राजकुमार दोहरे की रिपोर्ट
उरई जिला अस्पताल में 30 किलोमीटर से चलकर आए एक महिला ने जिला अस्पताल उरई में एक रुपए का सरकारी पर्चा लिया और डॉक्टर साहब के पास गई जहां पर डॉक्टर साहब को अपनी आपबीती महिला ने बात को बता ई और इसके बाद डॉक्टर ने महिला की बात सुनते ही बात को समझा और सरकारी पर्चे पर सरकारी दवा के साथ साथ बाहर के दवा भी सरकारी परिचय पर लिख डाली यहां तक के पीड़ित महिला सरकारी इलाज के भरोसे जिला अस्पताल उरई में आई थी कि हमें सरकारी योजनाओं का लाभ फ्री में मिल सकेगा डॉक्टर साहब ने सरकारी परिचय पर सरकारी दबाव के साथ-साथ प्राइवेट दवा लिखकर और प्राइवेट चेकअप लिखकर पीड़ित महिला को कंफ्यूज कर दिया लेकिन डॉक्टर साहब को क्या पता कि जिला अस्पताल उरई में कौन-कौन किस-किस तरीके के मरीज आते हैं कोई छोटा कोई बड़ा कोई गरीब हो या अमीर डॉक्टर साहब को क्या लेना देना उनको तो अपने कमीशन के भरोसे ही ऊपर का खर्चा चलाना है लेकिन इस गरीब महिला के पर्चे पर प्राइवेट दवा लिखते ही उसके परिजन बौखला गए भयभीत हो गए कि हम तो सरकारी अस्पताल में सरकारी योजनाओं के अंतर्गत मिलने वाले लाभ को लेकर दिखाने के लिए आए थे लेकिन यहां पर तो डॉक्टरों का कमीशन खोरी के चक्कर में बहुत ही बड़ा खेल खेला जा रहा है जहां पर गरीब को और ही गरीब बनाने के लिए अपने कमीशन के चक्कर में शोषण किया जा रहा है लेकिन डॉक्टर साहब सरकारी परिचय पर बिना पूछे मरीज के अपने ही मन से बाहर की दवा लिखने का कोई भी नियम कानून या कोई भी आदेश नहीं है जब भी ऐसे डॉक्टरों पर उच्च अधिकारियों से कोई डर नहीं लगता है क्या पता उन डॉक्टरों की भी कोई भी सांठगांठ हो सकती है लेकिन प्राइवेट दवा लेते ही कुछ गरीब परिवार से आए हुए मरीज तो बाप ही लौट जाते हैं कि अब प्राइवेट इलाज कराने की हमारी औकात ही नहीं है कि हम प्राइवेट इलाज करा सकें जिसके चलते रोजाना आने वाले मरीज जिला अस्पताल में कई ऐसे मरीज हैं जो अपने इलाज कराने के लिए तो आते हैं लेकिन प्राइवेट सुनते ही नाम करंट का झटका जैसा लग जाता है और वह लोग वापस बिना इलाज करा ही लौट जाते हैं और जब सरकारी योजना का लाभ पूछा जाता है तो उनको यह कहना पड़ता है कि कहीं भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है यहां पर तो डॉक्टरों की सांठगांठ और कमीशन खोरी के चक्कर में गरीबों को चूसा जा रहा है लेकिन पीड़ित किसान की महिला 30 किलोमीटर जिला अस्पताल के भरोसे आई लेकिन जिला अस्पताल से उदास लौट कर वापस अपने घर चली गई क्या करें सरकारी अस्पताल समझ कर आए थे यहां तो डॉक्टर प्राइवेट बनाए हुए हैं कितवा आपको बाहर से ही लेना पड़ेगा और चेकअप भी आपको बाहर से ही कराना पड़ेगा फिर सरकारी योजनाओं की क्यों तारीफ की जाती है कि गरीब लोगों के लिए पूरी व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में दी जा रही है लेकिन ऐसा उरई जिला अस्पताल में देखने को नहीं मिल रहा है जहां पर एमआरओ से गिरे डॉक्टर भी अपना लंबा कमीशन के चक्कर में ड्यूटी के दौरान इलाज कराने आए मरीज के पहले एमआर अंदर घुस जाते हैं जिससे उनके पक्ष में बैठ कर खड़े होकर अपनी प्राइवेट दवाओं का प्रचार करके डॉक्टर साहब को प्यार से समझाते हैं और डॉक्टर साहब खामोशी से एमआरओ की बात को समझते हैं क्योंकि उनका लंबा कमीशन से भरण-पोषण चलता है इसी चक्कर में उच्च अधिकारियों ने आदेश पारित किया है कि सरकारी हॉस्पिटल अस्पतालों में कहीं पर भी प्राइवेट डॉक्टर के पास नहीं जा सकता है और ना ही जिला अस्पताल में कोई भी एमआर डॉक्टर के पास बैठकर बात कर सकता है लेकिन एमआर डॉक्टर भी उच्च अधिकारियों की समझ से बाहर है जहां पर ड्यूटी के दौरान ही आने वाले एमआरओ से मुलाकात करने के लिए तड़पते रहते हैं ऐसा ही नजारा जनपद जालौन के उरई जिला अस्पताल में प्रतिदिन देखा जाता है जहां पर और डॉक्टर के बीच सांठगांठ से लंबे कमीशन चलते हैं ड्यूटी के दौरान होने वाली बात को लेकर कमीशन की भी चर्चा होती है जहां पर अपने प्रोडक्ट को डॉक्टर साहब को देकर चले जाते हैं लेकिन मरीज बाहर की दवा लेने में परेशान नजर आता है उस मरीज की चिंता किसी प्रशासनिक अधिकारी को नहीं है नाही जिला अस्पताल में पूछताछ केंद्र बनाया गया है जहां पर किसी व्यक्ति को यह बताया जाए कि आप को पर्चा यहां से लेना है और दवा यहां से खरीदना है और यहां पर आपको जाना है ऐसा कहीं कोई नहीं पूछता क्या नजर आता है जहां पर मरीजों को आने-जाने वालों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है घंटों के हिसाब से परेशान होने वाले मरीज समय होने के पहले ही समय होने के बाद ऐसे ही घूमते रहते हैं जहां पर समय पूरा हुआ डॉक्टर अपनी कुर्सी छोड़कर चले जाते हैं और मरीज खाली कुर्सी को देखते रह जाते हैं फिर पूछते हैं कि डॉक्टर साहब है या नहीं है लेकिन उनको क्या पता कि डॉक्टर साहब का समय तो समय होता है मरीज वापसी बिना इलाज कराए वापस चले जाते हैं समय से ना आने वाले डॉक्टरों पर प्रशासन का कोई भी असर देखने को नहीं मिलता है जहां पर 8:00 बजे का टाइम दिया जाता है वहीं पर नो बजे आते हैं और इसके पहले मरीजों की लंबी भीड़ देखकर आम लोग भी परेशान हो जाते हैं कितनी भीड़ भाड़ कैसी है देखना यह है कि जिला अस्पताल में प्रशासन द्वारा क्या इंतजाम किए जाते हैं कि एमआरओ को और समय से आने वाले डॉक्टरों को निर्देश दें और आने जाने वाले मरीजों को पूछताछ केंद्र बनाकर उनकी सुविधा को उपलब्ध कराएं।