अनिल अनूप
शूरवीर शहीदों के बलिदान का प्रतिकार कैसे लिया जाएगा, यह हम नहीं जानते, लेकिन चीन के सामान का बहिष्कार शुरू कर मुद्दे को अलग दिशा में मोड़ दिया गया है। हालांकि प्रधानमंत्री के स्तर पर किसी भी तरह के बहिष्कार का आह्वान नहीं किया गया है। ऐसा करना भी पेचीदा है, क्योंकि भारत विश्व व्यापार संगठन के कायदे-कानूनों से बंधा है। इसके बावजूद भारत सरकार ने चीनी बहिष्कार का आगाज किया है। रेलवे ने एक चीनी कंपनी का 471 करोड़ रुपए का ठेका रद्द कर दिया है। बहाना यह बनाया गया है कि चार सालों के दौरान कंपनी ने सिर्फ 20 फीसदी काम किया है। वह कंपनी दस्तावेज देने में भी नाकाम रही है। दूसरे, दूरसंचार विभाग ने बीएसएनएल को निर्देश दिए हैं कि 4-जी को अपग्रेड करने में चीनी उपकरणों का इस्तेमाल न किया जाए। एक और चीनी इंजीनियरिंग कंपनी रेलवे का ठेका खो सकती है। केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने सचिवों को निर्देश दिए हैं कि मंत्रालय में चीन का सामान न खरीदा जाए। गौरतलब यह भी है कि सरकार 371 चीनी सामानों को रोकने की प्रक्रिया में तेजी लाने पर विचार कर रही है। साथ ही देश के शेयर बाजार में चीनी कंपनियों के निवेश पर पाबंदी थोपी जा सकती है। इस संदर्भ में वित्त मंत्रालय और सेबी के बीच विमर्श जारी है। यदि भारत से कारोबार खत्म होता है, तो चीन को 5.7 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। सरकारी स्तर को छोड़ दें, तो निजी क्षेत्र में चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर ‘भावनाओं के ज्वार’ उफान पर हैं। कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने 500 ऐसे चीनी उत्पादों की सूची एक बार फिर जारी की है, जिनके बहिष्कार का संकल्प लिया गया है। कैट ने नारा दिया है-‘भारतीय सामान, हमारा अभिमान।’ वैसे व्यापारिक संगठनों ने चीन के 3000 उत्पादों का बहिष्कार करना तय किया है। उसकी भी सूची अलग है, लेकिन यह सब कुछ रातोंरात संभव नहीं है। बेशक गैर-जरूरी उत्पादों की आपूर्ति भारतीय सरकार और बाजार एकदम रोक सकते हैं, क्योंकि हमारे पास विकल्प हैं और हमारे एमएसएमई इन चीजों को बना सकने में सक्षम हैं, लेकिन यह सच है कि भारत के औसतन 70 फीसदी उद्योग चीन के सहारे ही हैं। फार्मा का 70 फीसदी कच्चा माल चीन ही सप्लाई करता रहा है। मोबाइल हैंडसैट और स्मार्ट टीवी के बाजार पर चीन का ही वर्चस्व है। लिहाजा एकदम बहिष्कार करना फिजूल की भावुकता है। बीते साल भारत-चीन ने करीब 92 अरब डॉलर का आपसी कारोबार किया है। इसमें चीन की हिस्सेदारी हमसे चार गुना से भी ज्यादा की है। ध्यान देने का आंकड़ा है कि 2019 में व्यापारिक असंतुलन 52.69 अरब डॉलर का था। यानी भारत इतना ज्यादा व्यापार घाटा झेल कर भी चीन के साथ कारोबार कर रहा है। चीन के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार है। भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार चीन ही है, लेकिन इसी संदर्भ में भारत चीन के लिए 11वें स्थान पर है, लिहाजा चीनी सामान का एकदम बहिष्कार करने का बहुत बड़ा नुकसान चीन को नहीं होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो, टेक्सटाइल्स, स्टेशनरी, घडि़यां, खिलौने, जूते, कागज, ज्वैलरी के अलावा एफएमसीजी प्रोजेक्ट, पतंग का मांझा, चीनी मिट्टी की मूर्तियां, गुलाल पिचकारी, झालरें आदि की लंबी सूची है, जो आज भारत के घर-घर में इस्तेमाल की जा रही हैं। उन्हें एकदम खत्म नहीं किया जा सकता। ऐसा अभियान आरएसएस का ‘स्वदेशी जागरण मंच’ भी छेड़ता रहा है, लेकिन हम कभी भी विकल्प नहीं बन पाए। अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को उभारने की चर्चा है, लिहाजा बहिष्कार के बहाने से नई शुरुआत की जा सकती है। इलेक्ट्रॉनिक्स, तकनीक और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हम जापान और ताइवान से बात कर सकते हैं। भारत के उपभोक्ता और बाजार को भी एकजुट होना होगा। यानी चीनी उत्पादों की मांग पर ही चोट की जानी चाहिए। सरकार को चीनी कंपनियों को दिए गए ऑर्डर भी खारिज करने चाहिए। चीनी ऐप भी खत्म किए जाएं और आगे की अनुमति न दी जाए। दरअसल चीनी बहिष्कार इस समय ‘राष्ट्रीय आकांक्षा’ का प्रतीक है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार सीमा पर पसरे तनाव की भी कोई बात करे कि आखिर उसका अंतिम समाधान क्या है?