रामजनम यादव का विश्लेषण
आज के परिवेश मे जिस तरह से भारतीय मीडिया का चाल,चरित्र और चेहरा सत्ताप्रस्त हो गया है, उपरोक्त पंक्तिया इनके उपर स्टीक बैठती हैं।
आज देश मे बढती मंहगाई,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे कई तरह के मुद्दे हैं लेकिन मीडिया को नजर नही आते अलबत्ता सुशांत सिंह,रिया चक्रवर्ती और कंगना रनौत के अंगने का मुद्दा उछालकर जनता को गुमराह करने का कुत्सित प्रयास जारी है ।
क्या यह देश और जनता का मुद्दा है?
देश मे बढती बेरोजगारी के कारण आज करोड़ो लोग बेरोजगार होकर भूखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं, दो जून की रोटी जुटा पाना इनके बूते से बाहर होता जा रहा है ।
आये दिन देश मे किसान, मजदूर व छात्र आत्महत्या करने पर मजबूर हैं लेकिन मीडिया सत्ता का भोंपू बन हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाक, भारत-चीन का राग अलापने मे व्यस्त है ।
क्या ये देश,समाज और जनता के मुद्दे हैं?
देश मे दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या करने की दर साल 2019 मे 23•4 प्रतिशत तक बढी है, साल 2019 मे कुल 139,123 लोगो की आत्महत्या करने खबर है, जिसमे 32,563 सिर्फ दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनकी संख्या लगभग एक चौथाई है, यह नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2019 के जारी आंकडे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार वर्ष 2013 के अनुपात मे यह संख्या वर्ष 2019 मे दोगुना होकर 23•4 प्रतिशत हो गई, हलांकि, इस आंकड़े मे कृषि सेक्टर के कामगारों मजदूरों को शामिल नही किया गया है ।
सबसे अधिक साल 2019 में तमिलनाडु के अंदर 5,186 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की, इसके पश्चात महाराष्ट्र में 4,128 मजदूर, इसके बाद मध्यप्रदेश में 3,964 मजदूर, फिर 2,858 तेलंगाना में और 2809 मजदूरों ने केरल में आत्महत्या की।
इन आंकड़ों के मुताबिक दिहाड़ी मजदूरों के बाद दूसरे नंबर पर साल 2019 में गृहणियों की आत्महत्या की खबर है, इस दौरान 15•4 फ़ीसदी यानी 21,359 गृहणियों ने भी आत्महत्या की, गॄहणियों व कृषि सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या के मामले में हालांकि कुछ कमी आई है, कृषि सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों के लिए एक अलग उप-श्रेणी है, और साल 2019 में हुई कुल आत्महत्याओं की तुलना में से 3.1 फ़ीसदी लोग इस से जुड़े हुए हैं।
सरकारी एजेंसी एनसीआरबी ने तो “एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड्स” की श्रेणी में मजदूरों की आत्महत्या को साल 2014 से ही वर्गीकृत करना शुरू कर दिया था,
इस कैटेगरी के तहत 12% आत्महत्या हुई लेकिन 2014 के मुकाबले 2015 के बाद इसमें बढ़त होती रही है, 17.8 फीसदी की दर से साल 2015 में इसमें वृद्धि देखी गई थी, जबकि साल 2016 के दौरान 19.2 फीसदी, साल 2017 में 22.1 फीसदी और 23.4 फ़ीसदी 2019 में दर्ज की गई।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार इन आत्महत्याओं को 9 श्रेणियों में विभक्त किया गया है, जिसमें दिहाड़ी मजदूर ग्रहणियों व कृषि सेक्टर में काम करने वालों के अलावा सेवानिवृत्त, स्वरोजगार, बेरोजगार, छात्र वेतन भोगी/पेशेवर और अन्य लोगों को शामिल किया है।
रिपोर्ट के अनुसार इन आंकड़ों में केवल आत्महत्या करने वाले लोगों व उनके पैसों को दर्शाया गया है।
आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों का अनुपात साल 2019 में 10.1 फ़ीसदी तक पहुंच गया है, जबकि एनसीआरबी के 1995 में आंकड़े जारी करने के बाद गुजर चुके 25 साल में पहली बार यह दोहरे अंक तक पहुंच गया गया है।
साल 2019 में लगभग 14,019 लोगों ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या की थी, जिसमें साल 2018 में 12936 बेरोजगारों की आत्महत्या की तुलना करें तो 8.37 फीसदी का उछाल पाया गया है।
देश के पांच राज्यों जहां पर बेरोजगारों के द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या की गई है, उसमे केरल – 10963 – तमिलनाडु -1368- कर्नाटक -1293 – महाराष्ट्र -1511 और ओडिशा – 858 शामिल है।
बेरोजगारों की आत्महत्याओं की संख्या में साल 2019 के मुकाबले साल 1997 में हुई बेरोजगारों की आत्महत्या की संख्या को काफी पीछे छोड़ दिया है।
साल 1997 के दौरान 9.8 फीसदी बेरोजगारों द्वारा आत्महत्या की गई थी, वहीं साल 2019 में यह आंकड़ा 10.1 फीसदी दर्ज है, आज से लगभग 13 वर्ष पूर्व साल 2007 के दरमियां बेरोजगारों की आत्महत्या दर 6.9 फीसदी सबसे कम रही, जबकि सन 1995 से लेकर लगभग 9 वर्षों के दौरान सन 2004 तक यह दर 8 फ़ीसदी से अधिक दर्ज हुई थी, लेकिन उसके बाद इस में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है।
(डेटा एनसीआरबी के आंकड़े व समाचार-पत्रों के विश्लेषण के अध्यन पर आधारित )