अनिल अनूप
विश्वव्यापी कोरोना वायरस की महामारी से जूझते हुए केंद्र सरकार कई मोर्चों पर लड़ रही है। उसकी पहली प्राथमिकता जहां संक्रमण रोकने और लोगों की जीवन रक्षा की है, वहीं बीमार चिकित्सातंत्र को प्राणवायु देने की कोशिश भी जारी है। नि:संदेह लाइलाज कोरोना वायरस ने यह सबक तो दिया है कि बड़ी विकास परियोजनाओं से पहले चिकित्सातंत्र को मजबूत बनाने की जरूरत है। बहरहाल, तीन सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रभावित लोगों के जीवनयापन को सुगम बनाने की दिशा में आर्थिक पैकेज की घोषणा करके केंद्र सरकार ने न्यायोचित कदम ही उठाया है। वहीं विश्वव्यापी मंदी की आहट को देखते हुए अर्थव्यवस्था में ऊर्जा का संचार करना भी जरूरी था। कहना कठिन है कि आर्थिक पैकेज की यह घोषणा लॉकडाउन से प्रभावित हर व्यक्ति को राहत दे पायेगी, मगर पैकेज की बड़ी राशि के जरिये हर कमजोर तबके को राहत देने की कोशिश हुई है। अस्सी करोड़ लोगों को आटा, चावल व दाल तीन माह तक मुफ्त देना भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धि कही जा सकती है। वहीं आठ करोड़ कमजोर वर्ग की महिलाओं को तीन माह तक मुफ्त गैस उपलब्ध कराना भी बड़ी बात है। नि:संदेह सरकार की यह पहल भारतीय लोकतंत्र के लोककल्याणकारी स्वरूप को ही प्रतिष्ठा देती है। बहरहाल, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बहुप्रतीक्षित आर्थिक पैकेज की घोषणा बताती है कि सरकार लॉकडाउन के प्रभाव को कम करने के प्रति संवेदनशील है। इस 1.70 लाख करोड़ के पैकेज के जरिये कोशिश हुई है कि देर-सवेर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। इस ऐतिहासिक राहत पैकेज में पेंशनधारी बुजुर्गों, विधवाओं, दिव्यांगों, किसानों, अकेले घर चलाने वाली महिलाओं, अकुशल श्रमिकों, छोटी कंपनियों के कर्मचािरयों को पीएफ में राहत तथा स्वयं सहायता समूहों की ऋण क्षमता को बढ़ाकर घर-घर राहत पहुंचाने की कोशिश हुई है। हालांकि यह कहना कठिन है कि पैकेज से लॉकडाउन से उपजे हालात में हुए नुकसान की पूरी तरह भरपाई हो पायेगी।
बहरहाल, इस चुनौती से उबरने के लिए सरकार ने अपने खजाने जनता के लिए खोल दिये हैं, जिसका आमतौर पर विपक्षी दलों ने भी किंतु-परंतु के साथ स्वागत ही किया है। कई मोर्चों पर जूझ रही सरकार के लिए विपक्ष का सहयोग राहतकारी है। नि:संदेह एक रचनात्मक विपक्ष की भूमिका वक्त की जरूरत भी है। संकट की इस घड़ी में हर व्यक्ति की कोशिश होनी चाहिए कि कोई गरीब व श्रमिक भूखा न सोये। सरकार का भी दायित्व है कि हर जरूरतमंद व्यक्ति तक समय रहते राहत पहुंच जाये। इसके क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं को समय रहते दूर कर लिया जाये। सरकार के कदमों का अहसास प्रभावित लोगों को होना चाहिए। राज्यों की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है। देश की बड़ी आबादी की कोरोना वायरस से जांच, संक्रमण रोकने, जरूरी चिकित्सा सुविधाओं व उपकरणों की उपलब्धता के साथ यह भी जरूरी था कि घर की चारदीवारी में बंधे लोगों का मनोबल ऊंचा रहे। उन्हें किसी तरह की आर्थिक चिंताओं से दो-चार न होना पड़े। खासकर गरीबी के नीचे रहने वाले लोगों को। इसी बीच आरबीआई ने हालात की गंभीरता को समझते हुए मौद्रिक नीति के जरिये भी लोगों को राहत देने का प्रयास किया है। केंद्रीय बैंक ने जहां रेपो दर में 0.75 प्रतिशत की कटौती की है वहीं रिवर्स रेपो दर में 0.90 प्रतिशत की कमी की है। साथ ही नकद आरक्षित अनुपात में भी एक प्रतिशत की कटौती की गई है। मकसद यही है कि बैंकों में मुद्रा की तरलता बढ़े और बैंक कम ब्याज दरों पर लोगों को ऋण उपलब्ध करा सकें। नि:संदेह बैंकों के पास नकदी बढ़ने से लॉकडाउन खत्म होने पर अर्थव्यवस्था को गति मिल सकेगी। आरबीआई ने सार्थक पहल करते हुए वित्तीय संस्थाओं से कहा है कि सावधिक कर्ज की किस्तों की वसूली में तीन महीने की छूट ग्राहकों को दी जाये। बैंक को विश्वास है कि देश की अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है और 2008 की मंदी जैसी किसी स्थिति से निपटने में सक्षम है।