अनिल अनूप
इस बार दिवाली ‘बारूदी’ रही। छोटी दिवाली और मुख्य पर्व पर भी पाकिस्तान अपनी ना’पाक हरकतों से बाज नहीं आया और सरहद पार से भारी गोलाबारी की-मोर्टार, ग्रेनेड और अन्य हथियारों के जरिए। स्थानीय लोगों के मुताबिक, गोलाबारी सुबह से देर रात तक जारी रही, जिसमें कई घर जल गए, जमीन भुन गई और छतों के छप्परों में गहरे छेद हो गए। शायद यही सरहदी इलाकों की नियति है! पाकिस्तान ने इतना भी सम्मान नहीं रखा कि भारत में दीपावली जैसा पवित्र त्योहार मनाया जा रहा है और सीमा से सटी पोस्ट पर प्रधानमंत्री मोदी सैनिकों के संग दिवाली मनाने जा रहे हैं, लेकिन उसने लगातार संघर्षविराम का उल्लंघन किया। इस साल अभी तक पाकिस्तान ने 4000 से ज्यादा बार युद्धविराम के समझौते को तोड़ा है। तो फिर ऐसी संधि के मायने क्या हैं? बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर दीपावली देश के जांबाज सैनिकों के साथ मनाई और उनका मुंह मीठा कराया, उपहार बांटे गए। अब यही प्रधानमंत्री की निरंतरता है और सीमाओं पर मुस्तैद रणबांकुरे ही उनके परिजन हैं। यकीनन अभूतपूर्व और लीक से हटकर प्रधानमंत्री…! उन्होंने करीब 50 साल पहले 1971 की लोंगेवाला जंग और उसके ‘महावीर नायक’ मेजर कुलदीप सिंह और उनके पराक्रमी सैनिकों की यादें भी ताजा कर दीं।
उस युद्ध को भीषणतम की श्रेणी में रखा गया है। दुश्मन पाकिस्तान की टैंकों और दूसरे अस्त्रों वाली सेना को, रेगिस्तान के भारतीय रणबांकुरों ने, ऐसा जबड़ातोड़ जवाब दिया था कि दुश्मन कांपती टांगों से भाग भी नहीं सका। टैंकों और बारूदी हथियारों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। मेजर कुलदीप को ‘महावीर चक्र’ से विभूषित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार की दिवाली के लिए लोंगेवाला पोस्ट को जानबूझ कर चुना था, ताकि पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी कड़ा संदेश दिया जा सके। लोंगेवाला पोस्ट वाले इलाके में ही सीमापार चीन अपने वायुसेना अड्डे और दूसरे ढांचे तैयार कर रहा है। जाहिर है कि पाकिस्तान के साथ उसके मंसूबे भी साफ हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने एक टैंक पर सवार होकर सैनिक के प्रतीक रूप को भी जिया। उसकी गर्जना और दहाड़ पाकिस्तान-चीन ने सुन ली होगी! लेकिन पाकिस्तान तो ‘लातों का भूत’ है। राजनयिक, त्योहारी और सांस्कृतिक भाषा को क्यों सुनेगा और समझेगा? लिहाजा बार-बार उसके दिल्ली स्थित उच्चायुक्त को तलब कर अपना विरोध जाहिर करना भी बेमानी है। पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी को ही चुना बारूदी खेल खेलने के लिए..! सबसे ज्यादा नुकसान भी उरी इलाके में हुआ है, जहां सेना के शिविर पर हमला करने और एक साथ 18 जवानों को ‘शहीद’ करने के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर तबाही मचाई थी। क्या फिर वैसा ही ऑपरेशन दोहराया जाएगा? बहरहाल सरहद पार से केरन, तंगधार, उरी, गुरेज और नौगाम आदि इलाकों में भारी गोलाबारी की गई। रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया गया। चारों ओर धुआं-धुआं और इनसानी चीखें…! हमने टीवी चैनलों पर खौफजदा, चीखती और भागती भीड़ को देखा है, जिसमें बच्चे, बूढ़े और औरतें भी थीं। क्या ऐसे दृश्यों के लिए ही युद्धविराम की संधि की गई थी? इसी नवंबर माह में ही 128 बार संघर्षविराम के समझौते का उल्लंघन किया जा चुका है।
हमारे पांच सुरक्षाकर्मियों ने ‘सर्वोच्च बलिदान’ दिया और आधा दर्जन नागरिक भी मारे गए। यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है। घायलों का ब्यौरा अधूरा है। पाकिस्तान को ‘अघोषित युद्ध’ के जरिए क्या हासिल हुआ? जाहिर था कि हमारे सैनिकों को पलटवार करना ही था। जांबाजों ने भी ऐसे बारूदी प्रहार किए कि पाकिस्तानी फौजी भाग भी नहीं सके। उसके कई बंकर, ईंधन के भंडार, आतंकियों के लॉन्च पैड, चौकियां आदि को तबाह कर ‘मलबा’ बना दिया गया। लगातार दो दिन के आक्रमण में पाकिस्तान के 13-14 फौजी मार दिए गए। उनमें कुछ एसएसजी के कमांडो भी थे। 10-12 सैनिक घायल भी बताए गए हैं। लेकिन पाकिस्तान के संदर्भ में यह बहुत बड़ा ‘अर्द्धसत्य’ है। यह कब तक जारी रह सकता है? नियंत्रण-रेखा के आर-पार तनाव बहुत घना होगा। दरअसल सरहद पार से ऐसी ना’पाक हरकतें, सर्दी के मौसम में, बर्फबारी से पहले, की जाती रही हैं। ना’पाक फौजी ‘कवच’ देकर आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश करते रहे हैं। बीते दिनों में ये नाकाम भी की गई हैं, लेकिन सवाल है कि आखिर पाकिस्तान के इस ‘छाया-युद्ध’ का इलाज क्या है? उसे कौन-सा सबक सिखाया जाए कि उसकी फौजी ताकत की रीढ़ ही टूट जाए। बेशक यह रणनीति प्रधानमंत्री, सुरक्षा सलाहकार, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और सेना प्रमुखों के बीच ही तय की जाएगी, लेकिन अपनी चिंता जताना भी लोकतंत्र का हिस्सा है।