मधुरेन्द्र सिन्हा
कोविड महासंकट के इस काल में जबकि सारी आबादी जूझ रही है, भारत के करोड़ों बच्चों के सामने भविष्य का संकट खड़ा हो गया है। उनका स्वास्थ्य रक्षा कवच टूटने लगा है, टीकाकरण छूट रहा है और वे कुपोषण का भी शिकार हो रहे हैं। यह ऐसी घड़ी है, जिसमें उन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में करोड़ों बच्चों का टीकाकरण छूट गया है और इस तरह से वे फिर से पुरानी स्थिति में पहुंच गए हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ऐसा ही रहा तो हर दिन लगभग 6,000 बच्चे असमय काल कवलित हो जाएंगे। बाल-पोषण कार्यक्रम में बहुत बड़ी बाधा आई है और इसका असर सारी दुनिया के करोड़ों गरीब बच्चों पर पड़ रहा है। भारत में टीकाकरण ठप होने से सुरक्षा की कड़ी टूट गई है। गरीब बच्चों को पोषण नहीं मिल पा रहा है। जहां बच्चों को पांच वर्ष की उम्र तक सभी तरह के टीके और पोलियो की खुराक मिल जानी चाहिए थी, वहां अब इसमें ठहराव आ गया है। कोविड के शुरू के तीन महीनों में स्वास्थ्यकर्मी और आशा तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता दूरदराज के क्षेत्रों में नहीं पहुंच पाए। इसका मतलब यह हुआ कि हम फिर से पीछे जाने लगे।
भारत ने बच्चों के टीकाकरण में एक विश्व रिकॉर्ड बनाया था और जबसे देश में मीजल्स-रूबेला के टीके लगाए जाने शुरू किए गए यानी फरवरी, 2017 तब से कोविड की शुरुआत तक लगभग 32 करोड़ बच्चों को टीका लगाया था, जिसने बच्चों को रक्षा कवच प्रदान किया था। दुर्गम इलाकों, अशांत इलाकों और घनी बस्तियों में भी एमआर वैक्सीन लगाने के काम में दर्जनों स्वयंसेवी संगठन, डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ, विभिन्न सरकारों के स्वास्थ्य विभाग जुटे। एक स्वस्थ पीढ़ी तैयार होने लगी थी। लेकिन कोविड महासंकट में सारा शेड्यूल गड़बड़ हो गया और दिए गए टीके भी बेअसर हो गए क्योंकि उसके बाद के टीके नहीं लग पाए। यूनिसेफ का कहना है कि हम ऐसी स्थिति में आ पहुंचे हैं जहां से फिर हमें वापसी करनी होगी, नहीं तो सब किया-धरा चौपट हो जाएगा। इसलिए उसने डब्ल्यूएचओ और सरकार के सहयोग से फिर से यह टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने पर जोर दिया है। इस दिशा में काम शुरू भी हुआ है लेकिन उसकी गति अभी धीमी है।
वर्ष 2014 में भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया था ताकि हर साल लाखों बच्चों और गर्भवती माताओं की मृत्यु को रोका जा सके। इसके तहत हर साल ढाई करोड़ बच्चों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया था। देश के छह लाख गांवों में से ज्यादातर लॉकडाउन का शिकार हो गए। इसे ही देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय और स्वयंसेवी संगठनों ने फिर से टीकाकरण का बीड़ा उठाया है। एक नए सिरे से योजना बनाई गई है और नए मापदंड तैयार किए गए हैं। अब संशोधित कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है और उस पर काम भी शुरू हो गया है। इस बार यह अभियान जोखिम भरा है क्योंकि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी अपनी रक्षा करनी है। कोविड का खतरा हर जगह मंडरा रहा है। इसलिए अब महज 10-15 बच्चों का टीकाकरण एक बार में हो रहा है ताकि कहीं भीड़ न हो। इसमें एक समस्या आ रही है कि कोविड के कारण टीकाकरण का काम जो बंद हो गया था उसे फिर से और कहां से शुरू किया जाए। इसके लिए पुरानी सूची स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सभी आशा तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से ली जा रही है। इन्हें ही परिवर्तित करके नई सूची बनाई जा रही है। इस समय ज्यादा ज़ोर उन इलाकों पर है जहां टीकाकरण अधूरा रह गया है ताकि वह कड़ी फिर से बन सके। टीकाकरण करने के लिए बहुत कड़े नियम बनाए गए हैं। हर कदम सैनिटाइजेशन और मास्क पर ज़ोर है। एक और बड़ी जिम्मेदारी का काम है कि टीकों का कोल्ड चेन बनाए रखना, यानी उन्हें एक खास तापमान पर रखना।
नि:संदेह टीकाकरण उन करोड़ों बच्चों को एक सुरक्षा कवच प्रदान करेगा जो छूट गए हैं या फिर इस दुनिया में नए आये हैं। इसका फायदा कोविड का टीका आने के बाद बहुत ज्यादा मिलेगा क्योंकि छह वर्षों से चल रहे टीकाकरण कार्यक्रम ने नए टीके के लिए भी बहुत बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया है। हमारे लिए एक साल में 20 करोड़ से भी ज्यादा को टीका लगाना संभव होगा।