रायपुर। सिकलसेल संस्थान में पीएचडी सीटों के लिए आयुष विवि ने अनुमति दी है। इसके साथ ही यहां 10 सीटों पर सिकलसेल डिसीज को लेकर शोध कार्य हो सकेगा। इसमें चिकित्सकों के साथ ही एमएससी मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, बायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी और एनाटॉमी जैसे विषयों के छात्र भी शोध कर सकेंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य सिकलसेल संस्थान में वर्तमान में तीन सीटों पर पीएचडी शोध चल रहा है। इसकी मान्यता स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा दी गई है, लेकिन 10 सीटों पर मिली अनुमति आयुष विश्वविद्यालय ने दी है।
इतनी सीटों पर पीएचडी की अनुमति मिलने से बीमारियों के संबंध में अधिक शोध किया जा सकेगा। मेडिकल शोध से इसका लाभ लोगों को होगा। बता दें कि प्रदेश में करीब 25 लाख से अधिक लोग सिकलसेल बीमारी से प्रभावित हैं। इस डिसीज को रोकने के लिए सरकार अपनी तरफ से प्रयास तो कर रही है, लेकिन इस पर कारगर नियंत्रण अब तक नहीं किया जा सका है।
इधर, राज्य सरकार यहां देश का पहला सिकलसेल डेडिकेटेड अस्पताल बनाने जा रही है। 52.23 करोड़ की लागत से बनने वाले अस्पताल में सिकलसेल के गंभीर रोगियों को भर्ती कर उनका इलाज किया जा सकेगा। अब तक यहां पर जांच की ही सुविधाएं मिल रही हैं।
सिकलसेल बीमारी को जानें
यह एक तरह की अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चों में आती है। इसका अभी तक निश्चित इलाज नहीं मिल पाया है। पीड़ित को ताउम्र अपना इलाज कराना होता है। इसके लक्षणों में लाल रक्त कण, आक्सीजन की कमी, चेहरे के हंसिए की तरह परिवर्तित होना, जन्म के दौरान बच्चों में बुखार, पेट दर्द, जोड़ व गाठों में दर्द, प्रतिरोधक क्षमता का कम होना आदि है।
सिकलसेल संस्थान में पीएचडी के लिए आयुष विश्वविद्यालय ने अनुमति दी है। इस सीटों पर चिकित्सा क्षेत्र के साथ ही एमएससी मेडिकल माइक्रोबायोलाजी, बायोलाजी, बायोटेक्नोलाजी और एनाटामी जैसे विषयों के छात्र शोध कर सकेंगे।
– डा. अरविंद नेरल, महानिदेशक, सिकलसेल संस्थान, रायपुर
आयुष विवि से पीएचडी के लिए अनुमति मिली है। अब तक यहां स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय से पीएचडी की मान्यता के साथ ही तीन सीटों पर पीएचडी संचालित है। आयुष विवि से अनुमति के बाद करीब 10 सीटें बढ़ेंगी।
डा. ऋ षिकेश मिश्रा, साइंटिस्ट, सिकलसेल संस्थान, रायपुर