अनिल अनूप
वायरस अटैकिंग मूड में नहीं था, उसके ऊपर भारतीय सहिष्णुता का असर था। वह दरअसल बाबा राम देव के चमत्कार से प्रभावित था। हालांकि वह कोरोना नहीं था, लेकिन उसी की वंशावली और चीनी परिवेश से निकला हुआ था। पूछा तो बताने लगा, ‘मेरे वंशजों का मानना है कि भारत में वायरस होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया और पुनर्जन्म का रिश्ता है, बल्कि कई बार तो यह फर्क करना ही कठिन होता है कि कौन असली इनसान और कौन नकली वायरस। मैं भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कायल हूं, इसलिए उनसे दूर रहता हूं।’ उसने आगे बताया कि आपके यहां तो इनसान ही अवतार हैं, तो हमारे जैसे वायरस का भी उद्धार हो जाता है। वह बता रहा था कि भले ही कोरोना विश्व को डरा रहा है, लेकिन जब तक बाबा रामदेव के हाथ में गलोए रहेंगे या आप लोग गो मूत्र पीते रहेंगे, आपका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। ‘भारत में आवारा घूमती गउओं के कारण वातावरण की शुद्धि का ही असर है कि अंततः वायरस को ही मरना है।’ यह सुन कर मेरा माथा ऊंचा हो गया कि विश्व के वायरस भी अब हमारी इज्जत करने लगे। वायरस भी दरअसल भारत की सरकारों से प्रभावित था कि किस तरह आजादी के बाद गरीबी को इसलिए जिंदा रखा गया, ताकि जनता पर कोरोना का असर न हो। वायरस बोला, ‘आपकी सरकारों ने गंदी नालियों के कीड़ों की तरह इनसान की बस्तियों में जिंदगी के टेस्ट इसलिए किए ताकि जानवर और इनसान के बीच भाईचारा रहे। मैं ऐसे वसुधैव कुंटंबकम से प्रभावित हुआ और चुपके से चीन में इकट्ठे ‘कोरोनियों’ से यह कहकर बाहर निकल आया कि भारत मुझे दे दो। मैं आया तो खूंखार इरादों से था, अगर यहां देखा कि लोग मच्छरों के साथ रहते हैं, लेकिन खुश हैं कि वे जिंदा हैं। मच्छरों ने मुझे बताया कि उनका खून कितना इनसानी हो चुका है। दिल्ली में डेंगू मुस्कराता हुआ मिला। कहने लगा कि उसे भी अब पीलिया, एसिडिटी और डायबिटीज होने लगी है, क्योंकि भारत में रहते हुए कोई कब इनसान जैसा हो जाए पता नहीं चलता।’ वायरस खूब बतियाना चाहता था, लेकिन थोड़ा भयभीत भी लगा। उसने सुन रखा था कि भारत में सबसे बड़ी सजा पाकिस्तान भेजने की मिलती है और वह जाना नहीं चाहता। उसे यह भी लगा कि भारत में राजनीति को हमेशा दिमागी बुखार चढ़ा रहता है, लिहाजा वायरस होने के लिए तो अब बयान ही बचे हैं। वायरस भारत के सोशल मीडिया के वायरल अंदाज से भी भयभीत था, पता नहीं कब उसे खत्म करने का काई इलाज या नुस्खा फेंक दे। वायरस ने मेरे पूरे शरीर का मुआयना करके पूछा कि आखिर मैं जिंदा कैसे हूं। वह तो न जाने कब से मेरी जिंदगी में घुसा है, फिर भी जिंदा इनसान में वायरस को कुछ नहीं मिला। उसे यकीन था कि हम भारतीय खुद को कितना भी कोसें, लेकिन हमें सरकारों ने इस काबिल तो बना ही दिया कि कोरोना का बाप भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हम नकली दूध, फूड व दवाई पर भी जिंदा रह सकते हैं। हम करोड़ों खाकर भी डकार नहीं लेते और न ही बैंक घोटालों के बावजूद हमें समाज के वायरस नजर आते हैं। उसने आश्चर्य प्रकट किया और मुझे अवतार मान कर कहा, ‘मुझे मुक्ति दो। आप भी अवतार हैं। दरअसल भारत का हर वोटर अवतार है, क्योंकि जिसे चुनते हैं वह देश को सदा किसी न किसी रोग से मुक्त करता है। आपके यहां वायरस क्या करेगा, जब आप खुद ही दंगा करके धर्म या जाति चुनकर वर्षों से किसी न किसी को मुक्त कर रहे हैं।’ यह कहकर वायरस बेहोश होने लगा, मेरे जैसे भारतीय का खून चूसना उसके लिए भी मुक्ति का मार्ग बन गया।