चंडीगढ़: अब हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां पर अधिकतर चीजें Digitalized की जा रही हैं. इस Digitalization के world में हम सिर्फ एकेडमिक एजुकेशन ही नहीं अपने पवित्र ग्रंथ भी ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं. इसी दिशा में गुरु ग्रंथ साहिब की हस्तलिखित 550 पांडुलिपियों को भी Digitalized किया गया है. अब इन्हें आप ऑनलाइन भी प्राप्त कर सकते हैं. गुरु ग्रंथ साहिब (Guru Granth Sahib) की 550 हस्तलिखित पांडुलिपियों (Handwritten Manuscripts) में से 170 दिनांकित सरूप हैं, जिन्हें गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के सेंटर ऑन स्टडीज इन श्री गुरु ग्रंथ साहिब (CSSGGS) द्वारा डिजिटल किया गया है.
अब तक सात साल से अधिक समय तक और अभी भी जारी एक अभ्यास में CSSGGS ने पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और यहां तक कि नेपाल के लोगों और सिख संस्थानों से भी गुरु ग्रंथ साहिब पांडुलिपियों का एक्सेस लिया है.
CSSGGS के डायरेक्टर डॉ अमरजीत सिंह ने कहा कि CSSGGS ने सितंबर के पहले हफ्ते में गुरु ग्रंथ साहिब के 417वें स्थापना दिवस को चिह्नित करने के लिए एक वेबिनार रखा है, जिसमें पवित्र ग्रंथ की पुरानी पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए किए गए कार्यों का प्रदर्शन किया जाएगा. डॉ. सिंह ने कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब की 550 पांडुलिपियों के अलावा, सीएसएसजीजीएस ने हस्तलिखित दसम ग्रंथ (Dasam Granth) की 70 कॉपियां और सिख धार्मिक पाठ वाली 500 अन्य पोथियों का भी डिजिटलीकरण किया था.
उन्होंने बताया कि जिन 170 दिनांकित पांडुलिपियों को डिजिटाइज किया गया था, वे 1707 ईसवी से 1800 ईसवी के बीच लिखी गई थीं. डॉ सिंह ने कहा कि 20 ऐसे सरूप थे जिन पर गुरु अर्जन देव, गुरु हर राय, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह के मूल मंतर निशान (हस्ताक्षर) थे. चल रही परियोजना अब तीसरे फेज में प्रवेश कर गई है क्योंकि सीएसएसजीजीएस, डिजिटलीकरण के लिए गुरु ग्रंथ साहिब की अधिक हस्तलिखित कॉपियों की तलाश में अपनी खोज जारी रखे हुए है.
डॉ सिंह ने कहा, ‘बुक के रूप में हमारे केंद्र ने नवंबर 2020 में हस्तलिखित पांडुलिपियों की एक वर्णनात्मक सूची प्रकाशित की थी. पुस्तक का दूसरा भाग प्रकाशन के अधीन है और हमने परियोजना का तीसरा चरण पहले ही शुरू कर दिया है.’ उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों तक पहुंचने की कवायद एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है. कई लोग अपनी पांडुलिपियों को देने के लिए तैयार नहीं थे. उन्हें इस बात पर आपत्ति थी कि अगर यह सार्वजनिक हो गया, तो उनके पास जो पांडुलिपियां थीं, उन्हें उनसे छीन लिया जा सकता है.’
डॉ सिंह ने कहा, ‘मोगा में एक परिवार ने कई बार अपील करने के बावजूद पांडुलिपि देने से इनकार कर दिया. यहां तक कि अकाल तख्त के पूर्व प्रमुख स्वर्गीय जोगिंदर सिंह वेदांती ने भी उन्हें डिजिटलीकरण के लिए पांडुलिपि उपलब्ध कराने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे सहमत नहीं हुए.’
उन्होंने कहा, ‘हम विभिन्न सिख संस्थानों के संपर्क में रहते हैं. संगरूर में भी एक संस्था है जो पुराने बीरों और सरूपों के रखरखाव के लिए मुफ्त सेवा प्रदान करती है. अगर कोई रखरखाव के लिए संपर्क करता है तो हमें उनसे ऐसी पांडुलिपियों के बारे में जानकारी मिलती है.’ डॉ. सिंह ने कहा कि कुछ प्रतियों को डिजिटल किया गया था. यहां तक कि एक “विशेष नोट” डालकर स्याही की विधि और घटकों का भी जिक्र किया गया था. उन्होंने कहा कि पवित्र पाठ लिखने के लिए विभिन्न प्रकार के कागजों का इस्तेमाल किया गया था.