अनिल अनूप
भारत सरकार ने सैनिकों को गोली चलाने की खुली छूट दी है। अब वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों को कोई हिमाकत करने से पहले चार बार सोचना पड़ेगा। हमारे सैनिक अब द्विपक्षीय संधियों और समझौतों की जकड़न से भी मुक्त होंगे। यदि हालात आक्रामक हैं और दुश्मन हथियारों का इस्तेमाल करता है, तो यह आकलन सैनिकों को ही करना है और फील्ड कमांडर के इशारे पर वे फायरिंग खोल सकेंगे। हालांकि यह अंतिम विकल्प के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाएगा। बेशक इससे भारत-चीन के बीच तनाव और संभावित टकराव के आसार पुख्ता होंगे, लेकिन दुश्मन की हरकतों और चालों का ‘यथोचित जवाब’ इसी भाषा में ही दिया जा सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों के साथ लंबे विमर्श के बाद यह निर्णय लिया। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी मुहर लगा दी। इस खुली छूट के साथ-साथ एक आपातकालीन कोष तैयार करने का भी फैसला लिया गया है। उसके तहत सेना प्रमुख 500 करोड़ रुपए तक के घातक हथियार तुरंत खरीद सकेंगे और उन्हें सरकार की लंबी प्रक्रिया की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। मोदी सरकार के ये फैसले भी ऐतिहासिक और लीक से हटकर हैं, क्योंकि ये 1996 और 2005 के भारत-चीन समझौतों का स्पष्ट उल्लंघन करते हैं। इससे दोनों पक्षों के सैनिकों में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है। अभी तक जो झड़प हाथापाई और धक्का-मुक्की तक सीमित थी, अब हिंसक और हत्यारी ही होगी। एलएसी पर 15-16 जून की शाम में जो टकराव हुआ था, उसका तनाव अब भी बरकरार है। कुछ खुलासे किए गए हैं, जिनसे टकराव अब एकतरफा नहीं लगता। हमारी सेना के उप प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के मुताबिक भारत के सैनिकों ने चीन के 56 सैनिकों को मारा था। चीनी सैनिकों के शव गलवान घाटी में इधर-उधर मिले थे, जिन्हें भारतीय सैनिकों ने चीनी पक्ष को सौंप दिया। लड़ाई की भी एक नैतिकता होती है। इसके अलावा, चीनी सेना के एक कर्नल और करीब 15 सैनिकों को बंधक भी बनाया गया था। बीते रविवार उन्हें छोड़ दिया गया है, लेकिन अब तक चीन को एहसास हो गया होगा कि सामने भारत के पेशेवर सैनिक हैं। इसके बावजूद चीनी सैनिक एलएसी के पास डेरा डाले हैं। हमारे सैनिक भी तैनात हैं। लड़ाकू विमानों की गर्जनाएं खौफ पैदा कर रही हैं। बहरहाल द्विपक्षीय संधियों और समझौतों का महत्त्व तभी तक है, जब तक युद्ध के आसार न बनें। समझौते किए गए थे कि एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में गोलीबारी नहीं होगी। 10 किलोमीटर के इलाके में कोई हवाई उड़ान नहीं होगी। एलएसी पर परमाणु विस्फोट नहीं किया जाएगा। रात में गश्त भी नहीं की जाएगी। कोई स्थायी ढांचा भी निर्मित नहीं किया जाएगा। एलएसी पर वाहनों की संख्या भी सीमित होगी। यदि गोली और दूसरे आग्नेय अस्त्र चलाने की छूट देने की नौबत आई है, तो उसके लिए चीन जिम्मेदार है। अभी तक दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोली नहीं चली थी, लेकिन जिन आदिम हथियारों से और घात लगाकर चीन ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया, उसके जरिए चीन ने ही द्विपक्षीय समझौते को खारिज किया। लिहाजा समझौता बेमानी हो गया और भारत को भी गोली चलाने का फैसला लेना पड़ा। चीन की सीमाएं 23 देशों से लगती हैं। ऐसा क्यों है कि सभी देशों के साथ उसके विवाद हैं, रिश्ते खराब हैं? क्योंकि चीन फितरत से ही कब्जेबाज और विस्तारवादी है। कमोबेश भारत के संदर्भ में उसे याद रखना चाहिए कि भारत की सेना 1962 वाली नहीं, आज 2020 वाली है, लिहाजा पलटजवाब भी उतना ही आक्रामक होगा। मौजूदा हालात ऐसे हैं कि लेह, श्रीनगर और आसपास के इलाकों में हमारे भी लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर तैनात हैं, आईटीबीपी के 2000 अतिरिक्त जवान भी वहां बुलाए गए हैं, सभी जवानों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं, घर गए सैनिकों को वापस मोर्चों पर बुलाया जा रहा है और सिर्फ 72 घंटे में हमने एक पुल बना दिया है। जाहिर है कि हालात सामान्य नहीं हैं। इस निर्णय की प्रतिक्रिया पर चीन धमकी-सी दे रहा है कि भारत को अंजाम भुगतना पड़ेगा। अब जो भी होगा, लेकिन चीन को चीन के अंदाज में ही जवाब देना सही रणनीति है।