अनिल अनूप
मां भारती के महान रणबांकुरों की अंतिम विदाई भी हो गई। पार्थिव शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गए। बेहद भावुक क्षण थे, लेकिन हमारी वीरांगनाओं ने आंसुओं को आंखों में ही अटकाए रखा। रोना उन शहीदों और उनके सर्वोच्च बलिदानों का अपमान होता! शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की पत्नी ने तो उनके शव को मुखाग्नि तक दी। एक अनूठा और लीक से हटकर स्थापित किया गया उदाहरण…! शहादतें आतंकवाद या युद्ध के दौर की सामान्य त्रासदियां हैं। उनकी गणना और शोक मनाना एक सच्ची श्रद्धांजलि नहीं है। चूंकि यह कोरोना वायरस का आपदाकाल है और खुद पाकिस्तान भी इससे संक्रमित है। मौतें हो रही हैं। एक कटोरा चीन की तरफ फैला है, तो दूसरी ओर भारत से भी एक खास दवा की गुहार की गई है। हम अमरीका समेत 24 देशों को वह दवा मुहैया करा चुके हैं। शायद पाकिस्तान को भी दवा भेजी जा रही है, क्योंकि सरोकार इंसानियत और जिंदगी बचाने का है, लेकिन ऐसे त्रासद दौर में भी पाकिस्तान अपनी पुरानी फितरत से बाज नहीं आ रहा है। आतंकियों की घुसपैठ और सुरक्षा बलों, सेना के जवानों पर लगातार हमले जारी हैं। बीते अप्रैल माह में ही हमारे 11 जवान शहीद हुए हैं। शनिवार और सोमवार के बीच आतंकी हमलों में आठ रणबांकुरों ने शहादत दी। कर्नल और मेजर सरीखे सैनिक अफसर भी उनमें थे। बडगाम के ग्रेनेड हमले में भी दो जवान और चार स्थानीय नागरिक घायल हुए। हालांकि इस दौर में हमारे सैनिकों ने भी पलटवार करते हुए 29 आतंकियों को ढेर किया और डोडा से हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी तनवीर अहमद को गिरफ्तार किया है। वह जिंदा आतंकी पाकिस्तान की साजिशों और व्यूह-रचना को बेनकाब करेगा। एक और पुलवामा ऑपरेशन में एक आतंकी मारा गया और हिजबुल के टॉप कमांडर रियाज नायकू को अवंतीपोरा में घेर लिया गया है। यह आलेख लिखने के समय तक की खबर है, लिहाजा उस आतंकी की नियति भी तय लगती है। बहरहाल इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने एनएएम आयोजन की वीडियो कांफ्रेंस के दौरान पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही उसे ‘आतंकवाद का वायरस’ करार दे दिया, तो यह मुद्दा विश्लेषण की श्रेणी में आ गया। हालांकि देश का आम संजीदा नागरिक आग्रह करता रहा है कि इस बार का सर्जिकल स्ट्राइक ज्यादा व्यापक और तेज होना चाहिए। रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि यदि पाकिस्तान जंग चाहता है, तो भारतीय सेनाओं को भी उसके लिए तैयार रहना चाहिए। यकीनन केंद्र सरकार और सेना नेतृत्व के स्तर पर ऐसी किसी रणनीति पर विचार भी किया जा रहा होगा, जिसके तहत बालाकोट से भी तीखे और गहरे सबक सिखाए जा सकें। बेशक पाकिस्तान शैतान है और उसका यह वायरस कब तक फैलता रहेगा? हालांकि पाकिस्तान को फाटफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) के सामने अभी यह साबित करना है कि वह आतंकियों को प्रश्रय या समर्थन नहीं देता, बल्कि उसने आतंकी गुटों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की है। शायद इसीलिए कुछ हमले आरटीएफ बैनर के तले घोषित किए जाते रहे हैं। यह लश्कर का नया नाम बताया जाता है, लेकिन ऐसे असंख्य साक्ष्य हैं कि पाकिस्तान आतंकियों को अब भी सीमापार से भेजता रहा है, क्योंकि गिरफ्त में आए जिंदा आतंकी खुलासा करते रहे हैं कि वे पाकिस्तान की अमुक जगह के निवासी हैं और खुफिया एजेंसी आईएसआई अब भी पैसे बांट रही है। सवाल यह भी आश्चर्यजनक है कि जो पाकिस्तान भुखमरी, कर्ज और बेहाली के घेरे में जकड़ा हुआ है, जो हुकूमत अपने कोरोना संक्रमित नागरिकों को बचाने में कन्नी काटती रही हो, उस देश की खुफिया एजेंसी के पास कहां से इतना धन आता है कि वह आतंकियों को लगातार पाल सके और उनके हमले भी प्रायोजित कर सके? इस बीच पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने वहां की सरकार पर जो टिप्पणियां की हैं, उन्हें देखते हुए तो हुकूमत और हुक्मरानों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन पर हम क्या कहें?