रघु यादव मस्तूरी की रिपोर्ट
मस्तूरी। कोरोना लाॅकडाउन के बीच जहां आम जन जीवन अस्त-व्यस्त है वहीं दूसरी तरफ कथित पत्रकारों एवं मीडिया गैंगों का आतंक बुलन्दियों पर है, जबकि मीडिया संगठनों में भी वर्चस्व को लेकर जबरदस्त जंग छिड़ी हुई है।
वह आदमी जो लिखता है, जो महीने-दर-महीने, हफ्ते-दर-हफ्ते, दिन-रात असबाब जुटाकर लोगों के विचारों को शक्लो-सूरत देता है, दरअसल वही आदमी है जो किसी अन्य व्यक्ति की बनिस्बत, लोगों के व्यक्तित्व या सिफत को तय करता है और साथ-साथ यह भी, कि वे किस तरह के निजाम के काबिल है।
इसका मतलब हुआ पत्रकारों पर महान दायित्व है. जो पत्रकार महीने-दर-महीने, हफ्ते-दर-हफ्ते, दिन-रात साजो-सामान जुटाकर नेताओं को बिना किसी किस्म की जवाबदेही के अपनी कुर्सी पर बनाए रखने के लिए लेख पर लेख लिखते हैं, या फलां नेता या फलां सरकार के गुणगान करने में रात-दिन एक कर देते हैं या उनकी काली करतूतों के खिलाफ सबूतों को नजरंदाज करते हैं, ऐसे पत्रकार दरअसल भ्रष्टाचारी, जन-विरोधी और अनैतिक सरकारों के हिमायतियों की गिनती में आते हैं।
ऐसे पत्रकार टीवी माध्यम के प्राइमटाइम एंकर, अखबार के संपादक या बीट रिपोर्टर में से कोई भी हो सकते हैं। समूचे इतिहास में राजनेताओं और सत्ता में बैठे तमाम महानुभाव मीडिया और पत्रकारों को पालतू बनाने को जरूरी मानते आए हैं क्योंकि उनके पास वह ताकत है जिसकी शिनाख्त रूजवेल्ट ने अपने कथन में की थी. कुछ देशों में, अन्य देशों के मुकाबले राजनेता — मीडिया और पत्रकारों को वश में रखने में ज्यादा कामयाब रहे हैं। लेकिन सत्ता पर काबिज एक शक्तिशाली व्यक्ति किसी पत्रकार को किस हद तक वश में कर सकता है, यह बात बहुत हद तक उस पत्रकार विशेष पर भी निर्भर करती है।
पत्रकारों के साथ आए दिन हो रहे अत्याचार व फर्जी तरीके से प्रताड़ित करना व झूठे केस में फंसाने जैसी वारदातों को देखते हुए मस्तूरी क्षेत्र के पत्रकारों के साथ आज बिलासपुर में अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति ने सामान्य बैठक लिया।
बैठक में शासन-प्रशासन के जवाबदार अधिकारियों के द्वारा क्षेत्र के पत्रकारों को प्रताड़ित करने व झूठे मामलों में फंसाने सहित अभद्र व्यवहार जैसी समस्याओं को लेकर बिलासपुर में विशेष बैठक किया गया। बैठक में छत्तीसगढ़ शासन के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अवगत कराने के साथ-साथ राजधानी के उच्च अधिकारियों से शिकायत करने की रणनीति बनाई गई।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शासन प्रशासन के कुछ अधिकारी वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला के समर्थन में रायपुर में हुए 2 अक्टूबर एवं 11 अक्टूबर के धरना प्रदर्शन से मस्तूरी क्षेत्र के जितने भी पत्रकार लौटे हैं उन लोगों को मानसिक एवं शारीरिक रूप से परेशान किया जा रहा है जो निश्चित रूप से पत्रकर्मियों के दो गुटों में विभाजित हो जाने का विकट परिणाम है।
प्रशासनिक अधिकारी इस मतभेद का भरपूर फायदा उठाते हुए किसी के साथ अभद्र व्यवहार तो किसी को देख लेने की बात कहते हैं तो किसी को झूठे मामले में फंसाने की पुरजोर कोशिश किया जा रहा है।
सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि क्षेत्र के कुछ जवाबदार अधिकारी अपने पक्ष में झूठी खबर लगवाने के नाम से पत्रकारों पर दबाव बना रहे हैं और खबर नहीं लगाने पर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
इन्हीं सब समस्याओं को लेकर “अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति” ने मस्तूरी क्षेत्र के पत्रकारों के साथ आवश्यक बैठक लेकर रणनीति तैयार किया है।
पत्रकारिता का हमारा पेशा हमसे असमान्य मेहनत की मांग करता है। इस पेशे में तमाम किस्म के मुद्दों पर गहरी समझ की दरकार होती है और साथ-साथ फौरन से पेशतर फैसले लेने की क्षमता। चूंकि पत्रकारों को समाज के ताकतवर तबकों के दबाव और रोष का भी लगभग सामना करना पड़ सकता है, इसलिए किसी खबर पर काम करने के सभी चरणों के दौरान आप में ऐसी स्थितियों से निपटने का कौशल और रणनीति होना भी जरूरी है — कहानी के छपने से पहले और छपने के बाद भी। दुशवारियों से भरे इस पेशे में आपको स्व-रक्षा कवच भी विकसित करने होंगे। इन कवचों को जंग लगने से बचाने और कारगर बनाए रखने के लिए समय-समय पर उनकी साफ-सफाई और देखरेख भी जरूरी है।