अनिल अनूप
सारा ‘जहान’ खुल रहा है। पाबंदियों के ताले खोल दिए गए हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में पूजा-पाठ, इबादत की शुरुआत हो चुकी है। लब्बोलुआब यह है कि लॉकडाउन खुलना ही था, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों की मजबूरी थी। अनिवार्यता भी थी। हालांकि कोरोना संक्रमित होने के बावजूद अन्य देशों की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत सुरक्षित रही है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी भारत में कोरोना वायरस मौजूद है। वह न तो खत्म हुआ है और न ही आसार हैं। कोरोना की मौजूदगी लगातार हमलावर है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपात स्थिति कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक मिशेल रियान का आकलन है कि भारत में कोरोना संक्रमण की स्थितियां अब भी विस्फोटक नहीं हैं। संक्रमित मामलों के दोगुना होने की अवधि औसतन तीन सप्ताह है, जो दुनिया के कई देशों से बेहतर है, लेकिन लॉकडाउन खोलने के साथ स्थितियां बिगड़ने का जोखिम बना हुआ है। संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में अब भारत ने इटली और स्पेन को भी पार कर लिया है और हम विश्व में पांचवें स्थान पर आ गए हैं। अमरीका, ब्राजील, रूस और ब्रिटेन ही हमसे आगे हैं। स्पष्ट है कि भारत में कोरोना वायरस का प्रभाव और प्रसार थम नहीं रहा है। अब संक्रमण के कुल मरीजों की संख्या 2,46,628 तक पहुंच गई है। मात्र एक दिन में 9971 नए मरीज सामने आ रहे हैं, लेकिन अभी तक मौत का आंकड़ा 6929 पर ही है। इस संदर्भ में एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि कोरोना संक्रमण इसलिए लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि हमारे देश की आबादी बहुत और घनी है। टेस्टिंग भी 45 लाख के करीब हो चुकी है, लेकिन इस आंकड़े से घबराने की जरूरत नहीं है। यदि हमारी मृत्यु-दर नियंत्रण में है, तो संक्रमित मामलों की चिंता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि स्वस्थ होने की दर भी 48 फीसदी से अधिक है। लगभग आधा बीमार और आधा स्वस्थ…! यदि मृत्यु-दर अनियंत्रित होती है, तो फिर कोरोना का मूल्यांकन दूसरी तरह से करना होगा। बहरहाल कुछ अन्य प्रख्यात चिकित्सकों का आकलन है कि आगामी दो महीने चेतावनी वाले हैं। उस दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों का आंकड़ा 8-10 लाख तक भी पहुंच सकता है। दो महीने की अवधि से पहले इस वायरस से बिल्कुल भी राहत के आसार नहीं हैं। उसके बाद कोरोना का प्रभाव कम होना शुरू हो सकता है। दरअसल चिंता की बात यह है कि हम शहरों के स्तर पर कोरोना वायरस से पूरी तरह निपट नहीं पाए हैं और अब संक्रमण गांवों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। कुछ उदाहरण गौरतलब हैं। ओडिशा में करीब 80 फीसदी केस गांव से आ रहे हैं। ताजातरीन आंकड़े बढ़े हैं, तो ओडिशा अचानक कोरोना के चंगुल में आ गया है। राजस्थान के करीब 30 फीसदी इलाके ग्रामीण हैं,जहां कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। आंध्रप्रदेश में बीते 3 सप्ताह के दौरान करीब 500 मामले गांवों से आए हैं। उप्र और बिहार में हालिया 70 फीसदी केस प्रवासी मजदूरों के कारण बढ़े हैं। उन्होंने गांवों को संक्रमित किया है। ऐसे कई विश्लेषण आ चुके हैं। दरअसल अधिकतर डाक्टर और सरकार इसी स्थिति से डरते रहे हैं कि संक्रमण देश के गांवों तक न जा सके, लेकिन अब सच सामने आ चुका है। क्या चिकित्सक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानेंगे कि भारत में सामुदायिक संक्रमण की शुरुआत हो चुकी है? चूंकि कोरोना की ‘चरम’ स्थिति बेहद करीब है या उसकी भी शुरुआत हो चुकी है, लिहाजा यह विचारणीय पहलू है कि क्या हम इतनी बड़ी संख्या में कोरोना के मरीजों और मृतकों को संभालने में सक्षम होंगे? यदि संक्रमण के आंकड़े 8-10 लाख तक पहुंचते हैं, तो 4-5 लाख सक्रिय मरीज भी होंगे। लॉकडाउन के बावजूद हम कोरोना के बेलगाम प्रसार को नहीं रोक पाए हैं। अब भी शहरों में लोग कोरोना को लेकर गंभीर नहीं हुए हैं, तो गांवों में मास्क, दो गज की दूरी और हाथों की सफाई की परवाह कौन करता है?