अनिल अनूप
सिर्फ पांच दिन के अंतराल में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को दूसरी बार संबोधित करने का साफ संकेत है कि देश में कोरोना वायरस से उपजे हालात चिंताजनक हैं। यही वजह है कि तीन सप्ताह के लिए देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई है। कहीं न कहीं एक बड़ा तबका विनाशक वायरस को गंभीरता से नहीं ले रहा था। यह जानते हुए कि इटली व अमेरिकी नागरिक अपनी कोताही की कीमत चुका रहे हैं। उन लोगों को अपनी आपराधिक भूल का अहसास हो गया है, जो सरकार द्वारा स्कूल-कॉलेज बंद करने के बाद छुट्टी मनाने के लिए चले गये थे। कोरोना पार्टी आयोजित करने लगे थे। दुनिया के नंबर एक व दो स्तर की चिकित्सा सुविधाओं वाले देशों में कोरोना कहर बताता है कि हम उनकी गलती नहीं दोहराएं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री को हाथ जोड़कर घरों में रहने व लक्ष्मण रेखा के पालन की अपील करनी पड़ी। नि:संदेह भारत जैसे देश में जहां सेल्फ क्वारंटाइन या आइसोलेशन जैसे शब्द लोगों के लिए नये हैं, इसे संयम, धैर्य व तप ही समझ लिया जाये। यह मानते हुए कि राष्ट्र के सामने आसन्न संकट भयावह है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा, दिहाड़ी-मजदूरों का क्या होगा? यहां सवाल जीवन बचाने का है। जब असंख्य जिंदगियां खत्म हो जायेंगी तो आर्थिक उन्नति की क्या तार्किकता है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा भी है कि यदि हमने 21 दिनों में संयम नहीं बरता तो देश 21 साल पीछे जा सकता है। भारत जैसे लचर चिकित्सा तंत्र में बचाव ही बेहतर उपचार हो सकता है। नि:संदेह चिकित्सकों और विशेषज्ञों की सलाह के बाद ही लॉकडाउन की अवधि 21 दिन रखी गई है। दरअसल, इस खतरनाक वायरस के संक्रमण का पता 14 दिन के अंदर चल जाता है और पांच से सात दिन के भीतर ये दूसरों में फैल सकता है। सही मायनों में ये कोरोना वायरस के जीवन चक्र को तोड़ने की कोशिश है। चुनौती यह है कि अभी वायरस का प्रभाव दूसरे चरण में है। यदि लापरवाही बरती जाती है तो यह तीसरे घातक चरण में भी पहुंच सकता है तब स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर होगी। सरकार की हालिया कोशिशें इसे तीसरे चरण से पहले रोकने की है। यदि कामयाबी नहीं मिलती है तो लॉकडाउन लंबा भी खिंच सकता है। चीन के बाद दुनिया के तमाम विकसित देशों ने भी लॉकडाउन का सहारा लिया। क्या लॉकडाउन ही उपचार का अंतिम उपाय है? डब्ल्यूएचओ के कुछ अधिकारी इसे अंतिम उपाय नहीं मानते। वे मानते हैं कि इसके साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों की जांच का क्रम जारी रखा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी संक्रमण का खतरा बना रह सकता है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने भारत में रेल-बस सेवाओं की बंदी और लॉकडाउन जैसे प्रयासों की सराहना भी की है। मगर साथ ही कहा है कि लगातार टेस्टिंग हो और पीड़ितों के संपर्क में आने वाले लोगों को गंभीरता से खोजा जाये। छह सौ से अधिक संक्रमित लोगों की संख्या हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। साथ ही सरकार के साथ लोगों को भी जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी। वहीं सरकार कोशिश करे कि लॉकडाउन के दौरान लोगों को आवश्यक सामान की आपूर्ति सामान्य ढंग से हो। सरकार कालाबाजारी पर कड़ाई से रोक लगाए। यह जानते हुए कि सामान की आपूर्ति चेन के प्रभावित होने से सब्जियों व अनाज के दामों में तेजी आई है। लोग भी जमाखोरी की प्रवृत्ति से बचें। लोगों द्वारा मॉस्क व सेनिटाइजर की जमाखोरी से अब अस्पताल के डाक्टरों व चिकित्साकर्मियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं सरकार टेस्टिंग का दायरा बढ़ाए। संभव है कि यदि हम ऐसा करते हैं तो संक्रमित लोगों की संख्या में तेजी आ सकती है। इटली में युवाओं में कोरोना के लक्षण नजर नहीं आये, मगर जब उनकी जांच की गई तो कई लोग संक्रमित पाये गये। ऐसे में जांच उपकरणों व आइसोलेशन सेंटर की संख्या बढ़ाई जाये।