अनिल अनूप
भारतीय रणबांकुरों ने चीनी सेना का गुरूर लगातार तोड़ा है। बीते चार दिनों में तीन बार घुसपैठिए चीनी सैनिकों को न केवल खदेड़ा है, बल्कि ‘ब्लैक टॉप’, चुनार सरीखी पहाड़ी पोस्टों पर भारत का तिरंगा लहराया है। ‘ब्लैक टॉप’ से चीन की सेना के कैमरे, सर्विलांस सिस्टम और मैकेनिज्म आदि को उखाड़ कर फेंक दिया गया है। मोटे तौर पर पैंगोंग त्सो और स्वांगुर गैप के बीच वाले चुशुल इलाके से चीनियों को धकियाने में हमारी सेना कामयाब रही है। जाहिर है कि चीन की एक और साजिश नाकाम हुई। अब ऊंची पहाडि़यों से हमारे सैनिक पैंगोंग झील के इलाके में चीनी सेना की गतिविधियों, रणनीति और आगे बढ़ने की कवायदों पर लगातार नजर रख सकेंगे। पैंगोंग त्सो के दक्षिणी छोर वाले इलाके में अब भारतीय सेना का प्रभुत्व है। ऐसी आक्रामकता का चीन ने अनुमान नहीं लगाया था। कई जगह पैंगोंग में ही ऐसे मोर्चे हैं कि पहाड़ी पर भारत का कब्जा है और नीचे तलहटी में चीन ने अपने टैंक तैनात कर दिए हैं। भारत ने भी टी-90 सरीखे भारी टैंकों के साथ-साथ तोपखाने, मिसाइलें भी तैनात कर दी हैं। दोनों पक्षों के टैंक, करीब 9.5 किलोमीटर के फासले पर, फायरिंग रेंज में हैं। हालात और तैनाती किसी युद्ध से कम की नहीं हैं, फिर भी कमांडर स्तर की बातचीत जारी है। संवाद गुरुवार को भी जारी रहेगा, लेकिन सहमतियों और फैसलों के खुलासे नहीं किए जाएंगे। पूर्वी लद्दाख के इन इलाकों में तनाव इतना गहरा है कि दिल्ली में गृह मंत्रालय भी सक्रिय हो गया है। चीन के अलावा, नेपाल और भूटान से सटी सीमाओं पर ‘सुपर अलर्ट’ की स्थितियां हैं। सभी सुरक्षा बलों को अलर्ट रहने के आदेश दिए गए हैं। अरुणाचल, सिक्किम से लेकर उत्तराखंड और हिमाचल तक की सीमा पर आईटीबीपी को अलर्ट करते हुए तैनात किया गया है। एसएसबी के करीब 3000 जवान नेपाल बॉर्डर पर भेजे गए हैं। करीब 200 ट्रक लेह की तरफ भेजे गए हैं। उनमें सैनिकों के अलावा अस्त्र-शस्त्र और अन्य रसद हैं। यानी भारत अपने जंगी हालात को पुख्ता कर रहा है। वैसे भी स्थितियां और समीकरण किसी युद्ध से कम नहीं हैं। पैंगोंग त्सो के उत्तरी छोर में फिंगर इलाके से चीनी सेना को खदेड़ने की कवायद जारी है, लेकिन बातचीत के बावजूद चीन पैंगोंग त्सो, गोगरा, डेपसांग इलाकों से पीछे हटने को फिलहाल तैयार नहीं है। दरअसल यह शी जिनपिंग का चीन है, जो अपने पड़ोसियों पर एकतरफा निर्विवाद तथ्य थोपना चाहता है और जमीन पर तथ्यों को बदल रहा है। फिंगर-4 में भारतीय सैनिकों को चीनी सेना के बिलकुल आमने-सामने तैनात कर दिया गया है। शीघ्र समाधान के संकेत नहीं हैं और न ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरता चाहता है। दरअसल 1962 में भी चीन ने पैंगोंग त्सो के रास्ते हमले शुरू किए थे, लेकिन आज प्रमुख चोटियों और पहाडि़यों पर भारतीय सेना का प्रभुत्व है। भारत ने स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के लड़ाकों को भी मोर्चे पर लगा दिया है। ये अधिकतर लड़ाके तिब्बत मूल के हैं, लिहाजा बुनियादी तौर पर चीन के खिलाफ हैं। ऊंची पहाडि़यों पर, दुर्गम इलाकों में और विषम परिस्थितियों में भी युद्ध लड़ने में कोई इनका मुकाबला नहीं कर सकता।ये गुरिल्ला लड़ाई में भी महारत रखते हैं। 1962 के युद्ध के बाद इस सैन्य यूनिट का गठन किया गया था। चीनी सैनिकों को धकियाने और खदेड़ने में एसएफएफ के लड़ाके अपना शुरुआती युद्ध-कौशल दिखा चुके हैं। बहरहाल हमें लगता है कि मौजूदा एलएसी का प्रारूप बदल सकता है, क्योंकि अब तनाव लद्दाख तक ही सीमित नहीं है। भारतीय सेना ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। करीब 3500 किमी की एलएसी पर कई जगह हमारे सैनिक अतिक्रमण कर, कब्जा करके, बैठ सकते हैं। उन्हें पीछे हटाना संभव नहीं होगा। झड़प या कोई हमला अपरिहार्य हो सकता है। अब चीन की कब्जावादी नीतियों का दौर गया, लिहाजा मई के बाद से ही चीनी सेनाएं पूर्वी लद्दाख में डटी हैं और घुसपैठ की कोशिशें करती रही हैं। अंतरराष्ट्रीय नियमों और समझौतों की परवाह न करते हुए चीन पूर्वी लद्दाख में भारतीय इलाकों को कब्जाना चाहता है। सामरिक और रणनीतिक तौर पर इन इलाकों का बड़ा महत्त्व है। लिहाजा अब नई दिल्ली को विभिन्न मोर्चों पर, बीजिंग के निरंतर दबावों का जवाब देने को, तैयार होने की जरूरत है।