नई दिल्ली : मेडिकल स्टोर संचालकों को प्रशासन केवल दवा बेचने का लाइसेंस देती है परंतु वे इसकी जगह दवाओं के साथ अन्य खाद्यपदार्थ भी खूब बेचने है।एैसे स्टोर संचालकों के लिए तय किये गये नये नियम के अनुसार अब उन्हें दो अलग अलग लाइसेंस ले कर ही स्टोर का संचालन करना आवश्यक है अन्यथा स्टोर पर ताला भी लटक सकता है नये नियम अनुसार अब वे ड्रग लाइसेंस पर केवल जीवनरक्षक दवा ही बेच सकेंगे। इसके अलावा प्रोटीनेक्स, हेल्थ टानिक, च्यवनप्राश, शहद, मिल्क पाउडर, शुगर फ्री टेबलेट, ग्लूकोज व अन्य हेल्थ सप्लीमेंट और रोजमर्रा की चीजें बेचने के लिए उन्हें अलग से फूड लाइसेंस लेना होगा अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो ड्रग लाइसेंस भी रद कर हो जाएगा। और जुर्माना अलग से लगेगा । हालांकि, नियम-शर्तों को लेकर केमिस्ट व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। यह व्यवस्था एक जनवरी-2022 से शुरू हो जाएगी। हालाकि, पूर्व में इसे एक अक्टूबर 2021 से लागू किया जा रहा था। सरकार इसे 2011 से ही लागू करने के लिए प्रयासरत थी,
मेडिकल स्टोर संचालकों को औषधि विभाग की ओर से सिर्फ दवा बेचने के लिए लाइसेंस दिया जाता है, लेकिन केमिस्ट फूड सप्लीमेंट भी खूब बेचते हैं। किसी भी दुकान पर नजर डालें तो ज्यादातर काउंटर पर फूड सप्लीमेंट ही रखे होते हैं, जबकि इनकी बिक्री के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग से लाइसेंस लेना होता है। अलीगढ़ की बात करें तो यहां 2200 से अधिक मेडिकल स्टोर हैं, लेकिन 99 फीसद संचालकों के पास खाद्य सुरक्षा विभाग का लाइसेंस नहीं है। सभी एक ही लाइसेंस पर दवा व फूड सप्लीमेंट बेच रहे हैं, जो फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के नियमों के विपरीत है।
एफएसएसएआइ के नियमों के अनुसार किसी भी तरह का पेय या खाद्य सामग्री बेचने के लिए खाद्य विभाग से लाइसेंस लेना या पंजीकरण कराना अनिवार्य है। यदि 12 लाख तक का वार्षिक कारोबार है तो विभाग में केवल पंजीकरण कराने से ही काम चल जाएगा, लेकिन यदि सालाना कारोबार इससे अधिक है तो इसके लिए बाकायदा निर्धारित शुल्क जमा करके लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यदि ऐसी सामग्री मेडिकल स्टोर पर बेची जाती है तो अलग से लाइसेंस लेना होगा।
– दुकानदार को एक ही विभाग (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) से दो अलग-अलग लाइसेंस लेने होंगे क्योंकि दवा व फूड सप्लीमेंट की अलग-अलग रेक बनानी होगी और दवा व फूड सप्लीमेंट के अलग-अलग बिल छपवाने होंगे
एफएसएसएआइ की नई रेगूलेटरी भ्रामक है, इससे केमिस्ट ही नहीं, ग्राहक को भी परेशानी होगी। हमारी एसोसिएशन अलग-अलग लाइसेंस का विरोध करती है।
व्यवस्था तो ठीक है, लेकिन इसमें एक ही बिल बनाने की छूट होनी चाहिए थी। अलग-अलग रेक की अनिवार्यता से कोई फायदा नहीं। क्योंकि, दवा तो नाम से बिकती है।