आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
- शिक्षकों और बच्चों में बढ़ी है तकनीकी समझ
- ग्रामीण क्षेत्रों में नेट कनेक्टिविटी की नहीं है उपलब्धता
- अभिभावकों के पास नहीं हैं स्मार्ट फोन
बांदा। शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित की जा रही साप्ताहिक ई-कार्यशाला में गत रविवार की शाम गूगल मीट में जुड़े प्रदेश के शिक्षकों ने ऑनलाइन शिक्षण की चुनौतियों, उपलब्धियों एवं संभावनाओं पर विचार विमर्श किया। संचालन करते हुए नीलू चोपड़ा सहारनपुर ने भूमिका रखते हुए कहा के कोरोना संकट के कारण जब विद्यालयों को बंद करना पड़ा तब बच्चों तक शिक्षा को पहुंचाने की दृष्टि से ऑनलाइन शिक्षण शुरू किया गया जिसमें टीचर्स ने शैक्षिक सामग्री बच्चों को उपलब्ध कराई और उनके काम का मूल्यांकन किया। जानकारी देते हुए शैक्षिक संवाद मंच के संयोजक शिक्षक साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया की इस कार्यशाला में पूरे प्रदेश से 35 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने सहभागिता की और अपने विचार रखें सभी के विचारों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। इस प्रक्रिया में तमाम चुनौतियां एवं बाधाएं आना स्वाभाविक था। शिक्षक शिक्षिकाओं से उनके अनुभव साझा करने के उद्देश्य से कार्यशाला आयोजित की गई है।
सर्वप्रथम विचार रखते हुए फतेहपुर से दीक्षा मिश्रा ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षण शिक्षक और बच्चों दोनों के लिए एक नया अनुभव है। हमारे अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं है और जिनके पास हैं भी तो डाटा भरवाने की सामर्थ्य नहीं है। अनीता शुक्ला (शाहजहांपुर) ने कहा कि हमने 3 अप्रैल को व्हाट्सएप समूह बनाकर बच्चों को जोड़ा। हालांकि अभिभावकों को समझाना कठिन था लेकिन सतत संपर्क करके बच्चों तक सामग्री पहुंचाई। हम सभी बच्चों तक इस माध्यम से नहीं पहुंच सके। रामकिशोर पांडे बांदा ने अनुभव रखा कि ऑनलाइन शिक्षण के सुखद अनुभव रहे हैं। विद्यालय बंद होने के बावजूद बच्चों से संपर्क बना रहा। यह शिक्षण का नया तकनीकी पक्ष है। इस पर काम करने से बच्चों और शिक्षकों की तकनीकी समझ बढ़ी है और अब हम सभी आसानी से ई-कंटेंट तैयार कर लेते हैं पर हम इस विधा को विकल्प के तौर पर पूर्ण रूप से स्थापित नहीं कर सकते क्योंकि इसकी सीमाएं हैं। सुमन गुप्ता झांसी ने विचार साझा किया कि 15 मार्च से ही समूह बनाकर माता अभिभावकों के माध्यम से शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाया। हालांकि इस पर लगातार काम करने से बच्चों के आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
सुनीता गुप्ता मथुरा ने मत रखा कि विद्यालय के 15% बच्चों तक ही हम पहुंच सके हैं। टीवी रेडियो के द्वारा ई पाठशाला के माध्यम से भी बच्चे पढ़ रहे हैं लेकिन कक्षा शिक्षण की जगह ऑनलाइन शिक्षण नहीं ले सकता। चंद्रशेखर सेन बांदा ने सचेत करते हुए कहा कि होमवर्क करते समय अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखनी चाहिए अन्यथा वे गेम्स खेलने लगते हैं साथ ही गलत सामग्री को भी देखे जाने की संभावना रहती है। प्रियदर्शिनी तिवारी कौशांबी ने कहा कि यूट्यूब, दीक्षा एप, रेडियो पाठशाला, मिशन प्रेरणा आदि से बच्चों को लाभान्वित किया जा रहा है पर अभिभावक काम पर चले जाते हैं और देर शाम घर आते हैं तभी बच्चे शिक्षण कर पाते हैं।
अरविंद गुप्ता वाराणसी ने कहा कि यह संजीवनी की तरह उपयोगी है। इस नवीन विधा ने विद्यार्थियों को भय, डर, निराशा, हताशा से मुक्त किया है। साथ ही समाज में शिक्षकों की छवि को भी बेहतर किया है। सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना श्रेयस्कर है। श्रद्धा बबेले झांसी ने अभिमत दिया कि शिक्षा के क्षेत्र में डेस्क-कुर्सी, ब्लैक बोर्ड की जगह कंप्यूटर मोबाइल ने ले ली है। बच्चों को भी ई-सामग्री प्राप्त हो रही है और स्वयं अध्ययन के बहुत रास्ते खुले हैं। कमलेश पांडे वाराणसी ने विचार दिया कि ऑनलाइन शिक्षण विधा पर काम करने हेतु टीचर्स को कोई प्रशिक्षण नहीं प्राप्त हुआ था। बावजूद इसके शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अपनी लगन और कल्पना से बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा। इस विधा पर न शोध है नव्यवस्थित ढांचा और न पहुंच। बच्चों के बेहतर अधिगम स्तर का निष्पादन संभव होता नहीं दिखता क्योंकि बच्चों से प्रत्यक्ष संपर्क न होने से हम सीखने का आकलन नहीं कर पाते। औरैया के कृष्ण कुमार ने विचार रखा कि आपदाएं संभावनाओं का द्वार भी खुलती हैं। शिक्षा में इतना तकनीकी प्रयोग पहली बार हुआ है। सभी बच्चों तक शिक्षा पहुंच भी नहीं पाई। अभी इस विधा पर यह शुरुआती परिचय ही कहा जाएगा दक्षता बाद में बढ़ेगी। अब्दुल रहमान वाराणसी ने कहा कि हमने कक्षावार ग्रुप बनाकर काम शुरू किया पर ग्रामीण क्षेत्रों में नेट कनेक्टिविटी न होना एक बड़ी समस्या है। कार्यशाला में पूनम नामदेव, नूतन वर्मा सहारनपुर, छवि अग्रवाल वाराणसी, माधुरी जायसवाल जौनपुर, राजेंद्र एवं कमलेश त्रिपाठी ने भी अपने अनुभव साझा किए। श्रेया द्विवेदी कौशांबी और शमसुन निशा बांदा ने कविताओं के माध्यम से अपनी बात कही। नम्रता श्रीवास्तव, शैलेश शंखधर, मनुजा द्विवेदी, श्वेता मिश्रा, तपस्या पुरवार, आसिया फारूकी, जय श्रीवास्तव, राकेश द्विवेदी आदि उपस्थित रहे। प्रमोद दीक्षित ने सभी का आभार व्यक्त किया।