अनिल अनूप
कोरोना वायरस ने कमोबेश सार्क देशों को एक साझा मंच पर ला खड़ा किया है। सार्क के सदस्य देशों भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव के राष्ट्राध्यक्षों या प्रधानमंत्रियों के बीच संवाद हुआ। पाकिस्तान की तरफ से वजीर-ए-आजम इमरान खान के जूनियर स्वास्थ्य मंत्री ने संवाद में हिस्सा लिया। सार्क की भीतरी दरारें यहीं से साफ होने लगती हैं। सार्क देशों में कई मतभेद रहे हैं, मुद्दत से मेल-मिलाप नहीं हो पाया था, लिहाजा कोरोना पर ही सही, एक संरचनात्मक संवाद की शुरुआत तो हुई। दक्षिण एशिया के इन देशों की समस्याएं और आपदाएं एक-सी हैं, घनी आबादी का यह क्षेत्र औसतन गरीब और विकासशील है। पाकिस्तान, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान की आर्थिक मजबूती ऐसी नहीं है कि लंबे वक्त तक कोरोना वायरस सरीखी महामारी से लड़ सकें, लिहाजा सार्क देशों की एकजुटता और साझा रणनीति महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है। बेशक प्रधानमंत्री मोदी ने इस एकजुटता की पहल की और वीडियो कान्फे्रंसिंग के जरिए अपने-अपने देशों की चिंताओं, स्थितियों और कोरोना से लड़ने के बंदोबस्त साझा किए। प्रधानमंत्री मोदी ने करीब 74 करोड़ रुपए के फंड की पेशकश करते हुए ‘कोविड-19 आपात कोष’ बनाने का सुझाव दिया। हालांकि सार्क देशों में चीन, इटली, ईरान सरीखी जानलेवा और भयावह स्थितियां नहीं हैं, अभी तक कोरोना संक्रमण के 150 से कम केस सामने आए हैं, लेकिन फिर भी सतर्क और तैयार रहना जरूरी है। बेशक दहशत और खौफ की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी सार्क देशों के नेताओं ने सरोकार जताया कि सावधानी बरतने और वायरस के खिलाफ चौकन्ना रहना बेहद जरूरी है। चीन, इटली, अमरीका तब सक्रिय हुए, जब कोरोना वायरस फैल चुका था और उसके प्रभाव में लोग मरने लगे थे। चीन अब सामान्य होने लगा है, लेकिन दुनिया में 1.68 लाख के करीब लोग संक्रमित हो चुके हैं और करीब 6500 मौतें हो चुकी हैं। हालात तोड़ देने और निराश कर देने वाले हैं, लेकिन फिर भी एक विषाणु के खिलाफ लड़ाई लड़नी है। चूंकि भूटान और अफगानिस्तान के राजनेताओं ने कोरोना के आर्थिक दुष्प्रभावों की भी बात की है और मालदीव के राष्ट्रपति ने कबूल किया है कि कोई भी देश अकेला कोरोना से नहीं लड़ सकता, लिहाजा सवाल हो सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने एक क्षेत्रीय पहल की है। सार्क देशों के बीच क्षेत्रीय संवाद का ऐसा मुद्दा पहली बार उठा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जी-7 और जी-20 देशों के संवाद का भी आह्वान किया है, लिहाजा इस संदर्भ में भारत की भूमिका क्या होगी? भारत ने जिस तरह ईरान और चीन की मेडिकल मदद की है, क्या सार्क देशों की अपेक्षाएं भी वैसी ही होंगी? बहरहाल सार्क देशों ने संकल्प लिया है कि कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए साझा रणनीति पर मिलकर काम करेंगे और सफल होंगे। दक्षिण एशिया में अतिरिक्त सतर्कता बरतना जरूरी है, क्योंकि दुनिया की आबादी का 5वां हिस्सा सार्क देशों में ही रहता है। विकासशील देशों के रूप में स्वास्थ्य सुविधाओं की चुनौतियों से निपटेंगे, मिलकर तैयारी करेंगे और कामयाब होंगे। इस महामारी से बचने के लिए एक साझा टेली-मेडिसन फ्रेमवर्क बनाएंगे। बहरहाल साझा रणनीति का ठोस स्वरूप आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा, लेकिन यह आपसी सहयोग बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत अपने पड़ोसी देशों के संकट में फंसे लोगों की भी मदद करता रहा है और भारतीयों के साथ उन्हें भी एयरलिफ्ट किया है, लेकिन ऐसे संवाद में भी पाकिस्तान का रवैया फांस की तरह चुभता है। पाकिस्तान के प्रतिनिधि ने अपने वक्तव्य में यह भी कह दिया कि कोरोना से पूरी तरह निपटने के मद्देनजर कश्मीर पर से पाबंदियां हटनी चाहिए। यह गैर-जरूरी बयान था, क्योंकि यह संवाद सियासी किस्म का नहीं था। आसन्न आपदा पर बात करके साझा रणनीति तैयार की जानी थी। पाकिस्तान कोई ठोस सुझाव तो नहीं दे पाया, लेकिन कश्मीर पर एक बार फिर रो जरूर दिया। दरअसल यह पाकिस्तान की फितरत ही है।