करवा चौथ का पर्व सनातन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं. महिलाएं कुछ दिन पहले से ही करवा चौथ की तैयारी शुरू कर देती हैं, जिसमें श्रंगार (श्रंगार), गहने, और पूजा की वस्तुएं जैसे करवा दीपक, मेंहदी और सजाई गई पूजा थाली की खरीद शुरू कर दी जाती हैं. करवा चौथ के अवसर पर, उपवास करने वाली महिलाएं अपना सर्वश्रेष्ठ दिखने के लिए करवा चौथ के विशेष कपड़े जैसे पारंपरिक साड़ी या लहंगा पहनना पसंद करती हैं. कुछ क्षेत्रों में महिलाएं अपने राज्यों के पारंपरिक परिधान पहनती हैं. करवा चौथ का उपवास भोर से शुरू होता है. व्रत रखने वाली महिलाएं दिन में भोजन नहीं करती हैं. हिंदू पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ पर व्रत के साथ कई तरह के अनुष्ठान करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं, पति, दोस्त को संदेश भेजकर शुभकामनाएं देती हैं.. इस व्रत में सास अपनी बहू को सरगी देती है. इस सरगी को लेकर बहुएं अपने व्रत की शुरुआत करती हैं. सूर्योदय से पूर्व सुहागन सरगी का सेवन करती है इसके बाद रात में चंद्र दिखने के बाद जल चढ़ा कर व्रत खोलती हैं.
सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत रखने का संकल्प लें. शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें. गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं. तथा भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की चीजें अर्पित करें. साथ ही श्री कृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं. अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं. और मिट्टी के करवे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं. फिर करवे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी से चांद के दर्शन करें. और चन्द्रमा को अर्घ्य दें. करवा चौथ के दिन महिलाओं को करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए. और कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों के पैर जरूर छुएं. इस दिन पति को प्रसाद देकर भोजन कराएं और बाद में खुद भी भोजन करें.
विभिन्न शहरों में चंद्रोदय का समय
वैसे तो करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय रात 08:11 बजे है, लेकिन अलग-अलग शहरों में यह समय अलग-अलग हो सकता है.
दिल्ली: 08 बजकर 08 मिनट
नोएडा 08 बजकर 07 मिनट
मुंबई 08 बजकर 47 मिनट
लखनऊ: 07 बजकर 56 मिनट
देहरादून: 8 बजे
कानपुर- 08 बजकर 00 मिनट पर
मेरठ: 08 बजकर 05 मिनट
प्रयागराज- 07 बजकर 56 मिनट पर
आगरा : 08 बजकर 07 मिनट
अलीगढ़: 08 बजकर 06 मिनट
करवा चौथ का इतिहास
मान्यताओं के मुताबिक करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी तब भयभीत होकर देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की. ब्रह्मा ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए.
ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत निश्चित हो जाएगी. ब्रह्मा जी के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया.उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई.
करवाचौथ व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ को ललिता चर्तुथी और दशरथ चर्तुथी के नाम से भी जाना जाता है। व्रतधारी महिलाएं भोर पहर स्नान के बाद ललिता देवी का पूजन स्मरण करती हैं। मां ललिता देवी सौभाग्य की देवी हैं उनके स्मरण पूजन से घर में सुख, शांति, समृद्धि और संतान तथा पति की दीर्घायु का वर मिलता है। रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय होता है तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अघ्र्य देकर आरती उतारें और अपने पति का का दीदार करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। सुहागिन पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ की पूजा सामग्री : मां पार्वती, भगवान शंकर और गणपति की एक फोटो, कच्चा दूध, कुमकुम, अगरबत्ती, शक्कर, शहद, पुष्प, शुद्ध धी, दही, मेहंदी, मिष्ठान, गंगा जल, चंदन, अक्षत, महावर, कंघा, मेहंदी, चुनरी, बिंदी, बिछुआ, चूड़ी, मिट्टी का टोंटीदार करवा, दीपक और बाती के लिए रुई, गेंहू, शक्कर का बूरा, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, छन्नी, आठ पूड़ी की अठवारी, हलवा, तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे सिंदूर, चूडिय़ां शीशा, कंघी, सिंदूर सहित आदि सामग्री को थाल में सजाकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करती है।
पूजन में करें इन मंत्रों का उपयोग : ऊं शिवायै नम: से पार्वती माता का और ऊं नम: शिवाय से भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए। ऊं षण्मुखाय नम: मंत्र से स्वामी कार्तिकेय और ऊं गणेशाय नम: से भगवान गणेश का स्मरण करना चाहिए। ऊं सोमाय नम: से चंद्रमा का स्मरण करते हुए चंद्रमा को अघ्र्य देना चाहिए।