अनिल अनूप
दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्मा अब राहत महसूस कर रही होगी! सर्वोच्च न्यायालय से उन्हें और परिजनों को शुरुआती न्याय मिला है। इंसाफ जीता है और सियासत, साजिशें, धमकियां पराजित हुई हैं। सुशांत की मौत से जुड़े पक्षों की जांच सीबीआई करेगी। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शीर्ष अदालत को अधिकार है कि वह सीबीआई को जांच सुपुर्द कर सकती है। यही नहीं, सर्वोच्च अदालत ने टिप्पणी की है कि मुंबई पुलिस सुशांत केस में जांच नहीं, महज पूछताछ कर रही थी। यह गंभीर टिप्पणी है और मुंबई पुलिस के साथ-साथ महाराष्ट्र सरकार को भी सवालिया बनाती है। यह न्यायिक फैसला बेहद जरूरी था, क्योंकि सुशांत की मौत पर कई विरोधाभास सामने आ रहे थे, परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी थे, ढेरों सवाल थे और एक गंभीर आशंका भी थी कि क्या किसी ने आत्महत्या के लिए सुशांत को उकसाया था? अथवा उसे ऐसा करने को विवश किया गया था? क्या सुशांत की हत्या करने के बाद उनका शव लटकाया गया था? चूंकि जांच में बिहार और महाराष्ट्र सरकारों के आपसी, फिजूल और अहंवादी अवरोध भी पैदा किए जा रहे थे, लिहाजा देश की सबसे बड़ी एजेंसी सीबीआई को निष्पक्ष और त्वरित जांच के मद्देनजर यह केस सौंपना न्यायसंगत निर्णय लगता है। सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी है कि धारा 174 के तहत जांच नहीं की जा सकती, जबकि मुंबई पुलिस बीते 65 दिनों से यही कर रही थी और उसने कोई प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की थी। संदेह स्वाभाविक है, लिहाजा अब सर्वोच्च अदालत की निगरानी में कुछ बड़े रहस्यों पर से परदा उठ सकता है। चूंकि यह बॉलीवुड के एक उभरते हुए अभिनेता की अप्राकृतिक मौत का मामला है, देश की गली-गली, सड़क-सड़क प्रदर्शन और छोटे-छोटे आंदोलन जारी हैं, एक राज्य सरकार ने पुरजोर सहयोग किया, नतीजतन आज लग रहा है कि सुशांत की ‘जय हो। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने भी फैसले में ‘सत्यमेव जयते’ का उल्लेख करते हुए कहा है कि न्याय उसे भी मिलना चाहिए, जो अब इस दुनिया में नहीं है। यदि हमारी न्यायपालिका इसे सूत्रवाक्य के तौर पर धारण कर ले, तो देश के आम आदमी को भी इंसाफ के लिए साल-दर-साल भटकना और खुद को बेचना नहीं पड़ेगा। बहरहाल सुशांत की ‘जय हो’ तभी सार्थक हो सकेगी, जब तमाम साजिशों की कोशिशें बेनकाब होंगी। मुंबई पुलिस पर मौखिक दबावों के सच सामने आएंगे। सुशांत के साथ मानसिक खिलवाड़, पिता और बहनों से काटने की मंशा स्पष्ट होगी। क्या इस केस में कोई राजनीतिक दखल और कनेक्शन भी है? क्या इतने लंबे अंतराल के बाद साक्ष्य सुरक्षित होंगे? क्या सुशांत के धन के साथ हेराफेरी की हकीकतें भी बेपरदा होंगी? संपूर्ण और संतुष्ट न्याय तक एक लंबी प्रक्रिया से सीबीआई को गुजरना पड़ेगा। बेशक पेशेवर एजेंसी ऐसी मुश्किल और पेंचदार जांचों की अभ्यस्त है। उसके पास विशेषज्ञों की फौज है, नहीं तो वह बाहर से अनुबंधित भी कर सकती है। सीबीआई के सामने क्राइम सीन नहीं है। उसे साफ किया जा चुका है, लेकिन सीबीआई उस सीन को रिक्रिएट कर सकती है। मुंबई पुलिस दस्तावेजों और साक्ष्यों, बयानों के नाम पर सीबीआई को क्या सौंपती है, यह भी काफी महत्त्वपूर्ण है और केस की बुनियाद भी है। बहरहाल बेहतर फैसला यह रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सुशांत से जुड़ा कोई भी केस दर्ज किया जाता है या पहले से ही दर्ज है अथवा जांचाधीन रहा है, तो उसे भी सीबीआई ही देखेगी। स्पष्ट है कि सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा की मौत या आत्महत्या का मामला भी सीबीआई को सुपुर्द करना पड़ सकता है। कथित अपराध और साजिशों को शीर्ष अदालत ने इस तरह एक ही मंच पर एकीकृत कर दिया है और उनकी जांच सीबीआई को सौंपी है। यह जांच एक निश्चित निष्कर्ष तक इसलिए भी पहुंचनी चाहिए, क्योंकि परोक्ष रूप से यह सुशांत के करोड़ों चाहने वालों से भी जुड़ी है। फिल्मी दुनिया के भीतर की साजिशों को भी खंगालना चाहिए, जिनके कारण वह निराशा और अवसाद की स्थितियों तक पहुंचा। क्या सुशांत वाकई अवसाद और मनोरोग का मरीज था? इस सवाल की थाह तक जाने के लिए डॉक्टरों से सवाल-जवाब भी किए जाने चाहिए। सीबीआई ने पहले ही तय कर लिया होगा कि किनसे पूछताछ की जानी है! यह जांच इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसी से जनता, लोकतंत्र और अंततः संविधान की जीत सुनिश्चित होगी।