नई दिल्ली: प्राकृतिक संसाधन हर जनमानस के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि सांस लेना प्रकृति अपने नियम के अनुसार चलती है इसमें छेड़छाड़ करना या प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना मनुष्य को हमेशा महंगा पड़ता है। प्रकृति अपना बदला स्वयं ले लेती है। इसी के मद्देनजर कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया और कहां प्रकृतिक संसाधन से छेड़छाड़ किसी पक्ष विशेष या आपस की लड़ाई नहीं है पर्यावरण और वन कानून का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच का विवाद नहीं है या आम जनता को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी इस मुद्दे पर जांच के दौरान की क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण एनजीटी के पास मामलों का स्वत संज्ञान लेने का अधिकार है शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन और पर्यावरण संरक्षण वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावों को निपटाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम एनजीटी 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई।
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा निष्पक्ष होने के लिए अधिकरण पर्यावरणीय मुद्दों से परी किसी भी और क्षेत्र में नहीं जाता है पीठ में जस्टिस हृसिकेश राय और जस्टिस सिटी रवि कुमार भी शामिल है। पीठ ने कहा कि अधिकरण पर्यावरण से संबंधित विशेष उद्देश्य और मुद्दों के लिए बनाया गया एक मंच है।
शीर्ष अदालत ने मामले में मुकुल रोहतगी दुष्यंत दवे एनएस नादकर्णी कृष्णा वेणुगोपाल और भी गिरी सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनी रोहतगी ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या अधिकरण के पास स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार है या नही ।
उन्होंने कहा, एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उसके पास वैधानिक नियम से परे जाने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि एनजीटी अधिनियम कहता है कि अधिकरण के पास पर्यावरण से संबंधित मुद्दों से निपटने का अधिकार क्षेत्र है। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से संबंधित मुद्दा उठाया गया था।