अनिल अनूप
दो दिन के बाद लॉकडाउन-4 समाप्त हो रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि एक और संस्करण घोषित कर दिया जाए। गुरुवार को इसी संदर्भ में कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए राज्यों के मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य सचिवों और कुछ निगम आयुक्तों से संवाद किया। जाहिर है कि राज्यों के हालात और लॉकडाउन-5 की संभावना और जरूरत पर बातचीत हुई होगी। वैसे लॉकडाउन-5 की चर्चा गरमाने लगी है कि दो सप्ताह के लिए एक और तालाबंदी लगाई जाए। यानी 15 जून तक लॉकडाउन जारी रह सकता है। हालांकि इसका प्रारूप भिन्न हो सकता है। इस बार देश, राज्य के बजाय उन 11 शहरों पर ही फोकस रहेगा, जहां 70 फीसदी से ज्यादा संक्रमण रहा है। कोरोना का प्रकोप और प्रसार इन 11 शहरों में व्यापक रहा है। यदि मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, चेन्नई, सूरत, इंदौर, जयपुर और कोलकाता आदि शहरों में कोरोना वायरस के प्रहार थाम लिए जाते, तो शायद भारत संक्रमण-मुक्त श्रेणी में आ जाता। इनमें भी अहमदाबाद के हालात बेहद अमानवीय बताए जाते हैं। वहां के उच्च न्यायालय ने सिविल अस्पताल की तुलना किसी ‘बदबूदार तहखाने’ से की है। यहां तक चेतावनी दी है कि खुद न्यायाधीश अस्पतालों का जायजा लेने अदालत की दहलीज लांघ सकते हैं। अहमदाबाद में 11,000 से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना संक्रमितों की संख्या देश की राजधानी दिल्ली में भी लगातार बढ़ रही है और यह 16,000 को छूने लगी है। दिल्ली में ही भारत सरकार मौजूद है। असीमित संसाधन उपलब्ध हैं। प्रवासी मजदूरों का संक्रमण अपेक्षाकृत बहुत कम है। यदि फिर भी एक दिन में 800 नए संक्रमित मरीज सामने आते हैं, तो सरकार को खुद अपने से सवाल करना चाहिए। यह यथार्थ लॉकडाउन के चार संस्करणों के बावजूद है। मुंबई के हालात की चर्चा हमने बीते कल ही की है। अब भारत सरकार विमान सेवाएं शुरू कर चुकी है। रेलगाडि़यों की एक निश्चित संख्या पटरियों पर दौड़ रही है। लाखों लोग बुकिंग करा चुके हैं। राज्यों में बसें भी दौड़ रही हैं। राजधानी दिल्ली के लगभग सभी प्रमुख बाजार खुल चुके हैं और कारोबार की शुरुआत भी हो चुकी है। अब मेट्रो ट्रेन सेवा को भी खोलने की कवायदें जारी हैं। उसका ट्रायल भी शुरू हो चुका है। यात्रियों के बैठने की नई व्यवस्था कर दी गई है, ताकि ‘दो गज की दूरी’ बनी रहे। सार्वजनिक पार्कों में भीड़ आने लगी है। लोगों ने दूरी, मास्क और हाथों की लगातार सफाई के मायने आत्मसात कर लिए हैं। सभी बड़े शहरों में आम आदमी घर से निकलने लगा है। सरकारी और निजी दफ्तरों के कपाट भी खोल दिए गए हैं, बेशक कर्मचारियों की संख्या सीमित तय की गई है। अब चर्चा है कि सरकार एक जून से मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च आदि धार्मिक स्थलों को भी, एहतियात और शर्तों के साथ, खोलने की घोषणा कर सकती है। इसी श्रेणी में जिम को भी रखा जा सकता है। तो फिर लॉकडाउन-5 को 15 दिन के लिए लागू करने का औचित्य ही क्या है? लॉकडाउन अंतहीन नहीं हो सकता, यह देश के प्रधानमंत्री भी जानते हैं। लॉकडाउन करके हमें जो चिकित्सीय बंदोबस्त करने थे, वे कर लिए गए हैं। अब भारत हररोज औसतन तीन लाख पीपीई किट्स और मास्क का उत्पादन कर रहा है। अस्पतालों के बेड्स इतने तैयार हैं कि हम कोरोना की किसी भी परिस्थिति को झेलने को तैयार हैं। वायरस का चक्र भी हमारे विद्वान चिकित्सकों ने स्पष्ट कर दिया होगा। जब भारत पूरी तरह खुलने की प्रक्रिया में है, तो आम नागरिक को दोबारा घरों में कैद क्यों किया जाए? प्रधानमंत्री भी मानते हैं कि कोरोना अब जाने वाला विषाणु नहीं है। देर-सबेर उसका वैक्सीन और कोई निश्चित दवा भी इंसान को मिलेगी। तो क्यों न कोरोना के साथ ही जीने की जीवन-शैली बना ली जाए? बेशक कुछ शहरों में कोरोना का संक्रमण बेकाबू है, लिहाजा उनके मद्देनजर कोई रणनीति तय की जाए। लॉकडाउन की व्यंजना तो किसी तालाबंदी या कैदखाने सरीखी है, लिहाजा उसका कोई औचित्य समझ नहीं आता।