अरुणा राजपूत “राज”
आजकल बहुत शोर मचा है आधुनिक भारतीय स्त्री ऐसी, आधुनिक भारतीय स्त्री वैसी…..पर क्या कभी टटोल कर देखा है कभी किसी ने उस आधुनिक स्त्री का मन, क्या चाहती है वो?
क्या पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर बेतुके कपड़े पहनना, बेपरवाह घूमना फिरना,धूम्रपान करना, चरित्रहीनता, पैसे, जेवर और जमीन जायदाद के लिए झगड़े???
नही, शायद ये सब तो स्त्री कभी चाहेगी ही नही|
वो तो चाहती है बस थोड़ी सी आजादी उस घूघँट से जिस में से उसे कुछ दिखाई नही देता और वो अक्सर ठोकर खाकर गिर जाती थी| वैसे उसे सिर पर पल्लू रखकर बड़ो का सम्मान करना बेहद पसंद है|
वो चाहती है थोड़ी सी आजादी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की, अपने मन की कहने की, वो चाहती है उसकी बात को भी सुना और समझा जाएँ, उसके विचारों और बात को भी महत्व दिया जाये| वैसे वो कभी भी बेवजह बहस नही करना चाहती, बस तर्क-वितर्क करके तुम्हारे विचारों को भी समझना चाहती है और सही बातों का अनुकरण भी करना चाहती है|उसे आपके विचारों को मान सम्मान देना भी बहुत अच्छा लगता है|
वो चाहती है कि जब यह शरीर उसका है तो इस पर कौन सा कपड़ा पहना जाये उसकी आजादी| क्योंकि उससे बेहतर कौन जान सकता है किउसे किस कपड़े पहनने पर आराम महसूस होता है, बस अपना वही थोड़ा सा आराम चाहती है वो| वैसे उसे साड़ी पहन कर भारतीय संस्कृति की पहचान बनना और अपने पति को अच्छा लगना बहुत भाता है|
वो चाहती है कि पूरे दिन वो अकेली सिर्फ रसोई मे ना लगी रहे, परिवार के सभी लोगों के लिए उनकी पसन्द के विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में और उन्हें खिलाने में|
वो तो बस इतना चाहती है कि कोई उसकी भी मदद करे रसोई में और वो कभी कभी अपनी पसंद से कोई नया व्यंजन बनाये और उसे प्यार से सबको खिलाये|
उसे जब भूख लगी हो तबवो भी खाना खा सके, ना कि परिवार के सभी सदस्यों के खाना खाने के बाद ही उसे खाने को मिले| वैसे उसे सबके लिए प्यार से उनकी पसन्द के व्यंजन बनाना भी बहुत अच्छा लगता है,बस तब कोई खा कर ये कह दे “तुम्हारे हाथों में जादू है, कितना अच्छा खाना बनाती हो”|
आधुनिक स्त्री आजादी चाहती है पर उसे अपनी मर्यादा पता है| वो उड़ना चाहती है पर अपनी सीमाओं में| वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती है, पर यह कदापि नही चाहती कि कोई पुरुष उसे गलत निगाहों से देखे| वो सहकर्मी पुरुषों के साथ बैठकर उन सभी विषयों पर बात करना चाहती है जो दैनिक और सामाजिक है, पर गंदे मजाक, कटाक्ष और व्यंगों का हिस्सा नही बनना चाहती है|
वो चाहती है कि उसको मान-सम्मान मिले, ना कि पुरुष प्रधान समाज के नाम पर शारीरिक-मानसिक शोषण, कष्ट और तनाव|
वो चाहती है सम्बन्धों को जीना, पर नही चाहती कि कोई उससे जबरदस्ती करे| वो चाहती है कि जब उसका पति भी उससे प्रेम करे, तो उसमें उसकी भी सहमति हो ना कि जबरदस्ती या सिर्फ शादी की जरुरत
वो हर उस पल को जीना चाहती है जिसमें प्रेम हो ताकि सब कुछ मधुर हो-मीठा हो, जिसकी यादें समस्त जीवन को सुवासित करती रहे|
वो आभूषण, सुन्दर और मँहगें वस्त्र, धन-दौलत नही पाना चाहती वो तो बस पाना चाहती है
दकियानूसी-खोखले विचारों और कुरीतियों से छुटकारा, बराबरी का स्थान और स्वभिमान के साथ जीना|
लेखिका अरुणा राजपूत “राज” हापुड़ में शिक्षिका हैं।