केरल में ज़ीका वायरस के 14 मामलों के पाए जाने के बाद दो दक्षिणी राज्यों केरल और तमिलनाडु में अलर्ट जारी कर दिया गया है.
केरल में पाए गए वायरस के सभी मामलों की पुष्टि पुणे की नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी ने कर दी है.
ये एडीज़ मच्छरों के काटने से फैलता है. ये वही मच्छर हैं, जो डेंगू और चिकुनगुनिया फैलाते हैं लेकिन ये जानलेवा नहीं हैं.
इससे संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती होने की भी ज़रूरत नहीं. लेकिन अगर यह संक्रमण तीन माह की गर्भवती महिला को होता है तो उसके बच्चे में कुछ विकृतियां पाई जा सकती हैं. बच्चे का सिर जन्म के समय सामान्य से छोटा हो सकता है.
कहां मिले मामले
ज़ीका वायरस संक्रमण का पहला क्लस्टर तमिलनाडु-केरल की सीमा के पास मौजूद पारासल्ला में पाया गया है. जो कि तिरुवनंतपुरम से 34 किलोमीटर दूरी पर है. जो लोग संक्रमित पाये गए हैं उनमें से ज़्यादातर स्वास्थ्य क्षेत्र से ही जुड़े हुए हैं.
संक्रमण का सबसे पहला मामला 24 वर्षीय एक गर्भवती महिला में पाया गया. महिला में संक्रमण के लक्षण उस समय सामने आए जब तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में उनकी डिलीवरी होने वाली थी.
तिरुवनंतपुरम के किमशिल्थ अस्पताल में संक्रामक रोगों की विशेषज्ञ डॉक्टर राजलक्ष्मी अर्जुन ने बीबीसी हिंदी को बताया, “बच्चा नॉर्मल है. मरीज़ को हल्का बुख़ार और ख़ारिश हुई थी. हमने उसका इलाज किया और अब वो ठीक होकर घर चली गई हैं. दूसरे मरीज़ों का भी आउट-पेशेंट डिपार्टमेंट में इलाज किया गया. पुणे से यह पुष्टि कर दी गई थी कि वे संक्रमित हैं.”
निजी अस्पताल ने 19 सैंपल टेस्ट के लिए भेजे थे जिनमें से 14 मामले पॉज़िटिव पाए गए हैं.
डॉ. राजलक्ष्मी ने बताया कि आमतौर पर ज़ीका वायरस से संक्रमित शख़्स को तेज़ बुखार और कंजेक्टिवआइटिस की शिकायत हो जाती है.
डॉ. राजलक्ष्मी ने बताया कि संक्रमित होने वालों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही थे.
डॉक्टर राजलक्ष्मी कहती हैं कि ज़ीका का कोई ख़ास उपचार या वैक्सीन नहीं है.
स्वास्थ्य अधिकारी अलर्ट पर
केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने बीबीसी से कहा, “पूरे स्वास्थ्य तंत्र को अलर्ट पर रखा गया है. सभी ज़िला चिकित्सा अधिकारियों को गर्भवती महिलाओं का विशेष रूप से ध्यान रखने को कहा गया है.”
वीणा जॉर्ज ने बताया, “हम लगातार टेस्टिंग कर रहे हैं. और सैंपल्स को एनआईवी पुणे को भेजा जा रहा है. चिंता की कोई बात नहीं है. हमने टेस्टिंग बढ़ा दी है और पूरे राज्य में सतर्कता भी बढ़ा दी है.”
केरल के पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में भी, जहां साल 2017 में कृष्णागिरी ज़िले के अंचेती में ज़ीका का पहला मामला सामने आया है, वहां भी एहतियात बरतते हुए अलर्ट जारी कर दिया गया है.
तमिलनाडु के मुख्य स्वास्थ्य सचिव डॉ. जे राधाकृष्णन ने बीबीसी से कहा, “अभी तक कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन हम अलर्ट पर हैं और निगरानी के आदेश दे दिए गए हैं. डॉक्टरों को ख़ास कहा गया है कि अगर किसी भी शख़्स में ज़ीका के लक्षण दिखें तो उसका सैंपल लें.”
क्या होता है जब मच्छर काटता है
किमशिल्थ अस्पताल के संक्रमण रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर मोहम्मद नियास ने बीबीसी हिंदी से कहा, “ये वायरस सिर्फ़ मच्छर के काटने से ही नहीं फैलता है. बल्कि कुछ मामलों में इस बात की भी गुंजाइश होती है कि यह ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न से भी फैल जाए. इसके अलावा ये यौन संबंधों से भी फैलता है.”
नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस (निमहंस) के न्यूरोवायरोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर वी रवि कहते हैं, “मच्छर के काटने के क़रीब एक सप्ताह के बाद इसके लक्षण दिखायी देने शुरू होते हैं. कुछ व्यस्कों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की शिकायत हो सकती है. यह एक ऑटो-इम्यून बीमारी है जिसे गुइलेन बैरे सिंड्रोम कहा जाता है. जहां शरीर अपनी ही तंत्रिकाओं पर हमला करना शुरू कर देता है. इससे लकवा हो सकता है और शरीर के निचले अंग शिथिल पड़ सकते हैं.”
साल 2017 में ज़ीका वायरस के मामले गुजरात, मध्य प्रदेश और बाद में राजस्थान और तमिलनाडु में सामने आए थे.
भारत में ये वायरस 1950 के दशक से पाया जाता रहा है.
डॉ. रवि कहते हैं कि ये पहली बार है जब भारत में ज़ीका वायरस का क्लस्टर पाया गया है. अगर किसी एक ही जगह पर किसी संक्रमण के पांच से ज़्यादा मामले पाए जाते हैं तो संक्रमण रोगों के तहत उन्हें क्लस्टर माना जाता है.
ज़ीका वायरस से संक्रमण के लक्षण क्या हैं?
इस वायरस के संक्रमण से कम संख्या में ही मौतें होती हैं. पाँच संक्रमित लोगों में से एक में ही इसके लक्षण दिखते हैं.
- हल्का बुख़ार
- आँखों का संक्रमण (लाल और आँखों में सूजन)
- सिरदर्द
- जोड़ों का दर्द
- शरीर पर लाल चकत्ते
इस संक्रमण के कारण एक ख़ास तरह का तंत्रिका तंत्र से संबंधित परेशानी हो सकती है, जिसे गिलैन बैरे सिंड्रोम भी कहते हैं. ये अस्थायी पक्षाघात का कारण बन सकता है.
अभी तक इस वायरस के लिए न कोई वैक्सीन आई है और न ही दवा उपलब्ध है. इसलिए मरीज़ों को आराम करने और ज़्यादा से ज़्यादा तरल पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है.
लेकिन सबसे ज़्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि इसका असर गर्भ में पल रहे बच्चों पर पड़ता है. ऐसी स्थिति में कम विकसित मस्तिष्क वाले बच्चे पैदा होते हैं. इसे माइक्रोसेफली कहा जाता है.