नई दिल्ली. बच्चों में मल्टी सिस्टम इन्फ्लैैमेट्री सिंड्रोम (एमआईएस-सी) के मामले बढ़ते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में एमआईएस-सी के कुल 177 मामले सामने आए हैं। इनमें से 109 अकेले राजधानी दिल्ली में ही दर्ज किए गए हैं, जबकि 68 अन्य केस गुरुग्राम और फरीदाबाद में मिले हैं। हैरानी की बात ये है कि कोरोना को मात देने वाले बच्चों में ये तकलीफ मिल रही है ।
मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल की पीडियाट्रिक केयर स्पेशलिस्ट डॉ. प्रीथा जोशी का कहना है कि यह सिंड्रोम कोरोना के गंभीर संक्रमण की चपेट में आने वाले बच्चों में होता है। बच्चे के संक्रमण से ठीक होने के दो से छह सप्ताह के बीच उन्हें ऐसी तकलीफ देखने को मिलती है।
अनुमान है कि बच्चों में संक्रमण के बाद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक सक्रिय हो जाती है। इस कारण बच्चों को स्वस्थ होने के बाद इस तकलीफ से जूझना पड़ रहा है।
डॉ. प्रीथा का कहना है कि एमआईएस की चपेट में आने वाले बच्चों के शरीर के मुख्य अंगों को नुकसान हो सकता है। इसमें फेफड़ों के साथ हृदय, किडनी, पाचनतंत्र, मस्तिष्क, रक्त वाहिकाओं, त्वचा और आंख को नुकसान संभव है। एमआईएस के कारण शरीर में सूजन के कारण ऊतक भी खराब होते हैं।
कोरोना को मात देने के बाद बच्चे को दो से छह सप्ताह के बीच शरीर में सूजन, आंत, हृदय, मस्तिष्क, त्वचा, किडनी संबंधी कोई लक्षण है तो सतर्क हो जाएं। इससे थ्रॉम्बोसिस (ब्लड क्लॉट) की तकलीफ हो सकती है। हृदय और किडनी के काम करने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। इस कारण बच्चे की तकलीफ बढ़ेगी।
बच्चे में एमआईएस के लक्षण दिखने पर डॉक्टर कुछ रक्त की जांच के साथ सीने का एक्स-रे, हृदय का अल्ट्रासाउंड इकोकार्डियाग्राम और पेट का अल्ट्रासाउंड करा सकते हैं। इस जांच के जरिये ये पता किया जाता है कि शरीर के किस अंग में सूजन है।
बच्चों में कोविड-19 का गंभीर संक्त्रस्मण दो बदलाव ला रहा है। बच्चे को निमोनिया हो सकता है या एमआईएस-सी की स्थिति बन सकती है जिसकी जल्द पहचान ही एकमात्र विकल्प है। पहली लहर के दौरान भी बच्चे संक्रमित हुए थे और उसके बाद दो हजार से ज्यादा एमआईएस-सी से जुड़े मामले देश भर में मिले थे।माता पिता को संक्रमण से ठीक हुए बच्चों की दिनचर्या पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अगर बच्चों को किसी भी प्रकार की दिक्कत होती है तो तत्काल डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है।