आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा जनपद में कलरव करती केन नदी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जंहा संघर्ष करती नजर आ रही है वहीं दूसरी ओर बालू माफियाओं द्वारा उसका सीना छलनी कर उसे मर्माहत ही नहीं कर रहे हैं बल्कि अब उसके स्वरूप को ही नष्ट करने में अमादा हो गये है।
जी हां इस जीवन दायिनी नदियो की बात करते हैं जिनका सीना छलनी करने में इन माफियाओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और अब उसके सिंगार यानी किनारे के टीलों पर अपनी शनि द्रष्टि लगा दी है । जिसके ऊपर गरजती हुई पोकलैंड मशीनों को छोड़ दिया गया है जो दिन रात उन्हें नष्ट करने में लगी हुई है।
ऐसा ही नजारा लहुरेटा खदान में देखने को मिला जहां के संचालक ने पहले मजदूरों के कार्य करने का हक छीन अबैध तरीके से नदी की मझधारा में पोकलैंड मशीनों को उतार नदी का सीना छलनी कर मानक बिहीन अबैध खनन किया वहीं उफनती हुई नदी के प्रकोप से ग्रामीणों कोबचाने वाले टीलों को भी इन मशीनों के माध्यम से ध्वस्त करने में अमादा है।
ज्ञात हो यह टीले जंहा इन नदियों की सुंदरता में निखार लाते हैं वहीं बरसात में उफान में आई नदियों के बढ़ते जलस्तर से किनारे बसे गांवों में रह रहे जनजीवन की रक्षा भी करते हैं। किंतु आज नदी और उसके टीले सभी अपनी अंतिम सांसें ले रही है और साशन प्रशासन मौन ही नहीं बल्कि यों कहा जाए कि इन अबैध खनन माफियाओं को अपना आशीर्वाद प्रदान किए हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।