अनिल अनूप का विशेष लेख
महामारी निरोधक कानून में संशोधन करते हुए केन्द्र की मोदी सरकार ने जिस तरह डाक्टरों व चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों पर हमला करने को लेकर अध्यादेश जारी किया है और सख्त सजा का प्रावधान किया है उसी के अनुरूप अब माब लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारा जाना) के विरुद्ध भी अध्यादेश जारी करने की जरूरत है।
महाराष्ट्र के पालघर के गढ़चिंचली इलाके में दो साधुओं सहित तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या की घटना ने देश को चौंका दिया है। करीब 200 लोगों की भीड़ ने चोर के शक में दो संतों और उनके ड्राइवर को लाठी-डंडे से पीट-पीटकर मार डाला। इस मॉब लिंचिंग में मारे गए लोगों की पहचान सुशील गिरी महाराज, चिकने महाराज कल्पवरुक्षगिरी और ड्राइवर नीलेश तेलगाड़े के तौर पर हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक दोनों साधु पालघर के गढ़चिंचली गांव में जब इंटिरयर रोड से होते हुए मुंबई से गुजरात की ओर जा रहे थे तभी किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कुछ चोर भाग रहे हैं। इसके बाद दर्जनों लोगों की भीड़ उनके ऊपर टूट पड़ी। बताया जाता है कि यह पूरी घटना वहां मौजूद पुलिस कर्मियों के सामने हुई लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। कुछ न करना तो अलग बात है लेकिन जब भीड़ संतों को डंडों से मार रही थी तो पुलिस वाला वहां से भाग गया। पालघर में साधुओं की हत्या के बाद संत समाज में काफी गुस्सा स्वाभाविक है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इस मामले में सभी आरोपियों को सजा नहीं दिलाई गई तो महाराष्ट्र में बड़ा आंदोलन होगा। इस मामले में भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने ट्वीट करते हुए कहा है कि सभी आरोपियों पर रासुका लगाया जाना चाहिए। राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने रविवार को जांच के आदेश दिए जाने की जानकारी देते हुए इस घटना को कोई सांप्रदायिक रंग नहीं देने की भी चेतावनी दी। सीएम ठाकरे ने बताया कि यह सही है कि साधुओं के साथ घटना महाराष्ट्र के पालघर में हुई। लेकिन गढ़चिंचली इलाका जिला मुख्यालय से करीब 110 किलोमीटर दूर केंद्र शासित राज्य दादरा-नगर हवेली से चन्द मीटर दूर है। दोनों साधु लॉकडाउन की वजह से दुर्गम रास्ते से गुजरात जा रहे थे। दादरा-नगर हवेली बॉर्डर पर साधुओं को रोका गया और लौटा दिया गया। वापसी में गढ़चिंचली के अत्यंत दुर्गम इलाके से वह गुजर रहे थे। वहां गलतफहमी में इन पर हमला हुआ और भीड़ ने हत्या कर दी। यदि उस रात दादरा-नगर हवेली के बॉर्डर पर उन्हें रोक लिया गया होता और सुबह महाराष्ट्र पुलिस को सौंपा होता तो यह घटना नहीं घटती। ठाकरे ने बताया कि जिस गांव में घटना घटी, वहां कुछ दिनों से रात के वक्त चोरों के घूमने की अफवाह फैली हुई थी। अब तक 5 प्रमुख हमलावरों सहित 101 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है और भी गिरफ्तारियां हो रही हैं। 250 से ऊपर फरार हैं। थाने के असिस्टेंट इंस्पेक्टर आनंद राव काले और सब-इंस्पेक्टर सुधीर कटारे को निलंबित कर दिया गया है। पुलिस की भूमिका की भी जांच हो रही है। यह भी पता लगाया जा रहा है कि लॉकडाउन के बीच तीनों साधु यात्रा कैसे कर रहे थे?
साधुओं की हत्या बताती है कि भारतीय समाज में अभी भी ऐसी जहरीली रूढि़यां है जो मनुष्य के भीतर छिपे दानव को सतह पर ले आती हैं। ये रूढि़यां ही आज भी दलितों पर अत्याचार कराती हैं और साम्प्रदायिक हिंसा को हवा देती हैं। लेकिन खुद को बुद्धिजीवी समझने वाले लोग भी इन रूढि़यों से किस कदर बन्धे हुए हैं कि वे माब लिंचिंग को मजहबी नजरिये से देखते हैं। साधू या संन्यासी समाज को कुछ देने के लिए ही बनते हैं। हिन्दू समाज में इन्हें आश्रमों में आदर दिया जाता है और मुस्लिम समाज में खानकाहों में।
आश्चर्य है कि इससे पूर्व ‘माब लिंचिंग’ की हुई घटनाओं के खिलाफ गला साफ कर- करके बांस पर चढ़ कर आसमान सर पर उठाते हुए तकरीरें झाड़ने वाले ‘शूरवीर’ जाने किस कोने में छिप कर बैठ गये हैं? उनकी जबान पर ताले लगने की वजह क्या हो सकती हैं? कहां हैं कुलहिन्द के शाहरे-ए-मुअज्जम जावेद अख्तर जो कोरोना वायरस के खिलाफ सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों में ‘इमरजेंसी’ का अक्स नुमायां कर रहे थे? जावेद अख्तर ने ट्विटर पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए एक ट्वीट किया है। इसमें उन्होंने लिखा, ‘जो लोग दो साधुओं और उनके चालक की लिंचिंग के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाना चाहिए। सभ्य समाज में बर्बर और जघन्य अपराध के लिए किसी भी तरह की सहनशीलता नहीं होनी चाहिए।’ इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कई बॉलीवुड स्टार्स मामले को लेकर गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और अपनी बात रख रहे हैं।
अखलाक से लेकर पहलू खां और तबरेज की माब लिंचिंग में की गई हत्या के बाद हिन्दोस्तान की सड़कों को नापने वाले हर्ष मन्दर साहेब कौन सी नई किताब पढ़ने में मशगूल हो गये कि उन्हें वक्त का पता ही नहीं चल रहा है ? कहां हैं ‘वीर बाला’ अरुन्धती राय जिन्हें कोरोना रोकने के लिए जमातियों को बाहर लाने के उपायों में जालिमाना हरकतें दिखाई पड़ रही थीं ? कहां है अवार्ड वापसी ब्रिगेड (पुरस्कार लौटाने वाले लोग) जिन्हें भारत में सहिष्णुता समाप्त होने पर भाई चारे का जनाजा उठता हुआ दिखाई दे रहा था? क्या ये सभी इस वजह से दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो गये हैं कि मरने वाले बहुसंख्यक हिन्दू समाज के दो साधू थे और उन्हें मारने वाले भी इसी समाज के ही लोग थे! इनको क्या यह लगा कि इस घटना का लाभ उन्हें और उनके राजनीतिक आकाओं को क्यूं कर मिल सकेगा? दरअसल माब लिंचिंग एक विकृत मानसिकता है जो धर्म नहीं देखती परन्तु कुछ लोगों ने इसे धर्म से जोड़ कर देखने की गुस्ताखी कर डाली।
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