हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके 83 वर्षीय इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल से रिहाई हो गई है। उन्होंने कहा है, ‘अभी फ्रैक्चर के कारण हाथ में पलस्तर है, उसके बाद जल्द ही लोगों के बीच जाऊंगा’। उन्होंने तिहाड़ जेल में रहते हुए 10 वीं की परीक्षा पास कर ली है, अब एक बार फिर उनके सामने सियासी परीक्षा पास करने की चुनौती है।
चौटाला ने कहा है कि वे सबसे पहले बॉर्डर पर बैठे किसानों से मिलेंगे। इसके बाद हरियाणा के गांव-गांव में जाएंगे। उनकी पार्टी इनेलो ने उनके लिए एक स्पेशल वैन तैयार करा दी है। तिहाड़ जेल में 10 वीं की पढ़ाई कर सेकंड क्लास में परीक्षा पास करने वाले ‘चौटाला’ के सामने अब ‘पॉलिटिक्ल’ यूनिवर्सिटी का एग्जाम पास करने की चुनौती है। ‘खट्टर-दुष्यंत-हुड्डा’ खेमे में हलचल है, लेकिन वे घबरा नहीं रहे हैं, क्योंकि चौटाला का खेल शुरू होने में अभी कुछ समय लगेगा।
क्या समाप्त हो गया है चौटाला युग
हरियाणा की राजनीति के जानकारों का कहना है, चौटाला युग तो कभी का समाप्त हो चुका है। इस बीच कुनबा बिखर गया। अजय चौटाला भले ही तिहाड़ में अपने पिता ओमप्रकाश चौटाला के साथ रहे, लेकिन बाहर चाचा अभय चौटाला और भतीजा दुष्यंत चौटाला अलग राह पर निकल चुके थे। आंदोलन कर रहे किसानों के बीच जाकर चौटाला बहुत जल्द अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत करेंगे।
इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के जेल में जाने के बाद पार्टी लड़खड़ाने लगी थी। अजय चौटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला ने इनेलो से बाहर आकर जननायक जनता पार्टी बना ली। मौजूदा खट्टर सरकार में दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम हैं। चौटाला के जेल में जाने के बाद जब अनेक नेताओं को इनेलो में भविष्य नजर नहीं आया तो वे दूसरी पार्टियों में चले गए।
प्रदेश में साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वही किया था, जो कुछ माह पहले पश्चिम बंगाल में देखने को मिला है। यानी इनेलो के अधिकांश पूर्व मंत्रियों और विधायकों को भाजपा में एंट्री दे दी गई। परमिंद्र सिंह ढुल, रामचंद्र कंबोज, रणबीर गंगवा, जाकिर हुसैन, नसीम अहमद, नगेंद्र भड़ाना व सतीश नांदल जैसे को नेताओं को टिकट भी मिल गया।
भाजपा को उम्मीद थी कि जाट समुदाय के नेताओं को पार्टी में शामिल करने से जीत का आंकड़ा 75 तक पहुंच जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ और चुनावी नतीजे में भाजपा, सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े को नहीं छू सकी। सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की मदद लेनी पड़ी।
दोबारा इनेलो में आ सकते हैं पार्टी छोड़ चुके नेता राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र कुमार सैनी का कहना है, चौटाला के जेल जाने के बाद अधिकांश राजनेताओं को इनेलो में अपना राजनीतिक करियर सुरक्षित नजर नहीं आ रहा था, इसलिए वे दूसरी पार्टियों में शिफ्ट हो गए। वहां भी उन्हें वह मान सम्मान नहीं मिला, जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी। अब चौटाला के रिहा होने के बाद वे नेता दोबारा से इनेलो के साथ आ सकते हैं।
चौटाला के छोटे भाई एवं हरियाणा सरकार में बिजली मंत्री रंजीत चौटाला कहते हैं, वह हमारे परिवार के बड़े हैं। हमने उनसे बहुत कुछ सीखा है। इतना तो तय है कि वे चैन से नहीं बैठेंगे। वे लोगों के बीच जाएंगे। उनकी राजनीतिक सोच और एजेंडा क्या रहेगा, यह जानने के लिए कुछ दिन इंतजार करना होगा।
प्रदेश की राजनीति में अब बहुत कुछ बदल गया है। लोग, चौटाला की बात पर कितना गौर करते हैं, देखने वाली बात होगी। भाजपा समर्थक, चौटाला की रिहाई से खुश हैं। उन्हें लगता है कि वे गैर जाट वोटरों के बलबूते सत्ता में लौट सकते हैं। चौटाला साहब के आने का कांग्रेस व जजपा को सीधा नुकसान है। भाजपा को चौटाला से घबराने की जरुरत नहीं है।
बकौल रविंद्र कुमार, चौटाला के आने का असर कुछ तो होगा ही। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी और जजपा को हो सकता है। इनेलो के हाशिये पर आने के बाद प्रदेश का जाट वोट बैंक भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरफ जा चुका है। हुड्डा, प्रदेश के दस साल तक सीएम रहे हैं। हालांकि अभय चौटाला कहते हैं, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चौटाला को सजा कराई थी। भूपेंद्र हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला, करण दलाल ने संजीव कुमार को झांसे में लेकर झूठे इल्जाम लगवाए। कथित तौर पर हुड्डा दो बार सीबीआई निदेशक से मिले थे। अगर किसानों के मार्फत चौटाला, जाटों में दोबारा से अपनी पैंठ जमाने में कामयाब हो गए तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा।
जाट राजनीति दो नहीं, बल्कि तीन पार्टियों में बंट जाएगी। इनेलो, कांग्रेस और जजपा, के बीच जाट वोटर विभाजित रहेगा। इस स्थिति में खट्टर सरकार को फायदा हो सकता है। वजह, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यह कह कर खूब शोर मचाया था कि अब उसके साथ जाट वोटर हैं। दर्जनों जाट नेताओं को टिकट दिया गया। हालांकि जब चुनाव का नतीजा आया तो ऐसा कुछ नहीं हो सका।
किसान आंदोलन में जाट समुदाय प्रमुख यह बात सभी लोग जानते हैं कि प्रदेश में चल रहे किसान आंदोलन में जाट समुदाय ही प्रमुख भूमिका में है। किसानों की बात न सुनने के कारण जाट समुदाय, मुख्यमंत्री खट्टर के खिलाफ हो रहा है। अगर जाट वोटर किसी एक पार्टी के साथ आते हैं तो वे भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं। यही वजह है कि भाजपा, चौटाला की रिहाई को अपने लिए शुभ मान रही है।
कुनबे में बढ़ी दूरिया
अभय चौटाला ने कहा, चौटाला का एक्सीडेंट हुआ तो अजय चौटाला, दुष्यंत और दिग्विजय उनका हालचाल लेने नहीं आए। इसका मतलब है कि कुनबे में दूरियां बढ़ती जा रही हैं। जजपा को दोहरा नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक, उसके कुछ नेता इनेलो में वापस जा सकते हैं। दूसरा, जाट वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी इनेलो को पसंद करे, ऐसी संभावना है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पिछले दो दशकों में जाट वोटरों में अपना जबरदस्त प्रभाव बनाया है। ओमप्रकाश चौटाला के सक्रिय होने से कांग्रेस को भारी नुकसान हो सकता है। वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए जाटों के गढ़ में चुनौती बन सकते हैं। पूर्व मंत्री अशोक अरोड़ा जो कि लंबे समय तक चौटाला के साथ रहे हैं, अब कांग्रेस में हैं। वे कहते हैं कि अब चौटाला साहब का कोई राजनीतिक असर दिखेगा, इसकी बहुत कम संभावना है।