आत्माराम त्रिपाठी
आज देश प्रदेश जिला नगर महानगर ग्राम मुख्यालय से जोड़ने वाले मुख्य मार्ग का ऐसा कोई कोना नहीं बचा जंहा अन्ना जानवरों का वंहा जमावड़ा न हो।हर उस जगह अन्ना जानवर देखने को मिल जाएगा जो मार्ग मुख्यालय से जुड़ता है।
आज नगर से लेकर ग्रामीण आंचल तक अन्ना गायों का स्वच्छंद विचरण है यह वही गायें है जिन्हें हम गौ माता कहके पुकारते हैं जीवित रहने पर इससे मिलने वाले दूध घी से ऊर्जा प्राप्त करते हैं मरने पर इसे वैतरणी पार करने का माध्यम मानते हैं।पर यह कैसी बिडबंना है कि उसी गौमाता को रोड पर वाहनों से टकराकर मरने हेतु अन्ना छोड़ देते हैं छोड़ देते हैं लोगों के डंडे खाने के लिए कैसे पूत है जो अपनी माता को ही यह सब सहने के लिए बिबस कर रहे हैं।ठीक उसी प्रकार जैसे अपने बुजुर्गो को अनाथ आश्रम ब्रध्दाश्रम अनपढ़ कम शिक्षित कहलाने वाले लोग ज्यादा पहुंचाते हैं पर इन माताओं को तो यह भी नशीब नहीं है। गौशाला बनी है जिन्हें हम आज अनाथश्रम ब्रध्दाश्रम का नाम दे रहे हैं पर कितनी गौमाताओं की देखभाल हो रही है क्या वंहा पर इनके भोजन पानी की समुचित व्यवस्था है बैठने की समुचित व्यवस्था है बिमार होने पर समय पे इलाज की व्यवस्था है व इन व्यवस्थाओं को कौन देख रहा है कौन पूर्ण रूप से जिम्मेदार है बतायेगा? वह गौ भक्त कंहा है क्या उन्हें इनकी दुर्दशा नहीं दिखाई दे रही अगर दिखाई दे रही है है तो अब तक ऐसे लोगों ने क्या किया की केवल गुड खिला सेल्फी लेने तक ही सीमित है। मान्यवरों कुछ करो की बिहार के लालू यादव जैसे उनको मिलने वाला चारा भूसा भी खा जाओगे। हो सकता है हमारे कथन से किसी को मिर्ची लग रही हो उन्हें लग रहा होगा कि हम असत्य लिख रहे हैं गलत बोल रहे हैं तो अपने एसी से बाहर निकलिए हो सकता है कुछ एसी के बजाय हमारे जैसे सिरफिरे हाथ पंखे वाले हो या कूलर पंखे वाले लेकिन जो भी हो बाहर निकल कर अपने घोंसले से देखें और गायों की हो रही दुर्दशा को दूर करने का उपाय खोजें की हम इनके गौरव को वापस कैसे ला सकते हैं —–