अनिल अनूप
कोरोना योद्धाओं की पहचान का दायरा बड़ा होता जाएगा, वैसे-वैसे लॉकडाउन के दायरे छोटे हो जाएंगे या इस अभियान के साथ कर्मठ हाथ बढ़ जाएंगे। देश में कोरोना के खिलाफ शुरू हुई जंग में पहले ऐसे योद्धाओं की गिनती सवा करोड़ आंकी गई, लेकिन अब चिकित्सा, पुलिस व्यवस्था, सफाई मजदूर व हर तरह की आपूर्ति में मशगूल तपकों के अलावा मीडिया का सारा दारोमदार ही योद्धा की तरह पेश है। ऐसे में परिस्थितियों के बीच और चुनौतियों के सामने डटे हर शख्स की पहचान एक योद्धा की तरह है,चाहे वह दुकानदार हो या मजदूर। बेशक कई राज्य सरकारों ने इस दौर में कोरोना योद्धाओं को होने वाले किसी भी शारीरिक नुकसान की स्थिति में शहादत का दर्जा देने का प्रस्ताव सामने रखा है या मुआवजे के तौर पर पचास से एक करोड़ तक देने का प्रावधान है, लेकिन यह राशि मुख्य तौर पर चिकित्सा कर्मियों तक ही दिखाई दे रही है। उत्तराखंड ने चार लाख तक की बीमा राशि से इस तरह की राहत को सफाई कर्मी, पुलिस तथा मीडिया तक जोड़ा है। हमारा मानना है कि कोविड-19 के खिलाफ खड़ी होती दीवार के हर पात्र को ऐसा सुरक्षा चक्र मिलना चाहिए ताकि किसी भी तरह की अनहोनी होने पर परिवार को आर्थिक मदद मिल सके। हिमाचल सरकार ने भी अपनी विशेष सेवाओं के लिए जीवन के नुकसान को पचास लाख तक के बीमा कवर से जोड़ा है। यह घोषणा कोरोना योद्धाओं का मनोबल ऊंचा करने की ऐसी शिनाख्त है, जिसे इस वक्त की अनिवार्यता के रूप में देखा जाएगा। यह दीगर है कि इसका दायरा बढ़ाने तथा कोरोना योद्धाओं का वास्तविक मूल्यांकन करने की जरूरत है। चिकित्सा की चुनौतियों के बीच जिंदगी को वरदान बनाने तथा इससे जुड़ी जरूरतों की आपूर्ति करने की व्यवस्था को हम डाक्टरी पेशे के अलावा कानून-व्यवस्था, सूचना तंत्र तथा मांग-आपूर्ति से जोड़कर देखें, तो कोरोना युद्ध का क्षेत्र काफी विस्तृत है। कोरोना के खिलाफ समूची राष्ट्रीय शक्ति भले ही इस वक्त लॉकडाउन में समाहित है, लेकिन इस दौरान भी जीवन की धमनियां अगर चल रही हैं, तो कई अपरिचित मसीहा काम कर रहे हैं। इनमें मीडिया की भूमिका न केवल सही सूचनाओं तक पहुंचना है, बल्कि हर कोरोना योद्धा तक इनकी पहुंच से जुड़े खतरों से खेलना भी नियति बन गई है। ऐसी सूचनाएं हैं कि अभी तक देश भर में लगभग सात से आठ दर्जन पत्रकारों में कोरोना पॉजिटिव संकेत मिले हैं और अगर टेस्ट बढ़ेंगे तो ऐसी आशंकाओं को नए आंकड़े मिल सकते हैं। समाचार पत्रों पर पहले ही आर्थिक मंदी छाई है, ऊपर से प्रसार की दिक्कतें इसलिए बढ़ जाती हैं, क्योंकि परिवहन की सुविधाएं अभी बाधित हैं। ऐसे में सूचना को सही परिप्रेक्ष्य में प्रेषित करना महज तकनीकी अभ्यास नहीं, बल्कि कोरोना भय की खामोशी से शब्द चुनने की कठोर परिपाटी है। कहना न होगा कि इस दौर ने हिमाचल जैसे प्रदेश को डिजिटल मीडिया का करीबी जरूर बनाया है, लेकिन यहां भी सूचना किसी स्टूडियो की भीतरी कशमकश से कहीं अधिक फील्ड के अंतिम छोर, अस्पतालों की टेस्टिंग रिपोर्ट, सचिवालय के निर्णयों तथा प्रशासनिक प्रेस ब्रीफिंग तक जारी है। हर कैमरा की आंख से माइक की जुबान तक मीडिया के खतरे खुले तौर पर अंगीकार हो रहे हैं, अतः इस बिरादरी का योगदान महज खबर तक नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन तथा जीवन से जुड़े हर मकसद तक है। मीडिया अपनी सार्थक भूमिका में सरकार, प्रशासन से कोरोना के विरुद्ध खड़ी राष्ट्रीय दीवारों की पहरेदारी है। मीडिया की बदौलत हर कोरोना योद्धा चिन्हित, सम्मानित तथा सुरक्षित है, तो इसकी सूचनाओं पर केंद्रित माहौल में आम जनता की आशाओं का हर पहलू लॉकडाउन के बीतने की खबर का इंतजार करता है। कहना न होगा कि कोरोना योद्धाओं की संख्या का विस्तार ही लॉकडाउन की सीमा को कम करेगा। कल जब उद्योग-धंधे तथा बाजार अपने-अपने सामर्थ्य से जनता को और सहज बनाएंगे, तो हर क्षेत्र में कोरोना योद्धा की तरह ही फर्ज का मूल्यांकन करना होगा। जिंदगी के विराम तोड़ने की शुरुआती मशीनरी भले ही सरकार के चिन्हित इरादों में दिखाई दी, लेकिन धीरे-धीरे इनसानी जरूरतें इन्हें नाई-धोबी से बढ़ई तक ले जाएंगी और तब हम सभी कोरोना के खिलाफ योद्धा बन कर पुनः सफल होंगे। ऐसे में वर्तमान कडि़यों में अग्रिम मोर्चे पर चिकित्सा, पुलिस से इतर जिनकी शिनाख्त हो रही है, उन्हें भी जिंदगी के सुरक्षा चक्र के साथ बीमा कवर दिया जाए। टेस्टिंग किट आने पर यह जरूरी होगा कि जो लोग अपने फर्ज के कारण कोरोना के माहौल में मौजूद हैं, उनका प्राथमिकता के आधार पर टेस्ट करवाया जाए।