लॉकडाउन के बाद भविष्य जब नए सिरे से लिखा जाएगा, तो सार्वजनिक हिदायतें व हस्तक्षेप बदल जाएगा। यह वक्त नए शोध व अध्ययन की तैयारी तो है, साथ ही एक नई विरासत की शुरुआत भी होगी। हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में आर्थिकी का नया मॉडल सरकार के समक्ष फिर आकर खड़ा होगा, क्योंकि कोरोना ने खुद को रेखांकित करते हुए निजी निवेश की ओर बढ़ते प्रदेश की प्राथमिकताएं छीनी हैं। जाहिर है कोरोना के खिलाफ छिड़े युद्ध ने जीवन के पहलुओं में वित्तीय व्यवस्था और आर्थिकी की आवश्यकता को नए अंदाज में जोड़ दिया है। सबसे पहले हमें ग्रामीण पृष्ठभूमि में दुबक कर बैठ गई आर्थिकी को जगाना पड़ेगा। हट्टी की तरफ दौड़ते ग्रामीण बता रहे हैं कि उनका खेत से रास्ता किस हद तक कट गया है। डिपो पर बिकता राशन सबसे बड़ी मांग है, तो वितरण की व्यवस्था को सुधारने का नया संकल्प लेना होगा। क्यों न राशन का हिसाब परिवार की इकाई के रूप में तयशुदा आपूर्ति बन जाए। यानी परिवार के सदस्यों के आधार पर जो राशन डिपो धारक बांटता है, उसका पहले से ही तैयार पैकेट बना कर उपलब्ध हो। राशन के पैकेट विभिन्न सदस्यों के आधार पर तय हों और इसके बीच डिपोधारक केवल स्थानीय स्टॉक होल्डर बनें, जबकि खाद्य एवं सिविल सप्लाई निगम इस कार्य के लिए अपने दो तीन पैकेजिंग परिसर स्थापित कर सकता है। हिमाचल को ग्रामीण आर्थिकी के बीच जिंदगी के नए संदर्भों को जोड़ना चाहिए, जबकि इनके समीप खड़े शहरी आवरण को भी व्यापक दिशा देनी होगी। शहरों की व्यवस्था को पूरे प्रदेश के आर्थिक व व्यापारिक संतुलन के साथ जोड़कर देखें तो ग्रामीण विरासत भी समन्वय कायम करेगी। पूरे प्रदेश का क्षेत्रवार आर्थिक सर्वेक्षण करें तो गांव से शहर तक नए निवेश की वजह मिलेगी। ऐसे में पूरे प्रदेश को क्षेत्र विकास प्राधिकरणों की एक बड़ी शृंखला के रूप में भविष्य देखना होगा। हर क्षेत्र विकास प्राधिकरण अपने साथ ग्राम एवं नगर योजना विकास का दायित्व ही तय नहीं करेगा, बल्कि शहरी एवं ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के सेतु भी कायम करेगा। इस तरह शहरी सुविधाओं का खाका गांव तक पहुंचेगा और योजनाओं तथा परियोजनाओं के विस्तार से निवेश के नए केंद्र, आवासीय बस्तियां, स्थानीय परिवहन नेटवर्क, कूड़ाकर्कट प्रबंधन, शिक्षा-चिकित्सा में गुणात्मक सुधार तथा मनोरंजन के साधन उपलब्ध होंगे। दुर्भाग्यवश क्षेत्रवाद की निगाहों में विकास का आधिपत्य देखा जा रहा है, जबकि अब इसे भविष्य के आधार पर संतुलित करना होगा। प्रदेश को छह से बारह क्षेत्र विकास प्राधिकरणों में निरूपित करें, तो पर्यटन, धार्मिक पर्यटन, बाजार, स्वरोजगार, निवेश, व्यापार तथा आधुनिकता के नए इजहार से परिपूर्ण किया जा सकता है। प्रदेश में कम से कम आधा दर्जन धार्मिक स्थलों और दर्जनों पर्यटक स्थलों को अगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण के स्वायत्त ढांचे में आगे बढ़ाएं, तो इस क्षमता का दोहन आने वाली पीढि़यों को लगातार रोजगार उपलब्ध कराएगा। क्षेत्र विकास प्राधिकरण के तहत आय के साधन विकसित होंगे, तो सुशासन की वांछित पारदर्शिता भी हासिल होगी। एक प्राधिकरण के तहत पंचायती राज संस्थाएं, शहरी निकाय, औद्योगिक नगर, मंडियां, बाजार, परिवहन नगर तथा मनोरंजन के स्थल पैदा होंगे, तो इसे आर्थिक इकाई के रूप में आत्मनिर्भरता मिलेगी। कोरोना मसले ने यह स्वीकार किया कि हिमाचल ने चिकित्सा संस्थानों के जो चबूतरे खड़े किए थे, उनकी उपयोगिता से यह प्रदेश अपनी तैयारी कर पाया, फिर भी भविष्य जब पुनः लिखा जाएगा तो विकास के पिछले मॉडलों को नए संदर्भों में सुदृढ़ करना होगा। कल या हमेशा लॉकडाउन नहीं होगा, लेकिन भविष्य की तरफ बढ़ने की इच्छाशक्ति हमेशा रहेगी। लॉकडाउन के बाद जीवन की पुनर्स्थापना तथा जरूरतों की आपूर्ति के लिए आवश्यक आर्थिकी की साजो-सज्जा में महज सपने सहायक नहीं होंगे, बल्कि ये दिन हमेशा नसीहत देते रहेंगे और विराम तोड़ने का विकल्प अपनी सार्थकता में नई सोच से ढर्रा बदलने की अनिवार्यता सरीखा होगा। – अनिल अनूप