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जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद लागू इंटरनेट प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने इंटरनेट को लोगों की अभिव्यक्ति का अधिकार बताया। कोर्ट ने कहा कि नि:संदेह कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है मगर इंटरनेट फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत आता है। साथ ही इंटरनेट बंद करना न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर सभी पाबंदियों की समीक्षा की जाए। जस्टिस एन.वी. रमन्ना, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय बेंच ने कश्मीर में लॉकडाउन की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह बात कही। अदालत ने केंद्र सरकार की कार्यशैली पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी राज्य में सुरक्षा और मानवीय आजादी में संतुलन बनाने की जरूरत होती है। विषम परिस्थितियों में संविधान के कुछ सिद्धांतों के अनुरूप ही स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता हैै। जब जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा और आजादी का संतुलन बनायें तो इन बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा। कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि राज्य में जब संचार माध्यमों और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाये गये तो इससे जुड़े आदेश न तो प्रकाशित किये गये और न ही अदालत को सौंपे गये। अदालत ने ऐसे ही टिप्पणी धारा 144 लगाये जाने के खिलाफ की और इससे जुड़े आदेश के प्रकाशित न होने की बात कही। जाहिरा तौर पर सरकार को इशारा किया गया कि इंटरनेट पर प्रतिबंध और धारा 144 लगाये जाने से पहले प्रतिबंध की सीमाओं का ध्यान रखना भी जरूरी होगा। नि:संदेह आज जब तमाम कारोबार इंटरनेट के जरिये पूरी दुनिया से जुड़े हैं तो इंटरनेट के बंद होने से कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है। साथ ही कश्मीर में मीडिया संस्थानों को इंटरनेट बंद होने से परेशानी का सामना करना पड़ा है।
नि:संदेह बीते पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के हटने के बाद दूरसंचार पर लागू प्रतिबंधों में सरकार ने धीरे-धीरे ढील दी थी। राज्य में कुछ इलाके सामान्य स्थिति की ओर लौट रहे हैं। राज्य में पोस्टपेड मोबाइल सेवा और लैंडलाइन फोन सेवाएं बहाल कर दी गई हैं, मगर प्रीपेड मोबाइल सेवा और इंटरनेट सेवाएं अभी शुरू होना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि जहां सुरक्षा की बड़ी चुनौती न हो और जरूरत हो, वहां इंटरनेट सेवा बहाल की जाये। कोर्ट का तर्क था कि सरकार किसी भी प्रतिबंध की सूचना पब्लिक डोमेन में डाले ताकि लोग कोर्ट जा सकें। सरकार एक बार फिर इंटरनेट पर प्रतिबंध की समीक्षा करे। कोर्ट ने अपने आदेश में सभी सरकारी और स्थानीय निकायों की वेबसाइटों की बहाली का भी आदेश दिया, जहां इंटरनेट का दुरुपयोग न्यूनतम है। इसे अनिश्चितकाल तक बंद नहीं किया जा सकता, जहां जरूरत है वहां इसे बहाल किया जाये। अदालत ने महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत पाबंदियों को लागू करते समय नागरिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के खतरे के मद्देनजर अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही सत्ताधीशों को चेताया कि सीआरपीसी के तहत धारा 144 का बार-बार आदेश देना एक किस्म से सत्ता का दुरुपयोग है। साथ ही यह भी कि प्रतिबंधात्मक उपायों को लागू करने के लिये अानुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के संबंध में हमें एक संतुलन खोजना चाहिए। सुरक्षा होनी चाहिए मगर मानवाधिकारों का भी सम्मान किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जहां संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इंटरनेट का अधिकार शामिल है, वहीं इंटरनेट पर प्रतिबंधों पर अनुच्छेद 19(2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना होगा। इंटरनेट पर अनिश्चितकाल तक प्रतिबंध स्वीकार्य नहीं है।