सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि हाईकोर्ट अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का फ़ैसला सुना सकती है यानी हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करके आपराधिक कार्यवाही रूकवा सकती हैं.
भले ही अपराध की प्रकृति और पक्षों के बीच विवाद स्वैच्छिक निपटान को ध्यान में रखते हुए गैर-समझौते वाले ही हों. ‘गैर-समझौते’ वाले अपराध वह होते हैं जिन्हें किसी भी समझौते के तहत अदालत के बाहर ऐसे अपराध को कम या क्षमा नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि सजा देना ‘न्याय देने का एकमात्र रूप’ नहीं है, कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत हाईकोर्ट में निहित या शीर्ष अदालत में निहित असाधारण शक्ति का इस्तेमाल दंड प्रकिया संहिता की धारा 320 की सीमाओं से बाहर जाकर किया जा सकता है.अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखा जाना चाहिए
चीफ जस्टिस एनवी रमणा और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के संदर्भ में ‘व्यापक आयाम’ की ऐसी शक्तियों का बहुत सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिए और समाज पर अपराध की प्रकृति और प्रभाव, समाज पर अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखा जाना चाहिए. पीठ ने मध्य प्रदेश और कर्नाटक के उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों से उत्पन्न दो अलग-अलग अपीलों पर अपने फैसले में यह व्यवस्था दी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सच है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 के तहत अपनी शक्तियों के कथित प्रयोग में आपराधिक अदालत द्वारा ‘गैर-समझौते’ वाले अपराध को क्षमा नहीं किया जा सकता है और अदालत द्वारा ऐसा कोई भी प्रयास प्रावधान में संशोधन के समान होगा जो पूरी तरह से विधायिका का अधिकार क्षेत्र है.
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत प्राप्त विशेष अधिकार का किसी अपराध को समझौते के सीमित अधिकार में लाने पर कोई रोक नहीं है. पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय किसी मामले विशेष के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने और न्याय के हित में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 का इस्तेमाल कर सकते हैं