पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान कि उचांइयों को छू रहें हैं। सरकार का कहना है कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बेतहाशा बढ़ रही हैं, लिहाजा भारत में इसका असर देखा जा रहा है। वहीं सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के बाजार में ब्रेंट क्रूड (कच्चे तेल का बाजार) की कीमत 75 डॉलर प्रति डॉलर को पार कर गई है। इस शुक्रवार यह करिब 76.18 डॉलर को छू गया है। 29 अक्टूबर 2018 के बाद यह दर सबसे ज्यादा है। बतांदे कि पिछले साल कच्चे तेल के भाव महज 41 डॉलर प्रति बैरल चल रहा था वहीं भारत चूंकि तेल का अधिकांश हिस्सा आयात करता है।
ऐसे में पेट्रोल-डीजल के दामों के साथ साथ चावल, आटा से लेकर चीनी और दाल तक, सबपर कुछ न कुछ पैसा बढ़ गया है। आंकड़ो के मुताबिक कुल बरसों की तुलना में खाद्य वस्तुओं की महंगाई खूब बढ़ी है।
एफएमसीजी के सामान नया रिकॉर्ड बना रहे हैं। जिन वस्तुओं पर दाम नहीं बढ़े हैं, उसे पहले वाले रेट पर रखते हुए उसकी मात्रा घटा दी गई है। महंगाई कितनी बढ़ी है ये जानने के लिए आप संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) का फूड प्राइस इंडेक्स (FPI) देख सकते हैं। एफपीआई का कांटा अभी 127.1 पॉइंट्स को छू रहा है जो साल 2011 के बाद सबसे उच्चतम बिंदु है। यह आंकड़ा बता रहा है कि पूरी दुनिया अभी उच्च महंगाई दर से जूझ रही है और इससे कब निजात मिलेगी, इसके विषय मे कुछ नहीं कह सकते।
दुनिया भर मे महंगाई के इस आलम में भारत के लिए खुशखबरी है। एफएओ ने एफपीआई का जो आंकड़ा दिया है, उस हिसाब से भारत लगभग महंगाई से अछूता है। महंगाई से पूर्णतः छूट प्राप्त नहीं कह सकते, लेकिन जिस कदर महंगाई समूची दुनिया को प्रभावित कर रही है, उसकी तुलना में भारत अभी कम संकट में है। अभी हाल में जारी हुए आंकड़े बताते हैं कि एनुअल कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CFPI) पर आधारित महंगाई दर मई महीने में 5 परसेंट थी, एफएओ-एफपीआई के 39.7 परसेंट महंगाई के आगे भारत की महंगाई दर 5 परसेंट आंकी गई है।
हालांकि अनाज, दूध और सब्जियों के दाम में विदेशी बाजार का असर नहीं दिखता। इसलिए महंगाई से ये बिना किसी प्रभाव के होते हैं। आने वाले समय में भारत में खाद्य वस्तुओं की महंगाई मुख्य तौर पर 4 फैक्टर पर निर्भर करेगी।
पहला, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव। इसका असर खाद्य तेल और दालों पर दिख रहा है। दुनिया में जब तक इन चीजों के दाम नहीं घटेंगे, तब तक भारत में भी घटना मुश्किल है।
दूसरा फैक्टर मॉनसून है। अभी तक मॉनसून की रफ्तार ठीक है और मई-जून में अच्छी बारिश देखी गई है। जुलाई-अगस्त में इस पर नजर रहेगी क्योंकि उस वक्त खरीफ फसलों की वृद्धि हो रही होगी। अगर मॉनसून ठीक रहा तो आने वाले महीने में महंगाई नीचे जाएगी या काबू में रहेगी।
तीसरा फैक्टर, कच्चे तेल के दाम हैं। अभी इसका असर सीमित होगा क्योंकि बाजार पूरी तरह से नहीं खुला है। दूध का उदाहरण ले सकते हैं कि पहले की तुलना में डीजल के दाम प्रति लीटर 15-16 रुपये तक बढ़ गए हैं और दूध की पैकेजिंग से लेकर ढुलाई तक पर लागत बढ़ी है, लेकिन दूध कंपनियों ने अभी तक दाम स्थिर रखे हैं। कंपनियों ने इसे बैलेंस में रखने के लिए दूध किसानों को मिलने वाला पैसा कुछ घटा दिया है। कंपनियों ने उपभोक्ताओं पर बोझ न डालते हुए उत्पादकों के मिलने वाले पैसे में कुछ कमी कर दी है।
चौथा फैक्टर राजनीतिक है। एनडीए की पहली सरकार में महंगाई दर 3.3 परसेंट थी जो दूसरे टर्म में 7.4 परसेंट तक पहुंच गई थी. किसान आंदोलन के चलते सरकार ने एमएसपी बढ़ाई है, साथ ही गेहूं और धान की रिकॉर्ड खरीद हुई है। आगे उत्तर प्रदेश चुनाव है जिसमें देखना होगा कि चीनी की कीमतें कितनी बढ़ती हैं ताकि चीन मिल उस दाम का फायदा किसानों को दे सकें।