दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश वैश्विक न्यूनतम कर (ग्लोबल मिनिमम टैक्स) के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं। लेकिन प्रस्तावित व्यवस्था को लेकर सभी देश खुश नहीं हैं। गुरुवार को अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने एलान किया कि इस प्रस्ताव को 130 देशों ने मंजूरी दे दी है, जो दुनिया की अर्थव्यवस्था के 90 फीसदी हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं। लेकिन उसके तुरंत बाद मीडिया में आई खबरों से जाहिर हुआ कि कई देशों के जोरदार विरोध के बावजूद येलेन ने इस प्रस्ताव पर आम सहमति बनने की घोषणा की है।
ग्लोबल मिनिमम टैक्स का प्रस्ताव अमेरिका की पहल पर आया। हाल में हुई जी-7 देशों की शिखर बैठक में भी इस पर चर्चा हुई थी। उसके बाद धनी देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के मंच पर इस बारे में बातचीत आगे बढ़ी। खबरों के मुताबिक अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने इस पर सहमति बनाने के लिए अपने पूरे प्रभाव का इस्तेमाल किया है। इस प्रस्ताव के तहत दुनिया की 100 सबसे बड़ी कंपनियों को हर साल अपनी आमदनी का 15 फीसदी कॉरपोरेशन टैक्स के रूप में देना होगा, चाहे उन्होंने अपने दफ्तर कहीं भी रजिस्टर करा रखे हों।
वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू की एक खबर के मुताबिक नौ देश इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध कर रहे हैं। ये वो देश हैं, जिनके यहां टैक्स रेट बहुत कम या शून्य है। इस वजह से वहां बड़ी कंपनियों ने अपने मुख्यालय रजिस्टर करा रखे हैं। इन देशों में आयरलैंड, हंगरी, एस्तोनिया, केन्या, नाईजीरिया, पेरू, श्रीलंका, सेंट विन्सेंट और बारेडोस शामिल हैं। आयरलैंड के एक अधिकारी वेबसाइट पोलिटिको.ईयू से कहा- ‘आयरलैंड सरकार तर्कपूर्ण वैश्विक कर सुधार का समर्थन करती है। लेकिन वह आम भाषा में तैयार प्रस्ताव पर दस्तखत नहीं कर सकती, जिसमें हमारे लिए अहम खास मुददों और नीतियों के बारे में कोई आश्वासन शामिल नहीं हो।’
लेकिन खबरों के मुताबिक अमेरिका, चीन, और फ्रांस ने प्रस्तावित टैक्स ढांचे का समर्थन किया है। इस प्रस्ताव को अब नौ जुलाई को होने वाली जी-20 की वित्त मंत्रियों की बैठक में रखा जाएगा। वहां इसे मंजूरी मिल जाने की संभावना है। संभावना जताई गई है कि अगले अक्टूबर तक नई वैश्विक कर व्यवस्था लागू हो जाएगी। लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि क्या जिन कंपनियों को नए कर ढांचे के तहत लाया जाएगा, उनमें वित्तीय कारोबार करने वाली और मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की कंपनियां भी शामिल होंगी।
सबसे पहले तय ग्लोबल टैक्स रेट का प्रस्ताव यूरोप में गूगल, अमेजन, फेसबुक आदि जैसी कंपनियों के सिलसिले में आया था। लेकिन बाद में अमेरिका की पहल पर दूसरी क्षेत्र की कंपनियों को भी इस प्रस्ताव के तहत लाने पर धनी देशों के बीच सहमति बन गई।
बताया जाता है कि नौ देशों की तरफ से जताए गए विरोध को लेकर अमेरिका ने सख्त रुख अपना लिया। उसने उन देशों से साफ कर दिया कि वे अपने घरेलू टैक्स ढांचे में बदलाव करें या नहीं, अमेरिका अपने यहां नियमों में ऐसे बदलाव करेगा, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए कम टैक्स रेट वाले देशों में खुद को रजिस्टर करवा कर टैक्स चुकाने से बचना असंभव हो जाएगा। टैक्स फर्म कैपलिन एंड ड्राईडेल के वकील पीटर बर्न्स ने वेबसाइट पोलिटिको से कहा- ‘अमेरिका कहा है कि वह जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, बाकी देश उसका अनुपालन करें। उसने कहा है कि आप चाहे अपने यहां जो नियम रखें, अब अमेरिकी कंपनियों के लिए उन देशों में मुख्यालय बनाना लाभदायक नहीं रह जाएगा।’