देश भर में बढ़ रही पेट्रोल और डीजल की कीमतों से एक तरफ आम आदमी परेशान है तो दूसरी तरफ किसानों और मछुआरों की भी मुसीबतें बढ़ गई है. तेल कीमतों की वजह से बढ़ती महंगाई सिर्फ आम जनता का ही बजट नहीं बिगाड़ रही, बल्कि इसका असर खेती और उन सभी व्यवसायों पर भी पड़ रहा है जो पेट्रोल और डीजल पर निर्भर हैं. देश के कुछ राज्यों में डीजल की कीमत 98 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है. इससे धान की खेती की लागत बढ़ गई है. तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर कोई कदम न उठाए जाने से लोग निराश और परेशान हैं.महंगाई की हालत जानने के लिए हमने तमिलनाडु में कुछ मछुआरों और यूपी के किसानों से जानने की कोशिश की कि तेल कीमतों का उन पर क्या असर पड़ रहा है.मछुआरों की आमदनी घटी, लागत बढ़ीकोरोना महामारी के साथ बढ़ती तेल कीमतों की वजह से तमिलनाडु के मछुआरों पर दोहरी मार पड़ी है. रामेश्वरम पोर्ट पर मछली पकड़ने के लिए कुल 700 फिशिंग बोट हैं. इनमें से 550 बड़ी और 150 छोटी नौकाएं हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद से ये सभी घाटे में चल रही हैं.मछुआरों के एक नेता सागयाराज ने कहा, “हमें हर दिन 20 हजार से 40 हजार का नुकसान हो रहा है. डीजल का दाम अब 98 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है. बड़ी नावों के लिए सिर्फ डीजल की लागत हर दिन 600 से 1000 रुपये तक होती है, जबकि छोटी नावों के लिए 250 से 500 रुपये का डीजल लगता है. समुद्र में जाते समय मछुआरों को बर्फ, तेल, नमक वगैरह साथ ले जाना होता है क्योंकि वे समुद्र में लंबे समय तक रहते हैं. पूरी एक ट्रिप में करीब 10 से 15 हजार रुपये खर्च होते हैं.”मछुआरों के एक और लीडर जसराज ने बताया, “एक तरफ ईंधन की कीमतें बढ़ रही हैं, तो जरूरी चीजों की कीमतें भी बढ़ रही हैं, लेकिन मछलियों की कीमतें अब भी स्थिर हैं. मसलन, झींगा की कीमत एक साल पहले भी 500 रुपये प्रति किलो थी और अब भी इतनी ही है.”लॉकडाउन के दौरान 61 दिनों तक मछली पकड़ने पर प्रतिबंध था. इसके बाद जिन मछुआरों ने फिर से मछली पकड़ना शुरू किया, उनका रोजाना खर्च आमदनी से ज्यादा है. मछुआरों ने अब बड़ी नावें नहीं चलाने का फैसला किया है. जसराज ने सरकार से अपील करते हुए कहा, “हम केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि वह हमारी मुसीबत को समझे और हमारी मदद करे. अगर ऐसा ही रहा तो हमें अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़कर कोई और रोजगार ढूंढना पड़ेगा.”डीजल के दाम से किसान परेशानबारिश न होने से किसान परेशान हैं तो वही डीजल के बढ़े दामों ने उनकी कमर तोड़ दी है. यूपी में डीजल के दाम 90 रुपये लीटर तक पहुंच चुके हैं. इस वजह से खेती करने वाले किसानों को आर्थिक तौर पर काफी मुश्किल हो रही है.बाराबंकी के गनौरा गांव में सिंचाई के लिए नहर नहीं है. यहां के ग्रामीण पंपिंग सेट से सिंचाई करते हैं, ये डीजल से चलते हैं. पंपिंग सेट से ही सिंचाई करके धान की रोपाई हो रही है. तेज धूप और गर्मी की वजह से पानी भी ज्यादा लग रहा है. किसानों का कहना है कि इस तरह तो धान की लागत भी नहीं निकलेगी. क्योंकि मंडियों में धान का सरकार द्वारा तय मूल्य भी नहीं मिलता है.धान का खेत जोत रहे किसान विक्रांत सैनी ने कहा कि “90 रुपये लीटर डीजल हो गया है. सिंचाई कैसे करें? धान की फसल बर्बाद हो रही है. सरकार को चाहिए कि डीजल के दाम कम करे.” वहीं किसान पवन यादव का कहना था, “किसानों को सरकार ने डीजल में सब्सिडी देने को कहा था, लेकिन नहीं दिया. आज 90 रुपये लीटर डीजल है. हम सब बहुत परेशान हैं.”धान के खेतों में पंपिंग सेट से सिंचाई कर रहे किसान फूलचंद्र यादव ने कहा, “इस बार सरकार ने डीजल भी 90 रुपये हो गया है. धान बेचने जाओ तो सरकारी मूल्य में बिचौलिया कमीशन लेते हैं. हमारी कोई सुनवाई नहीं है. किसान परेशान है.” पिछली 1 जुलाई 2020 को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डीजल का रेट 63.93 रुपये लीटर था जो कि 9 जुलाई 2021 को बढ़कर 90.08 रुपये हो गया है. यानी एक साल में डीजल करीब 26.15 रुपये लीटर महंगा हो गया है.खेती की लागत हुई डेढ़ से दोगुनीपूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, क्योंकि यहां धान की बेहतरीन किस्में पैदा होती हैं. हालांकि, इन दिनों यहां के किसान काफी परेशान हैं. एक तरफ बारिश नहीं हो रही है, वहीं दूसरी तरफ डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं. इस वजह से धान की खेती की लागत काफी बढ़ गई है.चंदौली के बसनी गांव के रहने वाले किसान केदार यादव कहते हैं कि “पानी बरस नहीं रहा है. हमारी जीविका कृषि पर आधारित है. इसलिए डीजल महंगा होने के बाद भी हमें पंपिंग सेट से सिंचाई करनी पड़ रही है. यह काफी महंगा है. धान की लागत डेढ़ से दोगुना बढ़ रही है.”चंदौली की अधिकांश आबादी कृषि पर आधारित है लेकिन बारिश न होने की वजह से महंगा होता डीजल किसानों के लिए मुसीबत बन गया है. सदलपुरा गांव के रहने वाले रामनाथ ने कहा, “हम लोगों ने धान का बीज डाल दिया है. उसको जिंदा रखना है और रोपाई भी करवानी है. डीजल से मशीन चलाकर सिंचाई कर रहे हैं. हम लोगों को दोगुना खर्च करना पड़ रहा है.”किसानों की मुसीबत सिर्फ सिंचाई ही नहीं है. अगर वे किसी तरह खेत तक पानी पहुंचा भी दें तो उसके बाद खेत की जुताई भी कम बड़ी समस्या नहीं है. डीजल का रेट 90 रुपये लीटर तक पहुंच गया है और ऐसे में ट्रैक्टर से खेत की जुताई काफी महंगी साबित हो रही है. चंदौली के ही धूस खास गांव के रहने वाले किसान मनोज कुमार मिश्रा बताते हैं कि “हम लोगों के लिए किसानी बहुत महंगी पड़ रही है. किसान पूरी तरह त्रस्त हैं.”कमजोर मॉनसून में पसीना निकाल रहा डीजलदशकों से सूखे की मार झेल रहे यूपी के बुंदेलखंड के हालात भी अलग नहीं हैं. सिंचाई के साधन ना होने के चलते लोग पंपिंग सेट से सिंचाई को मजबूर हैं. महंगे डीजल के चलते सिंचाई और ट्रैक्टर से जुताई किसानों का बजट बिगाड़ रही है.हमीरपुर के किसान संतोष सिंह का कहना है कि सरकार को डीजल की कीमतों को नियंत्रित करना चाहिए. इससे किसान सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है. एक और किसान प्रेम कुमार ने कहा कि डीजल की कीमतों ने किसानों की कमर तोड़ दी है. किसान खून के आंसू रो रहा है.किसान इकबाल खान ने बताया कि वे ट्रैक्टर से खेती करते हैं. उस पर डीजल के दाम किसानों की मुसीबत बढ़ा रहा है. बुंदेलखंड का किसान दशकों से चल रही दैवी आपदाओं से तबाह हो चुका है. इस साल डीजल की बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने संकट को और बढ़ा दिया है.