अनिल अनूप
किसका सच स्वीकार करें और किसे झूठा करार दें? भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने अपने एक दस्तावेज में माना है कि चीन ने अतिक्रमण किया और पांच मई से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है। लेकिन पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अधिकृत प्रवक्ता लगातार दावे करते रहे हैं कि हमारी सीमा में न तो कोई घुसा है और न ही कोई घुसा हुआ है। कब्जा करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सकता। सरकार के भीतर का यह विरोधाभास स्पष्ट है। दस्तावेज में रक्षा विभाग की प्रमुख गतिविधियों का उल्लेख था। उसमें स्पष्टत: स्वीकार किया गया है कि चीन आक्रामक मूड में है और उसने 5-6 मई के बाद हमारे इलाकों में अतिक्रमण किया है। रक्षा मंत्रालय की यह रपट जून माह की है, जबकि अप्रैल-मई की रपट में चीनी आक्रामकता और अतिक्रमण का कोई जिक्र नहीं था। ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ वाली कहावत की तरह मंत्रालय ने बीते गुरुवार दोपहर बाद वेबसाइट से सवालिया रपट हटा दी। अब रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता भी इस रपट पर टिप्पणी करने और रपट हटा लेने की कार्रवाई से इंकार कर रहे हैं। अतिक्रमण की स्वीकारोक्ति के अलावा, रपट में यह आकलन भी दिया गया था कि पूर्वी लद्दाख के तनावग्रस्त इलाकों में अभी विवाद और गतिरोध लंबा खिचेंगे। यह कितना लंबा होगा, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। चीन के सैनिक फिंगर इलाके से पीछे हटने को तैयार ही नहीं हैं, जबकि दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की पांच दौर की 55 घंटे से ज्यादा चली बातचीत में सहमति बनी थी कि दोनों पक्षों की सेनाएं 2-2 किलोमीटर पीछे हटेंगी, एक बफर जोन बनेगा, जहां कोई भी सैनिक तैनात नहीं किया जाएगा, लेकिन चीन तमाम सहमतियों के विपरीत ही काम करता रहा है। इसके बावजूद चीन ने अपना सैन्य जमावड़ा बढ़ाया है। भारत ने भी युद्ध संबंधी तैनातियां की हैं। मंत्रालय के विवादित दस्तावेज के मुताबिक, स्थितियां संवेदनशील हैं। वेबसाइट पर यह दस्तावेज बीते मंगलवार से उपलब्ध था, जिसमें वास्तविक नियंत्रण-रेखा (एलएसी) पर कड़ी निगरानी और बदले हालात के अनुरूप तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत का उल्लेख किया गया था। चूंकि प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्रालय के बीच गहरा और गंभीर विरोधाभास सामने आया है, लिहाजा आनन-फानन में वह रपट वेबसाइट से हटा ली गई। अब कुछ मौजू सवाल हैं कि चीन की आक्रामकता के मद्देनजर भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई क्या होगी? क्या स्थितियां एक छोटे युद्ध की ओर बढ़ रही हैं? क्या चीन भारत पर युद्ध थोपना चाहता है और उसके लिए पाकिस्तान, नेपाल के मोर्चों को भी उकसा रहा है? क्या भारत भी एक साथ तीन मोर्चों पर लडऩे को तैयार है? चीन ने हाल ही में समंदर में दो मिसाइलों का परीक्षण कर हालात के प्रति आगाह कर दिया है। हमलावर तनाव और संभावित टकराव के बावजूद क्या चीन के साथ सैन्य और राजनयिक स्तर पर संवाद जारी रखना संभव होगा? दस्तावेज में यह भी स्वीकार किया गया है कि चीन के सैनिक 17-18 मई को पैंगोंग के भारतीय इलाके में घुसे थे। कुगरांग नाला और गोगरा में भी घुसपैठ की गई थी। फिंगर 5-8 तक के इलाके में भारतीय सैनिक अब गश्त नहीं कर पा रहे हैं। अवरोध हैं, तो गश्त कैसे करेंगे? हालांकि ये तमाम इलाके बुनियादी तौर पर ‘भारतीय’ हैं। यदि इस तरह अतिक्रमण हो रहा है, तो भारत की सरजमीं पर चीनी कब्जे भी हो रहे हैं, अब इस हकीकत को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है? अब सिर्फ दो विकल्प सामने लगते हैं-या तो भारतीय सेना आक्रामक पलटवार करे अथवा चीनी कब्जे वाले इलाकों को ही ‘नई एलएसी’ स्वीकार कर ले? लेकिन सबसे अहं यह है कि प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्रालय के विरोधाभास स्पष्ट किए जाएं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो सवाल कर दिया है कि प्रधानमंत्री झूठ क्यों बोल रहे हैं? हालांकि देश अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है। हम देश के प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते। हमारा विश्वास है कि जब भी प्रधानमंत्री कुछ बोलते हैं, तो वह बिल्कुल सटीक और सच्चे तथ्यों पर आधारित होता है, लेकिन इस संदर्भ में क्या कहा जाए?