यज्ञ यानी हवन हमारी सनातन वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं। विशेष पर्व और तिथियों के साथ ही यह हमारी दैनिक पूजन में भी शामिल है। इससे वातावरण शुद्ध होता है और विषाणुओं का नाश होता है।
आयुष मंत्रालय की राष्ट्रीय सलाहकार समिति के सदस्य एवं सीडीआरआइ के पूर्व उपनिदेशक डा. एन.एन. मेहरोत्रा बीते एक वर्ष से हर रोज शाम को हवन करते हैं।
उनका मानना है कि हवन से होने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है। केवल यही नहीं, शहर में ऐसे बहुत से लोग हैं जो वातावरण की शुद्धि के लिए हवन का प्रयोग कर रहे हैं। दरअसल, वैज्ञानिकों का भी यह मानना है कि हवन में प्रयोग की जाने वाली सामग्री वातावरण को शुद्ध कर जीवाणुओं का नाश करती है।
हवन के लिए गोबर के कंडे का प्रयोग करते हैं इसमें हवन सामग्री के साथ साथ नीम, बेल, लोबान आदि का प्रयोग भी करते हैं। वह कहते हैं कि इससे कुछ ही देर में वातावरण शुद्ध हो जाता है।
डा. मेहरोत्रा बताते हैं कि यह बहुत आसान है। हवन का महत्व वेदों में भी बताया गया है और प्राचीन समय से हम इसका प्रयोग करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि हवन के लिए गोबर के उपले या आम की लकड़ी जो भी आसानी से उपलब्ध हो जाए उसका प्रयोग किया जा सकता है।
हवन में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री: उपले या आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश, कलीगंज, गूलर की छाल और पत्ती, देवदार की जड़, पीपल की छाल, बेर, चंदन की लकड़ी, जामुन की पत्ती, अश्वगंधा की जड़, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलेठी, बहेड़ा का फल, हर्र, जौ, गुगल, लोबान, इलायची आदि का बूरा प्रयोग किया जाता है।