अनिल अनूप
एक बार फिर हमें कोरोना वायरस और संक्रमण से जुड़े डाटा का जिक्र करना पड़ रहा है। संक्रमण की जांच के बाद तय किया जाता है कि कितना आंकड़ा देश के सामने प्रस्तुत किया जाना है और शेष आंकड़े बाद में जारी किए जा सकते हैं। उस डाटा के आधार पर ही कोरोना वायरस के संभव उपचार का मॉडल तैयार किया जाता है। चूंकि वह मॉडल ही बुनियादी तौर पर गलत है, लिहाजा सरकारी प्रयास भी नाकाम हो सकते हैं। यह टिप्पणी पूरे देश के संदर्भ में नहीं की जा सकती, क्योंकि दिल्ली सरीखे अर्द्धराज्य ने कोरोना के आक्रामक प्रहार के बाद उसे नियंत्रित करके दिखाया है। वहां कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होकर घर लौटने वाले, सबसे अधिक, करीब 44 फीसदी हैं। दिल्ली में ठीक होने की दर देश में सर्वाधिक 80 फीसदी से ज्यादा है। देश में सात राज्य ऐसे भी हैं, जहां ठीक होने का औसत 70 फीसदी से ज्यादा है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान ये रुझान सुखद लगते हैं। सवाल यह है कि क्या ऐसा संपूर्ण डाटा सौ फीसदी सही और सटीक आंकड़ों पर आधारित है? अमरीका में सक्रिय भारत मूल के एक वायरस विशेषज्ञ चिकित्सक ने खुलासा किया है कि अप्रैल के दौरान किसी सरकारी संस्थान ने सर्वे कराया था और निष्कर्ष सामने आया था कि करीब एक करोड़ लोगों में एंटीबॉडी पाई गई। इसका साफ अर्थ था कि एक करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए। अप्रैल से जुलाई तक कोरोना संक्रमण के फैलाव की जो गति रही है, उसके आधार पर ही आज कमोबेश 12-15 करोड़ संक्रमित मरीज होने चाहिए थे। यह संख्या सुनने और पढ़ने में बहुत चौंकाती है, लेकिन न तो प्रख्यात चिकित्सक और न ही हमारा कोई आरोप या संदेह है कि कोरोना से संक्रमित लोगों का सही डाटा क्या होना चाहिए। यह हमारा अधिकार-क्षेत्र भी नहीं है। यदि लोगों की जांच के बाद आंकड़ों पर आधारित डाटा में गड़बड़ी होती रही है, तो यह सरकार का दायित्व है कि वह सच को देश के सामने पेश करे। लेकिन ‘शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार’ से सम्मानित और 100 से अधिक शोध-पत्रों के लेखक चिकित्सक ने कुछ सवालिया कहा है, तो उसे सार्वजनिक करना चाहिए और सरकार भी गंभीर विचार करे। वैसे भी भारत में पहले 110 दिनों के अंतराल में एक लाख संक्रमित मरीज ही सामने आए थे, लेकिन आगामी 56 दिनों में सवा आठ लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं। हमारे लिए तो यह आंकड़ा भी बेपरवाह होने वाला नहीं है। बेशक मृत्यु-दर 2.63 फीसदी है। स्वस्थ होने का राष्ट्रीय औसत 63 फीसदी से ज्यादा है और संक्रमण की दर भी घट रही है। प्रख्यात चिकित्सक का इस संदर्भ में भी शोध है कि यदि 20 लोगों के टेस्ट किए जाएं और मात्र एक ही कोरोना पॉजिटिव केस निकले, तो टेस्टिंग पर संतोष किया जा सकता है, लेकिन भारत में 8-9 टेस्ट करने पर औसतन एक मरीज संक्रमित मिल जाता है, तो उसके साफ मायने हैं कि टेस्टिंग पर्याप्त नहीं है। टेस्टिंग का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि उसके जरिए ही सच सामने आ पाता है कि संक्रमण कितना है? उसका फैलाव कितना और कहां-कहां हुआ है? यदि दुनिया के स्तर पर हमारी मृत्यु-दर का विश्लेषण करें, तो हमारी 10 लाख आबादी के पीछे सिर्फ 17 मौतें होती हैं, जबकि यह आंकड़ा और औसत अमरीका में 400 से अधिक है और ब्रिटेन में 660 है। दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों में कोरोना से होने वाली मौतों की औसत दर कम ही है। प्रख्यात चिकित्सक का आकलन है चूंकि दक्षिण एशिया के लोग डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया या अन्य वायरस को झेलते रहते हैं, लिहाजा उन पर कोरोना का असर यूरोप और अमरीका जैसा जानलेवा नहीं है। बहरहाल मंगलवार रात तक भारत में कोरोना के कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 9,36,181 तक पहुंच गई। मौतें 24,309 हो चुकी हैं। बीते 24 घंटे में 29,429 नए मामले आए, जबकि 20,572 ठीक होकर अपने घर लौट भी गए। अब यह आंकड़ा 20-25 लाख कहां तक पहुंचेगा, उसका अनुमान सहज तौर पर लगाया जा सकता है, लेकिन जो सुखद रुझान देश के सामने पेश किए जा रहे हैं, कहीं वे ‘अर्द्धसत्य’ डाटा के नतीजे तो नहीं हैं?