अनिल अनूप
ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश के गत विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान समिति का प्रमुख बनाया था और उन्होंने पार्टी को जिताने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। आपको याद होगा उस चुनाव में बीजेपी ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया था तो पार्टी ने नारा दिया था ‘माफ करो महाराज हमारा नेता शिवराज’ और इस नारे को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भाजपा ने करोड़ो रुपए खर्च किए थे। इस नारे के पीछे भाजपा का यह संदेश देना था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की छवि एक शाही और सामंतवादी नेता के रूप में है, वही उस वक्त के मुख्यमंत्री शिवराज को एक किसान के बेटे के तौर पर प्रचारित किया गया था। अपनी छवि को धूमिल करने के इस प्रचार के बावजूद सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रचार करने और उसे जिताने में पूरी ताकत झोंक दी थी। उन्हें अपेक्षा थी, जब वक्त आएगा तो पार्टी उन्हें इस मेहनत का पूरा इनाम देगी। लेकिन सिंधिया को अपने खून पसीने बहाने का कोई फल नहीं मिला और लगातार उनके प्रति उपेक्षा का भाव सभी स्तरों पर देखा गया। चाहे वह प्रदेश स्तर पर हो या हाईकमान स्तर पर हो।
ऐसा नहीं है कि ज्योतिरादित्य ने अपनी नाराजगी को छुपाया हो बल्कि समय-समय पर अपनी नाराजगी का एहसास भी कांग्रेस हाईकमान और राज्य सरकार को कराया। उन्होंने राज्य में अपनी पार्टी की सरकार को हमेशा किसी न किसी मुद्दे पर निशाना बनाया। इसकी शुरुआत उन्होंने अवैध खनन माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग को लेकर की। इसके बाद उन्होंने ट्विटर पर अपने बायो में से कांग्रेस का नाम हटा दिया। इससे भी बड़ी बात यह है कि सिंधिया ने जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया । सिंधिया का यह स्टैंड उनकी अपनी पार्टी के स्टैंड के खिलाफ था।तब भी पार्टी ने इसे नजरअंदाज किया। सबसे ज्यादा उन्हें तकलीफ और अपमानित महसूस तब होना पड़ा जब कमलनाथ ने उनके एक बयान का जवाब देते हुए कहा कि ‘उन्हें सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं’। इस बयान से ऐसा लगता है कि उनके ईगो को चोट लगी। पार्टी के इस वरिष्ठ नेता, जो जन्मजात महाराजा के रूप में प्रतिष्ठित है, को ठेस लगना स्वाभाविक था। जाहिर है इस बयान से साफ संदेश गया कि कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोई परवाह नहीं करते। अगर हाल ही के घटनाक्रम की बात करें तब भी कमलनाथ ने यह कोशिश नहीं की कि इस संकट से उबारने के लिए ज्योतिरादित्य की मदद ली जाए।वे यह भूल गए कि ज्योतिरादित्य के पास कई विधायक हैं। कमलनाथ अन्य दलों सहित निर्दलीय विधायकों को तो संभालने में लग गए लेकिन उन्हें अपनी ही पार्टी ऐसे वरिष्ठ नेता की परवाह करना उचित नहीं समझा जिसके जेब में 22 एमएलए रखे हुए थे और जो उसकी एक आवाज पर उसके लिए जान न्योछावर करने को तैयार बैठे थे।
फिर से प्रश्न यही पैदा होता है कि आखिर सोनिया गांधी और कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य की परवाह क्यों नहीं की? इसके कई और राजनीतिक कारण रहे होंगे लेकिन एक कारण जो साफतौर पर दिखाई दे रहा है वह है भावी पीढ़ी की चिंता।
बहरहाल अब तो पानी सर से निकल ही गया है और ज्योतिरादित्य कांग्रेस से इस्तीफा देकर बकायदा ना सिर्फ भाजपा में आ गए हैं वरन अब भाजपा के राज्यसभा के सदस्य के तौर पर नामांकन भी दाखिल कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब वे केंद्र में मंत्री भी बनते दिखाई देंगे।
कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस्तीफा एक चिंतन और चुनौती का विषय होना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे अन्य युवा और प्रभावशाली नेता, जो शायद लाइन में खड़े दिखाई दे रहे हैं, बाहर ना हो जाए?
मध्य प्रदेश में राज्यसभा के लिए नामांकन भरे जाने की अंतिम तारीख को कमल नाथ के नेतृत्व वाली सरकार पर संकट के बादल नहीं छंटे और सियासी पारा चढ़ा रहा. सत्ताधारी दल कांग्रेस और विरोधी दल भाजपा (BJP) की कोशिशें जारी रहीं.
पूरे दिन बेंगलुरु से विधायकों को आने का इंतजार रहा, मगर वे नहीं आए. राज्य की कमल नाथ सरकार को समर्थन देने वाले 22 विधायकों के इस्तीफे अब भी अबूझ पहेली बने हुए हैं. भाजपा का कहना है कि सरकार अल्पमत में आ चुकी है तो दूसरी ओर कांग्रेस ने बहुमत का दावा किया. इस्तीफा दे चुके 22 विधायकों में से 19 बेंगलुरु में हैं.
विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने छह विधायकों को नोटिस जारी कर उपस्थित होने को कहा. प्रजापति ने कहा कि उन्होंने तीन घंटे तक विधायकों का इंतजार किया, मगर वे नहीं आए. शनिवार को उन्होंने सात विधायकों को बुलाया है.
कमल नाथ ने राज्यपाल से की मुलाकात
मौजूदा राजनीतिक हालात को लेकर मुख्यमंत्री कमल नाथ ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की. कमल नाथ ने भाजपा पर विधायकों को बंधक बनाने का आरोप लगाते हुए उन्हें मुक्त कराने की मांग की, साथ ही आरोप लगाया कि सरकार को अस्थिर करने के लिए भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त करने में लगी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह विधानसभा में शक्ति-परीक्षण के लिए तैयार हैं.
दूसरी ओर, भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवार के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया , डॉ सुमेर सिंह सोलंकी और पूर्व मंत्री रंजना बघेल ने नामांकन पर्चा भरा. इस मौके पर भाजपा ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया. उसके बाद भाजपा के बड़े नेताओं, जिनमें सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, रामपाल व अन्य ने बैठक की, जिसमें अगली रणनीति पर चर्चा हुई.
पार्टी बदलकर दिल्ली से आए सिंधिया दो दिन भोपाल में रहे. शुक्रवार की शाम जब वह हवाईअड्डे की ओर जा रहे थे, उस समय कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके काफिले को रोकने की कोशिश की. प्रदर्शनकारियों के हाथ में काले झंडे थे.
‘अल्पमत में है कमल नाथ सरकार’
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है कि कमल नाथ सरकार अल्पमत में आ गई है. वहीं पूर्व मंत्री माया सिंह का कहना है कि सिंधिया के आने से भाजपा को और ताकत मिलेगी.
कांग्रेस की ओर से दो मंत्रियों जीतू पटवारी और लाखन सिंह यादव को बेंगलुरु भेजा गया था, दोनों शुक्रवार को भोपाल लौट आए. हालांकि दोनों खाली हाथ लौटे. उनका कहना है कि विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में बंधक बनाकर रखा गया है. विधायकों को उनके परिजनों से भी नहीं मिलने दिया जा रहा है.
एक तरफ जहां कांग्रेस ने विधायकों को बेंगलुरु से वापस लाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के बागी विधायकों के चार्टर विमान से लौट आने की सूचना मिलने पर भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता हवाईअड्डे पर पहुंच गए.
कमल नाथ सरकार के मंत्री सज्जन वर्मा भी हवाईअड्डे पर पहुंचे. उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस विधायक होने के नाते यहां आए.
बेंगलुरु गए मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया के अलावा विधायक हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्ना लाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिरराज दंडौतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव और जसवंत जाटव का इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष तक पहुंच चुका है. इसके बाद तीन और विधायक बिसाहू लाल सिंह, एंदल सिंह और मनोज चौधरी भी इस्तीफा दे चुके हैं.
The post विधायकों के इस्तीफे अब भी अबूझ पहेली appeared first on nayabharatdarpan.com.