आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा—जनपद में ओलावृष्टि के साथ हुई बेमौसम वर्षा के चलते खलिहानों में रखी किसानों की फसल हुई बर्बाद किसानों के ऊपर जंहा बैंकों द्वारा रिण वसूली का दबाव बनाया जा रहा है वहीं उनके सामने जीवकोपार्जन का
संकट सामने आन खड़ा हुआ है।
कहने को तो कमी किसान यूनियन संगठन है पर इन्हें इस आई हुई किसानों की आपदा नहीं दिखाई दे रही है नहीं जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को नहीं जिम्मेदार अधिकारियों को। किसान लगातार टूट रहा है जिसे हम खुले मंचों से अन्नदाता कह संबोधित करते हुए नहीं थकते किंतु केवल मंच से पर धरातल में जाकर देखा जाए तो किसानों की समास्या जस की तस सुरसा की तरह उनके सामने मुंह बाए खड़ी है। और हम बयानबाजी में मसगूल है य फिर फेसबुक वॉल अन्य शोसल मीडिया प्राचार तंत्र में एक दो सब्द लिख कर अपने आप को किसानों का मसीहा साबित करने उनका शुभचिंतक बनने का दावा करते हुए नहीं थकते पर देखा जाए तो मात्र ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ अपनी दुकानें हैं किसानों के नाम से खोले हुए हैं।
किसानों की समास्याओं से इन लोगों का दूर-दूर तक कोई भी वास्ता नहीं है। इनका भी क्या चुने गए जनप्रतिनिधियों का भी यही हाल है और सबसे बड़ी बात यह कि जिला प्रशासन भी मौन व आंख कान मूंदे बैठा हुआ है। किसानों की धान की फसल खलिहानों में रखी है जो ओलावृष्टि और हुई वर्षा के कारण दागदार ही नहीं खराब हो गई है जिसका चावल भी सायत खाने योग्य निकले पर इस आई हुई बिकराल समास्या से इन लोगों का क्या लेना देना है। इन्हें आज अगर कुछ दिखाई दे रहा है तो अबैध खनन से आने वाली अबैध काली कमाई जिसमें सभी मिलजुल कर अपने हाथ काले कर रहे हैं साथ ही काले हो रहें हैं इनके बिचार इनकी भावनाएं। यही कारण है कि मूल समास्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने हेतु कभी केन नदी की आरती उतारी जाती है तो कभी कमेड़ी कार्यक्रम कराये जातें हैं। और यह सब अपनी बिफलताओं को छिपाने के लिए किया जा रहा है।
वहीं दूसरी तरफ अपनी टीआरपी बढ़ाने के फेर में हमारे सम्मानित साथियों की कलमें उठती है अपराधियों को महिमा मंडित करने के लिए अधिकारियों का हितैषी हमदर्द दिखाने के लिए बार बार कलम उठती है। लेकिन जो अपनी मेहनत से सबकी उदरक्षुधा शांत करता है जिसके बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है उसके दुख पीड़ा को महसूस तक करने का समय नहीं है ए कैसी बिडम्बना है।