अनिल अनूप
23 अप्रैल को लॉकडाउन का एक महीना पूरा हुआ। बेशक कोरोना वायरस अब भी मौजूद है और लोग लगातार संक्रमित हो रहे हैं। लॉकडाउन स्वास्थ्य का कोई हथियार या इलाज भी नहीं है। लॉकडाउन की अपनी तकलीफें हैं। सब कुछ बंद-सा नजर आ रहा है। आर्थिक पाबंदियां भी थोप दी गई हैं, लेकिन यह अंधेरी सुरंग एक दिन जरूर खत्म होगी और नए उजाले हमारे सामने होंगे। कमोबेश यह देश इतना आशावान जरूर है। अमरीका और पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी लॉकडाउन की शुरुआत की गई। एक प्रयोग किया गया और हमें समय मिला कि कोरोना के क्रूरतम प्रहार की स्थितियों के लिए हम देश को तैयार कर सकें। आज भारत में अस्पताल, कुल बेड, आईसीयू बेड्स, वेंटिलेटर और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पीपीई किट्स आदि का पर्याप्त बंदोबस्त है। लॉकडाउन के दौरान सबसे बड़ी सफलता यह रही कि हमारे चिकित्सकों और खुद जागरूक नागरिकों ने कोरोना का संक्रमण सामुदायिक, ग्रामीण स्तर पर फैलने नहीं दिया। आज भी 300 से अधिक जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना वायरस प्रवेश नहीं कर सका है। हमारे 78 जिले ऐसे हैं, जहां बीते 14 दिनों में कोरोना का एक भी केस सामने नहीं आया। यह सुखद सच है कि पूरा देश कोरोनाग्रस्त नहीं है। गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के बाद अब त्रिपुरा को भी कोरोना-मुक्त घोषित किया गया है। एक माह की इस अवधि का आकलन आईसीएमआर ने भी किया है। आज भारत भी 5.5 लाख से अधिक टेस्ट कर चुका है और हररोज औसतन 30-35 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं। संतोषजनक यह है कि शुरुआत में भी संक्रमित होने की दर करीब 4.5 फीसदी थी और एक माह बाद भी दर वही है। यह निरंतरता शुभ संकेत है। बेशक इतने टेस्ट के बावजूद भारत में करीब 20,000 लोग ही कोरोना संक्रमित हैं, जबकि उनमें से स्वस्थ होकर घर लौटने का औसत करीब 20 फीसदी है। इसे उपलब्धि माना जा सकता है। दूसरी तरफ 5 लाख टेस्ट करने पर अमरीका में करीब 88,000 मरीज सामने आए और ब्रिटेन, इटली, स्पेन सरीखे देशों में भी यह आंकड़ा 1 लाख के करीब रहा। हालांकि ऐसी तुलनाएं नहीं की जानी चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि से वे देश भारत से बहुत विकसित हैं, लेकिन हमने शिद्दत से लॉकडाउन का पालन किया और दो गज की दूरी का प्रचार गांव-गांव तक किया गया, लिहाजा हमने इसे भी जीवन-शैली की तरह ग्रहण किया। लेकिन लॉकडाउन ही अंतिम सत्य नहीं है। आज प्रधानमंत्री मोदी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन से मुलाकात कर निश्चित तौर पर आर्थिक मुद्दों पर विमर्श किया होगा। एक पैकेज भारत सरकार और दूसरा पैकेज रिजर्व बैंक घोषित कर चुके हैं। यदि किसी तीसरे पैकेज की संभावना बनती है, तो उसका विश्लेषण बाद में करेंगे, लेकिन फिलहाल इस महामारी वाले संक्रमण को रोकना बेहद जरूरी था। कोरोना का कोई तय इलाज नहीं है, वैक्सीन और दवाओं पर अनुसंधान जारी हैं, वैक्सीन पर ब्रिटेन से एक शुभ संकेत आया है और उसका इंसानी ट्रायल अंतिम चरण में बताया जाता है। यदि यह सफल होता है, तो मानवता की बहुत बड़ी सेवा होगी। बहरहाल लॉकडाउन किसी भी देश के लिए अंतिम शाश्वत नहीं है। एक दिन इसे समाप्त करने का सरकार निर्णय करेगी ही, लेकिन इसे एक अच्छी शुरुआत के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। अब फोकस जिला और मंडल स्तर पर हो। कमोबेश कोरोना का संक्रमण न फैले। यदि 3 मई के बाद लॉकडाउन खोला जाता है, तो उसे चरणबद्ध तरीके से खोला जाए। आम नागरिक भी खुलने के बाद सड़क पर भीड़ बनकर न बिछ जाए। हमें अभी बहुत सतर्क रहना है, अभी कोरोना हमारा साथ छोड़ने वाला नहीं है, कमोबेश संयम को नए जीवन का मूल नियम बनाना ही पड़ेगा। यदि ऐसा होने के बजाय आम जीवन में भगदड़-सी तेजी दिखाई देती है, तो संक्रमण किसी भी स्तर पर दबोच सकता है। ग्राम स्वराज पोर्टल का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री ने देश के करीब 31 लाख पंचायत प्रतिनिधियों से वीडियो संवाद किया और यह भी स्वीकार किया कि कोरोना ने हमें नई शिक्षा दी है कि अब हमें आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। उसके बिना इतनी भयावह समस्या से जूझा नहीं जा सकता।