अनिल अनूप
इस सदी या इससे पहले त्योहारों के लक्षण, उत्साह व लक्ष्य में जिस तरह युग के संबोधन होते रहे हैं, उससे कहीं विपरीत वर्तमान सभ्यता के सामने हर त्योहार की परीक्षा व समीक्षा हो रही है। लगभग साल के अंतिम पहर में पहुंचे वक्त के विराम को तोड़ती दीपावली हाजिर है, जबकि इससे पूर्व कोरोना काल ने होली के रंग, बैसाखी का उल्लास, जन्माष्टमी की हांडी, रक्षाबंधन की परंपरा, गणेशोत्सव का उत्साह और ईद की मिलन को उदास किया है। बड़ी मिन्नत से खुले हैं मंदिर और आशा के दीपों के स्वागत में दिवाली इस बार बाजार को देख रही है। दिवाली अगर बाजार को रोशन कर गई, तो कोरोना के ऊपर जिंदगी की अनिवार्यता का असर होगा और यही इस बार त्योहार का वास्तविक आनंद भी होगा। हिमाचल के बाजारों ने भी करवट बदली है और इसीलिए बाधित आर्थिकी की पदचाप सुनी जा सकती है। दिवाली के मूड में बाजार को गंतव्य मानकर जनता अगर समर्थन दे रही है, तो निश्चय ही इस साहस का प्रश्रय देश को मिलेगा। जनवरी से सितंबर तक हिमाचल ने अगर 85 हजार वाहनों के सौदे किए, तो हर वाहन के घूमते पहिए त्योहार मनाने का दौर ही खोल रहे हैं। हर नागरिक रिकवरी चाहता है, इसलिए त्योहार लौटा रहे हैं, लेकिन अभी शर्तें लागू हैं। अनलॉक के लगभग अंतिम चरण में पहुंचे समाधानों की दूसरी तरफ हिदायतें स्पष्ट हैं। भले ही दिवाली के जोश में लोग ‘मास्क के पहरे’ को उतार दें या शादियों में बारात होने की निरंकुशता में यह भूल जाएं कि कोरोना लॉकडाउन की कैद के सबक क्या रहे, लेकिन बाजार के बीचोंबीच कहीं कोविड-19 के यमदूत घूम रहे हैं। सितंबर माह में उपभोक्ता की मांग से सराबोर बाजार ने त्योहारी सीजन को पुकारना शुरू किया है। हिमाचल के लिए सुखद इसलिए भी कि पिछले साल के मुकाबले सितंबर माह में तुलनात्मक दृष्टि से कर व जीएसटी में 10.68 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। पिछले सितंबर में 482.37 करोड़ के मुकाबले इस सितंबर में जीएसटी इत्यादि से 530.11 करोड़ की राजस्व प्राप्ति हुई है। सेवा क्षेत्र में तेजी से उभरती सक्रियता का असर हिमाचल में भी है। प्रदेश को वापसी के दो बिंदुओं पर गौर करना स्वाभाविक है। आर्थिक तथा स्वास्थ्य की निगरानी के बीच अगर त्योहार का यह मौसम खुशगवार रहा, तो भविष्य की सरगम में जिंदगी के बुझे हुए सुर भी जाग जाएंगे। दरअसल कोरोना काल ने जीवन के तारतम्य को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई तक हानि के कई जखीरों को जीतना होगा। इस तरह ऊपरी तौर पर त्योहारी सीजन आर्थिकी की कुछ मरम्मत कर सकता है, लेकिन गहरे संकट से उबरने की जद्दोजहद अभी जारी रहेगी। देखना यह होगा कि संकट से उबरते हिमाचल के निजी क्षेत्र को सरकार किस तरह की नीतियों का उपहार सौंपती है। त्योहार व विवाह-शादियों ने कुछ बंधन तोड़ने का साहस दिखाया और इसी से बाजार फिर से बाजार बनने लगा है, लेकिन जनता का मार्गदर्शन अब नए तरह का आश्वासन है। मसलन परिवहन क्षेत्र को मिली छूट के बावजूद इससे जुड़ी क्षमता रूठी बैठी है या विश्वास की पलकें पूरी तरह नहीं खुलीं। पर्यटक आमद शुरू हुई है, लेकिन होटल उद्योग के बंद दरवाजे नहीं खुले। इसी बीच स्कूलों को खोलने की प्रक्रिया के बीच कुछ शिक्षकों व शिक्षा मंत्री का कोरोना पॉजिटिव हो जाना, फिर से सतर्कता पैदा करता है। जाहिर है स्कूलों का खुलना न केवल समाज का खुलना है, बल्कि इसकी व्यापक गतिविधियों में बैठा अर्थ तंत्र भी अपने बंधे हुए हाथ खोल पाएगा, लेकिन आगे बढ़ने का हर कदम चिकित्सकीय सेवाओं का मुआयना करता है। कोरोना से मौत का हिमाचली आंकड़ा तीन सौ की गिनती में यह भी याद करता है कि इस दौरान चिकित्सा संस्थानों खास तौर पर आधा दर्जन सरकारी मेडिकल कालेजों ने खुद को कितना तत्पर पर तंदुरुस्त रखा। आईजीएमसी, टीएमसी व नेरचौक मेडिकल कालेज के गलियारों में कोरोना मरीजों की मौत महज आपदा का इतिहास नहीं, बल्कि चिकित्सकीय सेवाओं के संघर्ष व सबक की दास्तान भी है। ऐसे में अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीएस बाली टांडा मेडिकल कालेज से शिफ्ट हुए मेडिकल स्टाफ की चर्चा कर रहे हैं, तो यह गंभीर प्रश्न है। आर्थिकी के लिए खुलते हर दरवाजे के सामने चिकित्सकीय इंतजामों की शिथिलता सही नहीं। पहले चंद सरकारी सेवाएं ही कोरोना योद्धा मानी जाती थीं, जबकि अब कोरोना वॉरियर की संज्ञा में हर सेवा, व्यापारिक गतिविधि तथा सामाजिक सक्रियता है, अतः चिकित्सा क्षेत्र को अपनी भूमिका का निरंतर विस्तार करना होगा।