अनिल अनूप
बिहार में जैसे-जैसे चुनावी राजनीति मुखर हो रही है, राजनीतिक तस्वीर के नये बिंब उभरे हैं। क्षेत्रीय पार्टियों की मुखरता दिग्गज राजनीतिक दलों पर भारी पड़ रही है। लोक जनशक्ति पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के फैसले ने राजनीतिक पंडितों को चौंकाया है। हालांकि, पहले भी एलजेपी प्रवासी श्रमिकों, कोरोना संक्रमण प्रबंधन, बाढ़ आदि के मुद्दे पर सत्तारूढ़ जद-यू पर हमलावर रही है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जद-यू अर्से से बिहार की सत्ता पर काबिज रही है। पिछला चुनाव जद-यू ने राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा और सरकार बनायी। फिर पाला बदलकर भाजपा के साथ सरकार बनायी। दरअसल, बिहार में अब नयी पीढ़ी के राजनेताओं ने दस्तक दी है। माना जा रहा है कि अब बिहार में लालू-नीतीश दौर के बाद नयी पीढ़ी बिहार को नेतृत्व देने को तैयार हो रही है। कहा भी जा रहा है कि एलजेपी के चिराग पासवान 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। एक वजह यह भी है कि जद-यू में नीतीश के बाद दूसरी पंक्ति का नेतृत्व विकसित नहीं हो पाया है। बिहार की राजनीति में ये युवा उस शून्य को भरने की कोशिश कर रहे हैं। पेशे से नीतीश कुमार की तरह इंजीनियर चिराग पासवान बिहार की राजनीति की नयी इंजीनियरिंग की तलाश में नजर आ रहे हैं। उनका मकसद एलजेपी का जनाधार बढ़ाकर भविष्य की राजनीति का आधार तैयार करना भी है। चिराग पासवान यह महसूस कर रहे हैं कि राज्य में सत्ता के खिलाफ जो जनाक्रोश है, उसे वे जद-यू के खिलाफ चुनाव लड़कर पार्टी के जनाधार के रूप में हासिल कर सकते हैं। हालांकि, इस दांव को कई अन्य घटक भी प्रभावित करेंगे। उसमें यह भी निर्भर करेगा कि राजद व कांग्रेस कितने मजबूत प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारते हैं। बदले हालात में उनकी चुनावी रणनीति कैसे सिरे चढ़ती है। यह भी कि राजनीति के चतुर सुजान नीतीश कुमार चुनाव आते-आते कौन-सा नया पैंतरा चलते हैं।
हालांकि, बिहार की राजनीति में एलजेपी ऐसी ताकत कभी नहीं रही कि अपने बूते सरकार बना सके। वह अक्सर किंग मेकर की भूमिका में रही। वह बदलती हवा के साथ पाला बदलकर सरकार बनाती रही है। अब राजग से अलग होकर लड़ने से उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी उजागर हुई है। पहली नजर में मामला टेढ़ा नजर आता है कि बिहार में लोजपा राजग से अलग होकर चुनाव लड़े और केंद्र में राजग में बनी रही। चुनावी पोस्टरों में लिखे नारे- ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं’ बहुत कुछ कहते हैं। कहा जा रहा है कि लोजपा बंदूक तो चला रही है, मगर कंधा किसका है? क्या यह सब पर्दे के पीछे से बीजेपी के इशारे पर हो रहा है। सवाल यह भी है कि जब चिराग पासवान तमाम मुद्दों पर नीतीश सरकार पर हमलावर थे तो भाजपा ने उन्हें समझाने की कोशिश क्यों नहीं की? दरअसल, भाजपा भी मानकर चल रही है कि राज्य में सत्ता विरोधी रुझान नीतीश के खिलाफ है, मगर राज्य में मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है। हाल में प्रधानमंत्री ने बिहार के विकास के लिये जो सोलह हजार करोड़ की विकास परियोजनाओं की ताबड़तोड़ घोषणाएं की हैं, उसका लाभ भी भाजपा को मिलेगा। लोजपा भी सोच रही है कि यदि भविष्य में भाजपा-जद-यू गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो अकेले लड़कर हासिल सीटों के बूते वह किंग मेकर की भूमिका में आकर नीतीश की पार्टी पर दबाव बना सकती है। बहरहाल, अभी चुनाव से पहले बिहार की राजनीति कई तरह से करवट लेती नजर आयेगी। पिछला चुनाव जद-यू व भाजपा ने अलग होकर लड़ा था, अत: सीटों को लेकर भी गठबंधन में टकराहट सामने आयेगी। जद-यू में कई वरिष्ठ नेता नीतीश पर दबाव बना रहे हैं कि लोजपा की पहल के बाद पार्टी को राजग से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ना चाहिए। संभव है नीतीश इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर दबाव बनायें। भाजपा भी सोचेगी कि पुराने सहयोगी शिवसेना व अकाली दल के बाद क्या वह जद-यू को भी खोने को तैयार है।