गुजरात। गुजरात के सूरत में चार युवाओं ने उस हालात में कोरोना को मात दी, जब उनके फेफड़ों में संक्रमण 90 फीसदी से ज्यादा था। वहीं, ऑक्सीजन का स्तर 70 से नीचे पहुंच चुका था।
सूरत के रहने वाले और पेशे से अकाउंटेंट 33 वर्षीय आकिब काजी के लिए पिछला कुछ वक्त काफी खराब रहा। करीब एक महीने पहले ब्रेन स्टोक की वजह से उन्होंने अपने पिता को खो दिया। वह इस सदमे से उबर भी नहीं पाए थे कि कोरोना की चपेट में आ गए। कुछ दिन पहले आकिब के फेफड़ों में इंफेक्शन 90 से 100 फीसदी तक पहुंच गया। इसके बावजूद आकिब ने हार नहीं मानी। करीब 25 दिन तक कोरोना का डटकर सामना किया और 7 दिन पहले ठीक होकर अपने घर लौट जाए। पिता के निधन के बाद कोरोना से उबरने के लिए आकिब अपनी मजबूत इच्छाशक्ति को धन्यवाद देते हैं। आकिब का इलाज करने वाले डॉ. पीयूष पटोलिया ने बताया कि अस्पताल में भर्ती होने के दूसरे दिन से उन्हें सांस लेने में समस्या होने लगी। ऐसे में उन्हें 8 दिन तक बीपैप (BPAP) मशीन पर रखा गया। इसके बाद अगले 8 दिन उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहना पड़ा। डॉक्टर ने बताया कि आकिब की हृदय गति भी काफी कम हो गई थी, लेकिन वह मानसिक रूप से काफी मजबूत बने रहे।
कोरोना से जंग जीतने वालों में 28 वर्षीय हर्षद कुंभनी भी शामिल है। राजकोट में उन्हें बेड नहीं मिला तो उन्हें इलाज के लिए सूरत आना पड़ा। फेफड़ों में 70 फीसदी से ज्यादा संक्रमण होने के बावजूद उन्होंने कोरोना को मात दे दी। चिकित्सक ने बताया कि हर्षद का ऑक्सीजन स्तर 66 पहुंच गया तो उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। उनकी उम्र काफी कम थी और कोई गंभीर बीमारी भी नहीं थी। ऐसे में वह जल्दी ठीक हो गए।
41 वर्षीय प्रवीण कावद के फेफड़ों में 55 फीसदी संक्रमण हो गया था। भावनगर में जब उन्हें बेड नहीं मिला तो सूरत के न्यू सिविल अस्पताल लाया गया। 15 दिन तक उन्हें बीपैप पर रखा गया। इसके बाद प्लाज्मा थैरेपी भी दी गई। अस्पताल से 20 दिन बाद डिस्चार्ज होने वाले प्रवीण बताते हैं कि उनका ऑक्सीजन लेवल काफी गिर गया था, लेकिन वह इससे डरे नहीं। वह खुद को दिलासा देते रहे कि वह ठीक हो जाएंगे और घर लौटेंगे।
वेसु निवासी 47 वर्षीय गोपाल भगत का इलाज 24 दिन तक चला। जब उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया तो ऑक्सीजन का स्तर 92 था, लेकिन फेफड़ों में इंफेक्शन 75 फीसदी तक पहुंच चुका था। ऐसे में उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया। गोपाल बताते हैं कि जब मुझे बीपैप पर रखा गया तो मैं काफी डरा हुआ था। हालांकि, डॉक्टर और अस्पताल का स्टाफ लगातार मेरा मनोबल बढ़ाते रहे, जिससे मैं दुरुस्त हो गया।