बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष
-दीप्ति सक्सेना
कच्ची-कच्ची मिट्टी थे,
पक्का घड़ा बना दिया।
समय से पहले ही,
इनको बड़ा बना दिया।
कोरे बचपन पर श्रम की,
कड़ी छाप लग गयी।
गुड्डे गुड़ियों के खेल में,
क्यों आग लग गयी?
पुस्तक की जगह इनको,
सिक्के चंद मिल गये।
आंखों में पलते सपने,
रोज यूँ हो धूमिल गये।
निर्धनता अज्ञान या लोभ,
दोष किसी का हो।
न घुटे कोई बालमन अब,
बालश्रम का अंत हो।
सुखद सुनहरे भविष्य की,
ठण्डी-ठण्डी हवा चले।
न छूटे कोई भी बच्चा,
हर हाथ में कलम मिले।
निश्चय कर इस अभिशाप से,
मुक्त करायें बचपन।
समझें समझायें सभी को,
पाप का करें समापन।
हो परिवार समाज मजबूत,
और राष्ट्र मजबूत बने।
विकास के पथ पर फिर,
हम अग्रणी दूत बनें।
खिले हर एक फूल अब ,
कलियां न मुरझाने दो।
पौध बढ़े, जड़ को नित्य,
खाद-पानी मिल जाने दो।
(सहायक अध्यापक) विद्यालय-पू0मा0वि0 कटसारी,
वि0क्षे0-आलमपुर जाफराबाद, जनपद- बरेली,
उत्तर प्रदेश।