को मिला है।
इस तरह के रिपोर्ट सामने आने के बाद सुरक्षात्मक स्तर से वैक्सीन की प्रभाविकता को लेकर लोगों में मन में डर देखा जा रहा है। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए अमर उजाला ने डॉ विक्रमजीत सिंह (डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेल मेडिसिन) से बातचीत की। डॉ विक्रमजीत बताते हैं कि फिलहाल यह अध्ययन यूरोपीय देशों में हुआ है और इसके आंकड़े भी काफी कम हैं। इस छोटे से आंकड़े के आधार पर किसी भी वैक्सीन की प्रभाविकता या उससे होने वाले साइड-इफेक्ट्स का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। इस तरह की रिपोर्ट पर ध्यान न देते हुए सभी लोगों को वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। संभावित तीसरी लहर से बचाने में वैक्सीनेशन को ही सबसे प्रभावी उपाय माना जा सकता है।